Friday, 3 June 2016

ভারত সরকার নাগরিকত্ব আইন ২০০৩ পুনর সংশোধনের পথে..Centre to amend Citizenship Act,Dr Subodh Biswas Assured!

Centre to amend Citizenship Act,Dr Subodh Biswas Assured!
Nagpur(Hastakshep).The President of All India Refugee organization NIKHIL Bharat Bangali Udvastu Samanyaya Samiti President has been assured that the Government of India is going to make provision for the citizenship to partition victim Bengali refugees.

Dr.Biswas and his companions organized rallies in New Delhi and cpitals of states to push for the demand and continued to interact with the central government and the BJP leadership and these meetings were highly controversial as a section of refugee leaders objected these interactions with BJP as BJP introduced this black act way back in 2003.

Dr.Biswas caliamed that it is the chievement of the continuous efforts of the organization but we could not confirm it on fine prints though BJP leadership has been assuringly publicly to make special provisions for Bengali Refugees and it did not happen.

We support the continuous movement for citizenship but we may not be asured until it happens.

Dr.Subodh Biswas wrote:

ভারত সরকার নাগরিকত্ব আইন ২০০৩ পুনর সংশোধনের পথে.....নিখিল ভারত সমিতির উপলব্ধি
কোন আন্দোলন ব্যর্থহয়না।কারন নাগরিকত্বের আইন ২০০৩ সংশোধনের দাবীনিয়ে নিখিলভারত বা উ স সমিতি ২০০৫ থেকে আন্দোলন করেচলেছে।দিল্লীর রাজপথে ২০১১,২০১৫ আন্দোলন আমরা করেছি।২০১২ সালে মাভালঙ্কর হলে সর্বভারতীয় সভাকরেছি।মাননীয় গৃহমন্ত্রী শ্রী রাজনাথ সিং মাননীয় পরিবহন মন্ত্রী শ্রী নীতিন গটকরি ,মাননীয় সুষমা স্বরাজ,শ্রী কৈলাশ ভিজয় বর্গী সহ শীর্স্থ্য নেতাদের সংগে আমরা বৈঠক করেছি।
দেরীহলেও ভারত সরকার আগামীতে নাগরিকত্ব আইন সংশোধন করতে চলেছে। সরকারের এই উদ্দ্যোগ নিখিল ভারত বাঙালি উদ্বাস্তু সমন্বয় সমিতির আন্দোলনেরই প্রতিফলন।সেজন্য ভারত সরকারকে নিখিল ভারত সমিতির পক্ষথেকে ধন্যবাদ জানাই,এবং অনুরোধ জানাই ধর্মীয় অত্যাচারের স্বীকার হয়ে ঘেসব বাঙালী হিন্দুরা(সংখ্যালঘুরা) ভারতে আশ্রয় নিয়েছে ,তাদের ভাবাইকে ভারতীয় নাগরিকত্ব দেবার ব্যবস্থা করাহোক। সংগে পেপার কাটিং পোষ্টকরাহোল।জয় নিখিল ভারত।
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अस्पृश्य रंगभेदी दुस्समय में मुक्तबाजार में अभूतपूर्व हिंसा का महोत्सव! गनीमत है कि मैंने किसी का कत्ल नहीं किया और न खुदकशी का रास्ता अख्तियार किया और न दंगा या मुठभेड़ में मारा गया! पत्रकारिया को लगभग वेशयावृत्ति में बदल देने वाले मसीहावृंद के खिलाफ मेरे अस्पृश्य वजूद में कितना भयंकर गुस्सा होगा,यह भी समझ लें। रचनाधर्मिता,जनप्रतिबद्धता और विरासत,लोक और भाषा के साथ बदलाव के ख्वाब मेरी आत्मरक्षा का रक्षाकवच! जिनका एजंडा हिंदुत्व है,उनका एजंडा नरसंहारी आर्थिक सुधार और मेहनतकशों के हाथ पांव काटने के श्रम सुधार और अनंत बेदखली का एजंडा कैसे है? वैकल्पिक मीडिया इसलिए भी जरुरी है क्योंकि अस्पृश्यों,अल्पसंख्यकों,पिछड़ों और आदिवासियों के अलावा मीडिया सेक्टर स्त्रियों के लिए भी बेहद जोखिमभरा है जहां गुलामी के खाते पर दस्तखत अनिवार्य है।चूंकि वैकल्पिक मीडिया में गुलामी की जंजीरें तोड़ी जा सकती है और इसलीलिए वैकल्पिक मीडिया हमारा नया मिशन है। जिस मिशन के साथ सत्तर के दशक के बदलाव के खवाबों के तहत हमने पत्रकारिता का विकल्प आजीविका बतौर अभिव्यक्ति की अबाध स्वतंत्रता के लिए चुना,उसीके लिए जनसत्ता में उपसंपादक बतौर लगातार 25 साल बिना प्रोन्नति,बिना अवसर के बिताने का धैर्य उसी मिशन की निरंतरता बनाये रखने का एकमात्र विकल्प रहा है। जिसकी कोई योग्यता नहीं है,जो बाजार का दो टके का दल्ला है,जो भयंकर जातिवादी और निरंकुश मैनेजर हैं,पल दर पल ऐसे लोगों के मातहत अपनी तमाम योग्यता और सामर्थ्य को नजरअंदाज होते हुए देखते हुए,अपने तमाम कार्यों का श्रेय उन्हें देते हुए,उनके हर अक्षम्य अपराध को उनकी महानता मानते हुए,गलती हुई तो हमारी. उपलब्धियां हैं तो उनकी,तजिंदगी संस्करण निकालने की जहमत उठाते हुए उनकी दबंगई की जहालत बर्दाश्त करने की मजबूरी हम पत्रकारों के लिए असह्य नरकयंत्रणा है।हर पत्रकार शाश्वत वही अश्वत्थामा है जो अपने ही रिसते हुए जख्म चाटते हुए पल दर पल महाभारत जीता है और गीता के उपदेश उसके काम नहीं आते। पलाश विश्वास

अस्पृश्य रंगभेदी दुस्समय में मुक्तबाजार में अभूतपूर्व हिंसा का महोत्सव!
गनीमत है कि मैंने किसी का कत्ल नहीं किया और न खुदकशी का रास्ता अख्तियार किया और न दंगा या  मुठभेड़ में मारा गया!
पत्रकारिया को लगभग वेशयावृत्ति में बदल देने वाले मसीहावृंद के खिलाफ मेरे अस्पृश्य वजूद में कितना भयंकर गुस्सा होगा,यह भी समझ लें।

रचनाधर्मिता,जनप्रतिबद्धता और विरासत,लोक और भाषा के साथ बदलाव के ख्वाब मेरी आत्मरक्षा का रक्षाकवच!
जिनका एजंडा हिंदुत्व है,उनका एजंडा नरसंहारी आर्थिक सुधार और मेहनतकशों के हाथ पांव काटने के श्रम सुधार और अनंत बेदखली का एजंडा कैसे है?

वैकल्पिक मीडिया इसलिए भी जरुरी है क्योंकि अस्पृश्यों,अल्पसंख्यकों,पिछड़ों और आदिवासियों के अलावा मीडिया सेक्टर स्त्रियों के लिए भी बेहद जोखिमभरा है जहां गुलामी के खाते पर दस्तखत अनिवार्य है।चूंकि वैकल्पिक मीडिया में गुलामी की जंजीरें तोड़ी जा सकती है और इसलीलिए वैकल्पिक मीडिया हमारा नया मिशन है।

जिस मिशन के साथ सत्तर के दशक के बदलाव के खवाबों के तहत हमने पत्रकारिता का विकल्प आजीविका बतौर अभिव्यक्ति की अबाध स्वतंत्रता के लिए चुना,उसीके लिए जनसत्ता में उपसंपादक बतौर लगातार 25 साल बिना प्रोन्नति,बिना अवसर के बिताने का धैर्य उसी मिशन की निरंतरता बनाये रखने का एकमात्र विकल्प रहा है।
जिसकी कोई योग्यता नहीं है,जो बाजार का दो टके का दल्ला है,जो भयंकर जातिवादी और निरंकुश मैनेजर हैं,पल दर पल ऐसे लोगों के मातहत अपनी तमाम योग्यता और सामर्थ्य को नजरअंदाज होते हुए देखते हुए,अपने तमाम कार्यों का श्रेय उन्हें देते हुए,उनके हर अक्षम्य अपराध को उनकी महानता मानते हुए,गलती हुई तो हमारी. उपलब्धियां हैं तो उनकी,तजिंदगी संस्करण निकालने की जहमत उठाते हुए उनकी दबंगई की जहालत बर्दाश्त करने की मजबूरी हम पत्रकारों के लिए असह्य नरकयंत्रणा है।हर पत्रकार शाश्वत वही अश्वत्थामा है जो अपने ही रिसते हुए जख्म चाटते हुए पल दर पल महाभारत जीता है और गीता के उपदेश उसके काम नहीं आते।


पलाश विश्वास
गनीमत है कि मैंने किसी का कत्ल नहीं किया और न खुदकशी का रास्ता अख्तियार किया और न दंगा या  मुठभेड़ में मारा गया।

1973 से हाईस्कूल परीक्षा में यूपी बोर्ड की मेरिट लिस्ट में स्थन बनाते हए जिलापरिषद के शरणार्थी दलित बच्चों के शरणार्थी इलाका दिनेशपुर के स्कूल से जीआईसी नैनीताल पहुंचते न पहुंचते व्यवस्था का कल पुर्जा बनने के बजाय रचनाधर्मिता के जरिये जनपक्षधरता के मोर्चे से लगातार पत्रकारिता कर रहा हूं।

जनपक्षधरता का यह मोर्चा मेरे पुरखों,इस महादेस के किसानों आदिवासियों की समूची विरासत की जमीनहै मेरे लिए अखंड भारत और इंसानियत का मुल्क बी यही है,जिसे जोड़ने का मिशन ही मेरा धम्म है और इसीलिए मेरा अंत न हत्या और न आत्महत्या का कोई चीखता हुआ सनसनीखेज शीर्षक है।यही बाबासाहेब का मिशन है।

1980 से 16 मई ,2016 तक बिना व्यवधान अखबारों में काम किया है।पच्चीस साल एक्सप्रेस समूह में बिता दिये।सैकड़ों पत्रकारों की नियुक्तियां की हैं और पिछले 36 सालों में सैकड़ों प्रकारों के कैरियर सवांरने का काम भी  किया है और उनमें से दर्जनों लोग बेहद कामयाब हैं और यही मेरी उपलब्धि है।वे लोग मुझे याद करें तो उनका आभार और न करें तो धन्यवाद।बाकी मेरी कोई प्रतिष्ठा नहीं है।फिर भी अधूरा मिशन पूरा करने का कार्यभार मेरा है और उसे पूरा किये बिना मरुंगा नही।

फिरभी सच यही है कि  रिटायर मैंने उपसंपादक पद पर किया और 36 साल की पत्रकारिता के बाद रिटायर होने की स्थिति में मेरा न कोई वर्तमान है और न कोई भविष्य है।मेरा कोई घर नहीं है और न मेरी कोई आजीविका है और पूरी जिंदगी खपाने के बाद गहराते असुरक्षाबोध के अलावा मेरी कोई पूंजी नहीं है।जीरो ग्राउंड पर जीरो बैलेंस के साथ फिर नये सिरे से जिंदगी शुरु करने की चुनौती है।

इस देश में अब भी पत्रकारिता में विभिन्न भाषाओं में लाखों की तादाद में काम कर रहे अस्पृश्य पिछड़े अल्पसंख्यक आदिवासी पत्रकारों की नियति कुल मिलाकर यही है।मैंने हत्या या आत्महत्या का रास्ता नहीं चुना लेकिन उनमे से कोई भी मैनाक सरकार कभी भी कहीं भी बन सकता है। गुलामी से भी बदतर हालात में रोजगार की गारंटी के बिना जो उपेक्षा,अपमान का दंश वे रोज रोज झेलते हैं और बमुश्किल जैसे वे गुजारा करते हैं,वे हत्या या आत्महत्या का विकल्प नहीं चुनते तो समझें,गनीमत है।

जिसकी कोई योग्यता नहीं है,जो बाजार का दो टके का दल्ला है,जो भयंकर जातिवादी और निरंकुश मैनेजर हैं,पल दर पल ऐसे लोगों के मातहत अपनी तमाम योग्यता और सामर्थ्य को नजरअंदाज होते हुए देखते हुए,अपने तमाम कार्यों का श्रेय उन्हें देते हुए,उनके हर अक्षम्य अपराध को उनकी महानता मानते हुए,गलती हुई तो हमारी. उपलब्धियां हैं तो उनकी,तजिंदगी संस्करण निकालने की जहमत उठाते हुए उनकी दबंगई की जहालत बर्दाश्त करने की मजबूरी हम पत्रकारों के लिए असह्य नरकयंत्रणा है।हर पत्रकार शाश्वत वही अश्वत्थामा है जो अपने ही रिसते हुए जख्म चाटते हुए पल दर पल महाभारत जीता है और गीता के उपदेश उसके काम नहीं आते।

सारे अवसर उनके,गलतियों के बावजूद प्रोन्नतियां उनकी,बड़े पदों पर सीधे उनकी नियुक्ति और बिना काम विदेशा यात्रा के स्टेटस के साथ वातानुकूलित वेतनमान और हमारी हैसियत जरखरीद गुलामी की ,फिरभी अखबारों मे हत्या या आत्महत्या नहीं है,तो रचना धर्मिता और जनप्रतिबद्धता और पेशेवर सक्रियता इसके बड़े कारण हैं जिसके अवसर अन्यत्र होते नहीं हैं।

इसलिए आज भी पत्रकारिता दूसरे पेशे से बेहतर है क्योंकि गनीमत है कि हम हत्या या आत्महत्या का विकल्प जिंदगीभर की नरकयंत्रणा के बावजूद अपनाने के सिवाय सिर्फ जनप्रतिबद्ध या रचना धर्मी बनकर टाल सकते हैं।यही पत्रकारिता है,इस सच को जाने बिना नये लोग पेशेवर पत्रकारिता न अपनाये तो बेहतर है।

वैकल्पिक मीडिया इसलिए भी जरुरी है क्योंकि अस्पृश्यों,अल्पसंख्यकों,पिछड़ों और आदिवासियों के अलावा मीडिया सेक्टर स्त्रियों के लिए भी बेहद जोखिमभरा है जहां गुलामी के खाते पर दस्तखत अनिवार्य है।चूंकि वैकल्पिक मीडिया में गुलामी की जंजीरें तोड़ी जा सकती है और इसलीलिए वैकल्पिक मीडिया हमारा नया मिशन है।


जिस मिशन के साथ सत्तर के दशक के बदलाव के खवाबों के तहत हमने पत्रकारिता का विकल्प आजीविका बतौर अभिव्यक्ति की अबाध स्वतंत्रता के लिए चुना,उसीके लिए जनसत्ता में उपसंपादक बतौर लगातार 25 साल बिना प्रोन्नति,बिना अवसर के बिताने का धैर्य उसी मिशन की निरंतरता बनाये रखने का एकमात्र विकल्प रहा है।

मैंने विश्वविद्यालय से निकलने के बाद किसी दूसरे काम के लिए सोचा तक नहीं।आज भले ही विश्वविद्यालय का विकल्प सोच रहा हूं।

पेशेवर पत्रकारिता के इस विकल्प को चुनने के लिए हमने सारे विकल्प छोड़ दिये तो जिस दिन मैंने जनसत्ता ज्वाइन किया,उसी दिन से इस मिशन के ही मुक्तबाजार में तब्दील होते देखते हुए मेरे दिलोदिमाग से लगातार रिसते हुए लहू का कुछ अंदाज लगाइये तो अवसर से वंचित होने की नियतिबद्ध अस्पृश्यता,असमता,अन्याय और रंगभेद के विरुध मेरे भीतर उबले रहे गुस्से की सुनामी का अंदाजा आप लगा सकते हैं।

पत्रकारिया को लगभग वेशयावृत्ति में बदल देने वाले मसीहावृंद के खिलाफ मेरे अस्पृस्य वजूद में कितना भयंकर गुस्सा होगा,यह भी समझ लें।

हर रोज जनसत्ता जैसे अखबार की,हिंदी अखबार के सबसे बड़े ब्रांड की जिस जघन्य सुनियोजित तरीके से हत्या होती रही तो पिछले पच्चीस साल में रोज रोज कितना गुस्सा हमने भीतर ही भीतर आत्मसात किया होगा,इसका अंदाजा लगाइये।

मसीहा बने हुए लोगों के अस्पृश्यता और रंगभेद के आचरण के खिलाफ मैं कितनी दफा उबल रहा हुंगा,इसका भी अंदाजा लगा लीजिये।

मेरी सीनियरिटी को खत्म करके मेरे मत्थ पर दूसरों को बैठाकर मुझे लगातार बिना मौका खारिज करते रहने और एक बार भी मुझे किसी तरह का मौका न देने की अस्पृशयता के खिलाफ मुझमें कितना बड़ा जव्लामुखी भीतर ही भीतर सुलग रहा होगा,समझ लीजिये और समझ लीजिये कि अभी आपने न आग का जलवा देखा है और जंगल में खिलते फूलों की बंगावत देखी है और केसरिया सुनामी देखने वाले लोगों को बदलाव की सुनामी का कोई अंदाजा है।

मेरे ही साथी शैलेंद्र को मेरी ही सिफारिश पर साल बर एक्सटेंशन देने वाले लोगों ने एक झटके से दूध में से मक्खी की तरह जैसे मुझे निकाल बाहर फेंक दिया तो समझ लीजिये की अस्पृश्यता  के इस महातिलिस्म में कोई रोहित वेमुला आखिर क्यों आत्महत्या करता है और क्यों खड़गपुर आईआईटी से निकलकर दुनिया जीत लेने वाला कोई एकलव्य महाबलि अमेरिका के सीने पर चढ़पर किसी द्रोणाचार्य के सीने पर गोलियों की बौछार कर देता है।

अमेरिकी विश्वविद्यालय में बुधवार को अपने प्रोफेसर को गोली मारने के बाद खुदकुशी करने वाले छात्र की पहचान भारतीय मैनाक सरकार के तौर पर हुई है। आईआईटी खड़गपुर का छात्र मैनाक सरकार प्रोफेसर विलियम क्लग द्वारा उसके कंप्यूटर कोड को चुराने और अहम जानकारी दूसरे छात्र को देने से नाराज था। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया लास एंजिलिस में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र मैनाक का सुसाइड नोट प्रोफेसर क्लग के कमरे से बरामद हुआ। 39 वर्षीय क्लग इस यूनिवर्सिटी में मैकेनिकल और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे।

मैनाक सरकार कोई अपवाद नही है ऐसा स्थगित धमाका सीने में दबाये दांतों से दांत दबाये दुनियाभर में रंगभेदी वर्चस्ववादी पितृसत्ता के कदमों तले रोज लहूलुहान हैं करोड़ों ठात्र छात्राएं और युवा।इनमें से अनेक चेहरे भारत के विश्वविद्यालयों,मेडिकल इंजीनियंरिग कालेजों और कार्यस्थलों पर हत्या या आत्महत्या की चीखती सुर्खियों में हमें रोज रोज नजर आते हैं लेकिन मुक्तबाजार के उपभोक्ताओं के दिलोदिमाग पर उसका कोई असर होताइच नहीं है।

अवसरहीनता और अवसर डकैती के इस रंगभेदी मुक्तबाजार में असम और अन्याय की निरंकुश वैश्विक सत्ता के मातहत हत्या और आत्महत्या का यह सिलसिला तब तक रुकने वाला नहीं है जबतक न हम इस पृथ्वी को गौतम बुद्ध के धम्म ,बाबासाहेब के जाति उन्मूलन एजंडा औक शहीदे आजम भगत सिंह के आजादी जुनून के रास्ते सिरे से बदल नहीं देते और मार्टिन लुथर किंग के सपने को जमीन पर अंजाम नहीं देते।

किसी बाराक ओबामा या किसी दलित या शूद्र के सत्ता शिकर तक पहुंचने से ही दुनिया नहीं बदलती,सामज को नये सिरे से व्यवस्थित करके अमन चैन की फिजां मुकम्मल बनाये बिना हम लगातार कुरुक्षेत्र में मारे जाने को नियतिबद्ध हैं।जीते रहेंगे तो फिर वही अशवत्थाम बनकर पल पल महाभारत जीने को अभिशप्त।

पूरे 36 साल अखबारों के दफ्तरों में जिंदगी खपा दी है।धनबाद में चार साल रिपोर्टिंग से लेकर डेस्क के कामकाज में चौबीसों घंटे खपकर अकादमिक खिड़कियां हमेशा के लिए बंद कर लीं तो उत्तर प्रदेश में दैनिक जागरण और दैनिक अमर उजाला में शाम ढलते न ढलते भोर होने तक डेस्क संभालने और उसके बाद सारा समय किसी न किसी रुप में निरंतर सक्रियता का सिलसिला घनघोर रहा।

1991 में जनसत्ता में आने के बाद दफ्तर का काम समयबद्ध और प्रणालीबद्ध हुआ तो दफ्तर के बाहर सारी सक्रियता राष्ट्रव्यापी हो गयी।यही मेरी संजीवनी है।ऊर्जा है।इसीके लिए मैं इंडियन एक्सप्रेस समूह का आभारी हूं।इसीलिए मैंन इस समूह में लगातार पच्चीस साल बीता दिये और आगे मौका मिलता तो शायद पच्चीस साल और बिता भी देता।एक्सप्रेस समूह से मुझे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि यह तंत्र तो अस्पृश्यता का है जो सामाजिक क्रांति के बिना बदलेगा नहीं बल्कि मीडिया के केसरिया कायाकल्प से जो गैस चैंबर में तब्दील होने वाला है।

अब रिटायर करने के बाद घर बैठकर काम कर रहा हूं तो सविताजी को लगता है कि मैं अपने सामर्थ्य से ज्यादा काम कर रहा हूं जबकि मेरी दिनचर्या तनिक बदली नहीं है।हुआ यह कि 1983 से जबसे वे लगातार मेरे साथ हैं,घर से बाहर मेरे कामकाज की निरंतरता का अंदाजा उन्हें नहीं है और वे ठीक ठीक नहीं जानती रही है कि पत्रकारिता में मैंने कितनी ऊर्जा और कितना समय खपाया है।

वही ऊर्जा और वही समय मैं अपने पीसी के साथ लगातार रचनाधर्मिता और जनप्रतिबद्धता,बदलाव के ख्वाबों में खपा रहा हूं तो सविता को मेरी सेहत की चिंता सताने लगी है जबकि इस बीच मैं नागपुर हो आया हूं और कुल मिलाकर हफ्तेभर भी घर नहीं बैठा हूं।

अस्पृश्य रंगभेदी दुस्समय में मुक्तबाजार में अभूतपूर्व हिंसा का महोत्सव है यह।
अमन चैन का कोई रास्ता सत्ता के गलियारे से होकर नहीं निकलता और न यह कानून व्यवस्था का कोई मामला है।

फिजां में इतनी नफरत पैदा कर दी गयी हैं कि कायनात भी बदलने लगी है जौसा मौसम बदल रहा है और ग्लेशियर भी इस दहकती पृथ्वी की आंच से पिघलने लगे हैं तो समुंदर तक उबलने लगे हैं और आसमान टूटकर कहर बरपाने को तैयार है।

किसी किस्म का सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार की हिंसा की यह स्वयंक्रिय सुनामी रुकने नहीं जा रही है बल्कि इसकी प्रतिकिया और प्रलंयकर होने वाली है।

निरंकुश सत्ता ,धर्मोन्मादी अंध राष्ट्रवाद, सैन्य राष्ट्र और वैश्विक मुक्त बाजार में उत्पादन प्रणाली सिरे से लापता है और समाज एकदम बदल गया है।

संयम और अनुशासन है नहीं और न आम जनता की आस्था के मुताबिक धर्म कहीं है तो नैतिकता और मूल्यबोध भी नहीं है।

प्रगति का अस्पृश्यवाद मनुस्मृति की अस्पृश्यता से ज्यादा नरसंहारी है और इसका प्रभाव विश्वव्यापी है और हिंसा का रसायन शास्त्र इसीलिए स्थानीय कोई समस्या है ही नहीं कि राष्ट्र और सत्ता अपनी सैन्य शक्ति से उसपर किसी तरह का अंकुश लगा लें।

बल्कि अब हालात यह है कि जितनी प्रहार क्षमता की सैन्यशक्ति किसी राष्ट्र के पास है,जितनी आंतरिक सुरक्षा का उसका चाकचौबंद इंतजाम है,उसके मुकाबले व्यक्ति और संगठनों के पास उससे कहीं ज्यादा प्रहार क्षमता है क्योंकि राष्ट्र व्यवस्था में जिस तकनीक और विज्ञान के पंख लगे हैं,वे तमाम उपकरण अब मुक्त बाजार में समुचित क्रयशक्ति के बदले सहज ही उपलब्ध है।

विडंबना यह है कि अब हर राष्ट्र सैन्य राष्ट्र है और विकास अंततः सैन्य प्रहार क्षमता की अंधी पागल दौड़ है और वहीं सैन्य राष्ट्र मुक्त बाजारे के तंत्र मंत्र यंत्र को सर्वशक्तिमान बनाने के लिए अंध राष्ट्रवादा का उपयोग करके यह हिंसा का महोत्सव रच रहा है।

राष्ट्र की बागडोर की आत्मघाती प्रतिस्पर्द्धा तक सीमाबद्ध हो गयी है विचारधाराएं और राजनीति अब बेलगाम हिंसा का पर्याय है और मुक्त बाजार बसाने के लिए उत्पादन प्रणाली के साथ सात परिवार और समाज का अनिवार्य विघटन है तो किसी भी स्तर पर हत्या और आत्महत्या पर नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं है।

गनीमत है कि मैंने किसी का कत्ल नहीं किया और न खुदकशी का रास्ता अख्तियार किया और न दंगा या  मुठभेड़ में मारा गया।

रचनाधर्मिता,जनप्रतिबद्धता और विरासत,लोक और भाषा के साथ बदलाव के ख्वाब मेरी आत्मरक्षा का रक्षाकवच।

जिनका एजंडा हिंदुत्व है,उनका एजंडा नरसंहारी आर्थिक सुधार और मेहनतकशों के हाथ पांव काटने के श्रम सुधार और अनंत बेदखली का एजंडा कैसे है?

Thursday, 2 June 2016

Mehbooba, Misgar, Rashid file nominations for Anantnag Assembly Segment: Daily " Chattan" Srinagar

Mehbooba, Misgar, Rashid file nominations for Anantnag 
Assembly Segment: Daily " Chattan" Srinagar :

হতদরিদ্র বাবা মার ৫ মেয়ে, অথচ গায়ে কাজ নেই। তাই কলকাতায় সব মেয়েকেই কাজে পাঠানো।

Munmun Biswas 
বন্দনা মহাকুর, বয়েস ১৫ বছর, বাড়ি পশ্চিম মেদিনীপুরের দাতন। হতদরিদ্র বাবা মার ৫ মেয়ে, অথচ গায়ে কাজ নেই। তাই কলকাতায় সব মেয়েকেই কাজে পাঠানো। ছোট মেয়ে বন্দনাকে দমদম শেঠবাগান নিবাসী শ্রাবণী সাহা সঞ্জয় সাহার বাড়িতে ২৪ ঘণ্টার বাচ্চা দেখার কাজে দেয় মাস ছয়েক আগে। এই ছমাসে একবারই কলকাতার বাসন্তি কলনিতে দিদির বাড়ি এসেছিল বন্দনা। মাইনেও মিলেছে মাত্র একমাসের। একটা মেয়ের পেটের চিন্তা করতে হচ্ছেনা দেখেই খুশি ছিল গরীব বাবা মা। কিন্তু গতমাসে হঠাত ফোন, বাবা-মা-দিদি কে ডেকে শ্রাবণী সাহা জানায়, তোমাদের মেয়ে দেড় লাখ টাকার সোনার গয়না চুরি করে তোমাদের দিয়ে এসেছে মাস দুই আগে যখন বাড়ি গেছিল। আকাশ থেকে পড়ে পরিবার। তারপর তাদের বিস্ময় থামেনি, চলে তাদের সামনেই মেয়েকে মারধর। দিদি কথা বলতে যাওয়ায় দিদি পূজাকেও মারধর করে আটকে রাখে এক রাত এক দিন, সঙ্গে সাড়ে চার বছরের ছোট ছেলে। পাড়ার দশবারো জন লোক মিলে কোনমতে ছাড়িয়ে আনতে আনতে পরের দিন রাত। পুলিশের কাছে অভিযোগ দায়ের করতে যাওয়ায় দমদম ফাড়ির পুলিশ বন্দনার জামাইবাবুকে নিয়ে সোজা চলে যায় ওই বাড়ি, কিসব কথাবাত্রার পর এদের এসে বলে তোমাদের মেয়ে চুরির দোষ মেনে নিয়েছে, এখন বাচতে চাও তো এরা যা বলছে সব মেনে নাও। দেড় লাখ টাকা এনে দাও আর মেয়েকে ছাড়িয়ে নিয়ে যাও। নাহলে মেয়েকে এদের হাতে তুলে দাও, কোন যোগাযোগ করতে আর যেও না আর এরপর থানায় বিরক্ত করতে আসলে এখানেও মার খাবে।
পূজারা এরপর পাড়ার ক্লাব, পার্টির মহিলা সমিতি, এলাকার ছোটবড় দাদা সবার কাছে গেছিল সাহায্যের জন্য; কিন্তু ভোটের মরশুমে লাভের আশা না থাকায় পাত্তা দেয়নি কেউই। আমরা যারা বাসন্তি কলনিতে ‘অন্য আকাশ’ সংগঠনের মধ্যে দিয়ে পড়ানোর কাজ করি, অসংগঠিত শ্রমিক মেয়ে-পুরুষ দের সংগঠিত ও শক্তিশালী করার কাজ করি, আমরা বিষয়টা জানতে পারি দিন দশেক আগে। তারপর থেকে ছোটাছুটি শুরু। পুলিশ বিষয়টায় যুক্ত, তাই প্রথমে CWC (Child Welfare Committee) যারা দশদিনেও কোন পদক্ষেপ নিতে পারেনি আর তারপর ব্যরাকপুর পুলিশ কমিশনারেট। বড়বড় অফিসারদের দেখা পাওয়া মুশকিল, তাই একবারের জায়গায় ২,৩ বার গিয়ে শেষে কাল কমিশনারেটের চিঠি নিয়ে দমদম থানায় অভিযান করেছিলাম আমরা। সঙ্গে বাসন্তী কলনির জনা চল্লিশেক কাজের মেয়ে। পুলিশের সমস্ত চোখরাঙানি ভঙ্গ করে বন্দনা কাল মায়ের কাছে ফিরেছে। এবার দেখার দমদমের ওই পরিবারকে কিভাবে Bonded labor abolition act এ জেলের ঘানি টানানো যায় আর ক্ষতিপুরণ আদায় করা যায়।
কারণ শুধু বন্দনা নয়, ওই বাড়িতে কাজ করে আরো তিনটি মেয়ে, নানা বয়েসের। বন্দনার মুখেই শুনলাম আর কাল আমাদের বন্ধুরা চাক্ষুস দেখেও এসেছে বন্দনার থেকেও ছোট একটি মেয়ের আরো করুণ অবস্থা। আর আমরা এও জানি গৃহশ্রমিক মেয়েদের জন্য কোন সুরক্ষার ব্যবস্থা এখনো করতে পারেনি এরাজ্যের সরকার। আমাদের দেশ ভারতবর্ষ ILO স্বীকৃতি সত্ত্বেও এই কাজের মেয়েদের এখনও শ্রমিক হিসেবে স্বীকার করেনি। অথচ আমাদের দেশে পরিষেবা ক্ষেত্রে যত মেয়ে কাজ পায়, তার দ্বিতীয় স্থানেই রয়েছে গৃহশ্রমিকের কাজ। এখনো তাদের বেশীরভাগই ঘণ্টায় ২০ টাকা মজুরির নিচে আমাদের মত মধ্যবিত্ত/উচ্চবিত্ত বাড়িগুলোতে কাজ করে। হাতে হাজা, হাটুতে ঘা, বাত নিয়ে। মাসে ৪ দিন ছুটিও জোটেনা (বড়জোর দুদিন) অনেকেরই। অসুস্থ হয়ে একদিন কাজে না গেলে মাইনে কাটা যায়। তারপর জল খেতে দেবেনা, বাথরুমে যাওয়া বারন, এমনকি থালার বদলে প্লাস্টিকে জলখাবার জোটে বেশীরভাগ নোংরা-ময়লা এইসব কাজের মেয়ের। জোটেনা কোনরকম সরকারি সুরক্ষা। পুরোটাই পয়সাওয়ালা চাকরিজীবী বাড়িগুলোর দয়াদাক্ষিণ্যে চলে এদের জীবন। তারপর উপরি পাওনা এই চুরি ছিনতাইয়ের তখমা আর শ্রাবণী সাহাদের মত মানুষদের টাকার লোভ আর জল্লাদ মানসিকতা। আর কোন পার্টি, কোন থানা, কোন ভদ্দরলক কি বিশ্বাস করবে এদের! কারণ ‘ছোটলোক’দের তো জন্ম তখমা চোর-ছ্যচরের। অথচ এরকম ঘটনা ঘটছে ভুরি ভুরি, খবরের কাগজেও তার উদাহরণ মেলে মাঝে মধ্যে। এই ঠিকে কাজে নেওয়ার সাথেই যুক্ত আছে বেশিরভাগ মেয়ে পাচার চক্র। সব সরকার, সব এনজিও জানে বোঝে। সিস্টেম এভাবেই চলে।
আগামী ১৬ই জুন ILO স্বীকৃত ‘আন্তর্জার্তিক গৃহশ্রমিক দিবস’। ২০১১ সাল থেকে পালিত হয়। আমাদের দেশের সেরকম কেউ জানেনা। ওইদিন টায় সকলে মিলে জড় হয়ে আলোচনা করা যায় একটা উপায় বাতলানোর। নতুন সরকার শপথ নিয়েছে গত পরশু। নতুন মরশুমে সকলে মিলে সংগঠিত হয়ে তাদের ওপর চাপ দেওয়া যায় কিভাবে ‘শ্রমিক স্বীকৃতি-ন্যূনতম মজুরি-ওয়েলফেয়ার বোর্ড’ এর দাবীতে সেটাই দেখার। যারা ভেবেছেন এই গৃহশ্রমিক মেয়েদের নিয়ে কাজ করার বা তাদের সংগঠিত করার বা ইউনিয়নাইজ করার কথা তাদের আমন্ত্রণ রইল আলোচনায় সামিল থাকার জন্য।






Pakistani-British singer and actress Salma Agha will be entitled to receive an Overseas Citizen of India (OCI) card.

 New Dehli, June 02: In response to a request from Salma Agha, the Home Ministry has made it formal by announcing "We have decided to grant her the OCI card after following the due procedure." Pakistani-British singer and actress Salma Agha will be entitled to receive an Overseas Citizen of India (OCI) card. This will enable her to avail the benefit of multiple entry and multi-purpose lifelong visa. By virtue of this she can visit India and also not be subject to reporting to police.

Wednesday, 1 June 2016

हिंदुत्व का एजंडा फर्जी,यह देश बेचने का नरसंहारी एजंडा हमें हिंदुत्व की बजाये फासीवादी नरसंहारी मुक्तबाजार के किले पर हमला करना चाहिए।क्योंकि हिंदुत्व के नकली किले पर हमले से वे जनता को वानरसेना में तब्दील करने में कामयाब है। राम मंदिर स्वर्ण मृग है और हम मृगमरीचिका से उलझे हैं और अबाध पूंजी के रंगभेदी वर्चस्व के खिलाफ हम कोई लड़ाई शुरु भी नहीं कर सके हैं। मराठी और बांग्ला के बाद आप चाहें तो हर भाषा और हर बोली में होगा हस्तक्षेप। अगर इस देश के दलित बहुजन स्त्री और छात्र युवा तेजी से केसरिया कायाकल्प की दिशा में बढ़ रहे हैं तो हम उनसे संवाद और विमर्श भी रोक देंगे तो आगे आत्मध्वंस का उन्मुक्त राजपथ है।हम हर माध्यम,हर विधा,हर भाषा के जरिये लोकसंस्कृति और विबविध बहुल सांस्कृतिक विरासत की जमीन पर खड़े होकर अगर वैकल्पिक सूचना तंत्र को खड़ा करते हुए जनपक्षधरता के मंच को मजबूत बना सकें तो हमारा हस्तक्षेप सार्थक होगा और इसके लिए हमें आप सबका समर्थन और सहयोग चाहिए। पलाश विश्वास

हिंदुत्व का एजंडा फर्जी,यह देश बेचने का नरसंहारी एजंडा
हमें हिंदुत्व की बजाये फासीवादी नरसंहारी मुक्तबाजार के किले पर हमला करना चाहिए।क्योंकि हिंदुत्व के नकली किले पर हमले से वे जनता को वानरसेना में तब्दील करने में कामयाब है।

राम मंदिर स्वर्ण मृग है और हम मृगमरीचिका से उलझे हैं और अबाध पूंजी के रंगभेदी वर्चस्व के खिलाफ हम कोई लड़ाई शुरु भी नहीं कर सके हैं।

मराठी और बांग्ला के बाद आप चाहें तो हर भाषा और हर बोली में होगा हस्तक्षेप।
अगर इस देश के दलित बहुजन स्त्री और छात्र युवा तेजी से केसरिया कायाकल्प की दिशा में बढ़ रहे हैं तो हम उनसे संवाद और विमर्श भी रोक देंगे तो आगे आत्मध्वंस का उन्मुक्त राजपथ है।हम हर माध्यम,हर विधा,हर भाषा के जरिये लोकसंस्कृति और विबविध बहुल सांस्कृतिक विरासत की जमीन पर खड़े होकर अगर वैकल्पिक सूचना तंत्र को खड़ा करते हुए जनपक्षधरता के मंच को मजबूत बना सकें तो हमारा  हस्तक्षेप सार्थक होगा और इसके लिए हमें आप सबका समर्थन और सहयोग चाहिए।

पलाश विश्वास

नागपुर यात्रा की उपलब्धियां छोटी छोटी हैं,लेकिन इससे हमें कमसकम दो कदम आगे बढ़ाने के रास्ते अब खुले नजर आने लगे हैं।

हिंदुत्व का एजंडा फर्जी,यह देश बेचने का नरसंहारी एजंडा है।

राम मंदिर स्वर्ण मृग है और हम मृगमरीचिका से उसझे हैं और अबाध पूंजी के रंगभेदी वर्चस्व के खिलाफ हम कोई लड़ाई शुरु बी नहीं कर सके हैं।

हमें हिंदुत्व के बजाये फासीवादी नरसंहारी मुक्तबाजार के किले पर हमला करना चाहिए।क्योंकि हिंदुत्व के नकली किले पर हमले से वे जनता को वानरसेना में तब्दील करने में कामयाब है।

मराठी और बांग्ला के बाद आप चाहें तो हर भाषा और हर बोली में होगा हस्तक्षेप।

नागपुर के इंदोरा इलाके के बेझनबाग में अखंड भारत वर्ष के एकदम केद्रीय बिंदू के बेहद नजदीक मराठी दैनिक जनताचे महानायक के दसवें वार्षिकमहोत्सव के मौके पर नागपुर की बेहद बदनाम कट्टर अंबेडकरी जनता के मध्य विशाल मंच पर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर और महात्मा गौतम बुद्ध की मूर्तियों के सान्निध्य में जाति उन्मूलन के प्रस्थानबिंदू से वैकल्पिक मीडिया के साथ अंबेडकरी आंदोलन की युगलबंदी हस्तक्षेप के युवा संपादक अमलेंदु उपाध्याय और महानायक के कर्मठ संपादक सुनील खोब्रागडे की अगुवाई में शुरु हो गयी।

उत्पीड़ित वंचित बहुसंख्य जनता के सक्रियसहयोग और समर्थन के बिना किसी भी काल में किसी भी देश में बदलाव के ख्वाबों को अंजाम देना संभव नहीं हुआ है।हमारे बदलाव के ख्वाब अंबेडकरी आंदोलन की जनोन्मुख परिवर्तनकामी दिशा के बिना बपूरे नहीं हो सकते तो हस्तक्षेप के मराठी संस्करण अंबेडकरी आंदोलन के मुखपत्र दैनिक जनतेचा महानायक के साथ गठजोड़़ के साथ शुरु हो पाना हमारे लिए एक निःशब्द क्रांति की शुरुआत है।

इसीके साथ बंगाल से बाहर जो पांच से सात करोड़ दलित बंगाली शरणार्थी हैं,सभी भारतीय राज्यों में विस्तृत उनके अखिल भारतीय संगठन निखिल भारत बंगाली उद्वास्तु समन्वय समिति के सक्रिय समर्थन के साथ बांग्ला हस्तक्षेप की शुरुआत भी हमारी छोटी उपलब्धि कही जा सकती है।

समिति के अध्यक्ष डां.सुबोध विश्वास मंच पर हाजिर थे।बंगाल से बी भारत विभाजन के बाद निस्कासित दलितों की इतनी बड़ी आबादी अब तक राज्यवार सत्ता दलों के मुताबिक या केंद्र सरकार की अनुकंपा मुताबिक मूक वधिर जीने को मजबूर रही है।इनकी नागरिकता छीन लेने और सर्वत्र आदिवासी भूगोल में बसाये गये इस विशाल जनसमूह की चीखों को हम देश के हर कोने से दर्ज करने की कोशिश में लगे हैं।

मैं अछूत दलित बंगाली शरणार्थी परिवार से हूं और जाति से ब्राह्मण अमलेंदु उपाध्याय हस्तक्षेप में मेरे हस्तक्षेप का जिस हद तक समर्थन करते रहे हैं और इस रीयल टाइम पोर्टल पर बाबासाहेब के मिशन को जैसे फोकस किया है और इसके साथ ही सुनील खोब्रागडे और डा.सुबोध विश्वास अपनी अपनी राजनीति को दरकिनार करते हुए वैकल्पिक मोर्चे पर नागपुर  वाशिंदा अंबेडकरी जनता के सात जिस खुले दिमाग से हमारे साथ है,उससे उम्मीद जगती है कि हम अलग अलग बंटी हुी जनता को अंततः गोलबंद करके समता और न्याय के निर्णायक लक्ष्य हासिल करने की दिशा में अब मजबूती से कदम रख पायेंगे।

हम मुक्तबाजार के तिलिस्म में बेतरह उलझे हुए हैं।नागपुर के रंगकर्मी और सर्वोदय आंदोलन के कार्यकर्ता रविजी ने कहा कि सत्ता और राष्ट्र का नरसंहारी स्वरुप दरअसल मुक्तबाजार का विशुध पूंजीवादी अवतार है जो चरित्र से धर्म और नैतिकता के खिलाफ है और यह धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद दरअसल मुक्तबाजार है और मुक्तबाजार के राष्ट्रद्रोही सिपाहसालारों का एजंडा हिंदुत्व नहीं है और न वे कोई रमामंदिर बनानने जा रहे हैं।उनका एजंडा देश बेचने का एजंडा है।

हम इससे सहमत है और हम मानते हैं कि हिंदुत्व का एजंडा उनका है ,कहते हुए इस देश की आम जनता की आस्था से उनकी खिलवाड़ और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के मुकतबाजारी देश बेचो कारोबार के पक्ष में उन्हें हम धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण का मौका दे रहे हैं।हमें हिंदुत्व के बजाये फासीवादी नरसंहारी मुक्तबाजार के किले पर हमला करना चाहिए।

अगर इस देश के दलित बहुजन स्त्री और छात्र युवा तेजी से केसरिया कायाकल्प की दिशा में बढ़ रहे हैं तो हम उनसे संवाद और विमर्श भी रोक देंगे तो आगे आत्मध्वंस का उन्मुक्त राजपथ है।हम हर माध्यम,हर विधा,हर भाषा के जरिये लोकसंस्कृति और विबविध बहुल सांस्कृतिक विरासत की जमीन पर खड़े होकर अगर वैकल्पिक सूचना तंत्र को खड़ा करते हुए जनपक्षधरता के मंच को मजबूत बना सकें तो हमारा  हस्तक्षेप सार्थक होगा और इसके लिए हमें आप सबका समर्थन और सहयोग चाहिए।

हमारे पास संसाधन कम है और फिलहाल हमें एक ही स्रवर से काम करना पड़ेगा और इसीमें विभिन्न भाषाओं और बोलियों में भारतीय जनता की रोजमर्रे का जिंदगीनामा दर्ज कराना पड़ेगा।अब हमारा लक्ष्य उत्तर प्रदेश है जहां से हम बहुत जल्द हस्तक्षेप उर्दू में भी शुरु करने जा रहे हैं।हमें जैसे जैसे जिस जिस भाषा और बोली से समर्तन और सहयोग मिलता रहेगा,हम उनके लिए नेटव्रक और स्पेस बढ़ाते रहेंगे और पूरी मदद मिली तो अलग अलग सर्वर भी लगा लेंगे।

नागपुर से चलकर हम वर्धा विश्विद्यालय गये,जहां गर्मियों की छुट्टियां चल रही हैं और ज्यादातर शोध छात्र वहीं जमे हुए हैं।विभिन्न सांस्कृतिक वैचारिक अस्मिता पृष्ठभूमि के सात जुड़े इन छात्रों ने जिस अंतरंगता से जनप्रतिबद्ध वैकल्पिक मीडिया,माध्यम और विधा के हमारे प्रस्ताव पर विमर्श में शामिल हुए हैं,उससे हमारी कोशिश रहेगी कि हम देश के हर विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों को हस्तक्षेप से जोड़ लें।छात्र समाज ही वर्गहीन जातिविहीन शोषणविहीन समता और न्याय के प्रति और जनप्रतिबद्ध समाज का आइना है और तमाम विश्वविद्यालयों में लिंगभेद न्यूनतम है और कमोबेश विमर्श का लोकतंत्र भी वहां है।

इसके विपरीत सामाजिक परिदृश्य मुक्तबाजार के अखंड राज में अत्ंयंत भयंकर है।कमसकम वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय के छात्रों ने अंबेजकरी जनता को सोथ लेकर अंबेडकरी मिशन के तहत जाति उन्मूलन के मिशन के तहत जनप्रतिबद्ध वैकल्पिक मीडिया की हमारी परिकल्पना का समर्थन किया है तो इसके लिए हम छात्र और युवासमाज के प्रति आभारी हैं और हमें पूरा विश्वास है कि मौजूदा व्यवस्था बदलने में यह नई पीढ़ी कोई कसर बाकी नहीं रहने देगी।

कोलकाता में लौटने पर पता चला कि कोलकाता के मध्य केंद्रीय स्थल पर नेताजी और रवींद्रि के चरणचिन्हों से परिष्कृत ऐतिहासिक भरत सभा हाल में पांच जून को रोहित वेमुला और चूनी कोटाल को याद करते हुए छात्रों युवाओं की पहल पर जाति उन्मूलन के लिए नागरिक कन्वेंशन का आयोजन हुआ है जो मनुस्मृति दहन से निःसंदेह ज्यादा क्रांतिकारी है।

মমতা ব্যানার্জীর মন্ত্রী সভায় উদ্বাস্তুরা উপেক্ষিত Thus,Dr.Upen Biswas projected as a national icon to kill Lalu Prasad politically was killed politically in Bengal by the refugees. After independence,it is perhaps for the first time that the cabinet has no refugee face to represent Dalit refugees. Keeping in mind the continuous persecution and ethnic cleansing of Adivasi people we should understand the urgency of Dalit Bengali refugees and leaders to align with respective ruling parties in different states as survival kit as they have been converted as mobile bonded vote bank as Indian Muslims are. I am concerned with Bengali dalit refugees and NIKHIL BHARAT BANGALI UDBASTU SAMANWAY SAMITEE has its network all over India specifically in twenty two states where refugees resettled them.I am not bothered about the leadership and stand with NIKHIL BHARAT BANGALI UDBASTU SAMANWAY SAMITEE and its organization and cause to ensure civic and human rights and citizenship for Bengali dalit refugees as I always refrain to stand with any politician whatever may come. I am trying my best to explain in depth the point raised by Dr.Biswas in a turmoil time while RSS Handed over Assam and North East to ULFA to make in Gujarat in Assam.Bengali Dalit refugees are not represented in Assam or Bengal not to mention the central government. Palash Biswas

মমতা ব্যানার্জীর মন্ত্রী সভায় উদ্বাস্তুরা উপেক্ষিত
Thus,Dr.Upen Biswas projected as a national icon to kill Lalu Prasad politically was killed politically in Bengal by the refugees.


After independence,it is perhaps for the first time that the cabinet has no refugee face to represent Dalit refugees.
Keeping in mind the continuous persecution and ethnic cleansing of Adivasi people we should understand the urgency of Dalit Bengali refugees and leaders to align with respective ruling parties in different states as survival kit as they have been converted as mobile bonded vote bank as Indian Muslims are.
I am concerned with Bengali dalit refugees and NIKHIL BHARAT BANGALI UDBASTU SAMANWAY SAMITEE has its network all over India specifically in twenty two states where refugees resettled them.I am not bothered about the leadership and stand with NIKHIL BHARAT BANGALI UDBASTU SAMANWAY SAMITEE  and its organization and cause to ensure civic and human rights and citizenship for Bengali dalit refugees as I always refrain to stand with any politician whatever may come.
I am trying my best to explain in depth the point raised by Dr.Biswas in a turmoil time while RSS Handed over Assam and North East to ULFA to make in Gujarat in Assam.Bengali Dalit refugees are not represented in Assam or Bengal not to mention the central government.
Palash Biswas

Nagpur.NIKHIL BHARAT BANGALI UDBASTU SAMANWAY SAMITEE President Dr.Subodh Biswas complains that Bengali Refuggees have no representation in Mamata`s news Cabinet.
The Matua leader Manjul Krishna Thakur and former CBI official famous for nabbing Lalu Prasad Yadav in fodder scam used to represent Bengali Refugees as late Kanti Biswas represented Bengali dalit refugees during Left regime.Earlier late Aporva Lal Majumdar who played key role with Dr.Gunodhar Burman to ensure reservation in banks,had been the speaker in Bengal Assembly during Congress regime.

Let me clarify,I belong to a dalit refugee family resettled in the Himalayan Terai and my late father Pulin Babu tried life long to unite Bengali refugees as they remain deprived of civic and human rights and stand stripped of citizenship.I may not betray the dalit refugee case and would not desert my people.

Most of the partition victim Bengali Dalit refugees were ejected out of their homeland east Bengal as well as West Bengal to reorganise the demography to sustain the dominance of the hegemony.Our people have been scattered all countrywide and a very few percentage of them have been resettled in Adivasi landscape of India.

Keeping in mind the continuous persecution and ethnic cleansing of Adivasi people we should understand the urgency of Dalit Bengali refugees and leaders to align with respective ruling parties in different states as survival kit as they have been converted as mobile bonded vote bank as Indian Muslims are.

Dr.Subodh Biswas is no exception as he has to make political alliances in different scenario.I do not bother about his politics as I never bothered about my father`s politics as he used to support Congress and had to stand against my cause.

I am concerned with Bengali dalit refugees and NIKHIL BHARAT BANGALI UDBASTU SAMANWAY SAMITEE has its network all over India specifically in twenty two states where refugees resettled them.I am not bothered about the leadership and stand with NIKHIL BHARAT BANGALI UDBASTU SAMANWAY SAMITEE  and its organization and cause to ensure civic and human rights and citizenship for Bengali dalit refugees as I always refrain to stand with any politician whatever may come.

Dr.Subodh Biswas knows beyond doubt that I have nothing to do with politics.I stand with the deprived masses and have nothing to do with the leaders converted as politician as we have to agenda to unite every Indian Citizen to achieve the dream destination of freedom fighters and the ultimate objective of justice and equality under the agenda of Annihilation of caste,Mission Ambedkar.

I am trying my best to explain indepth the point raised by Dr.Biswas in a turmoil time while RSS Handed over Assam and North East to ULFA to make in Gujarat in Assam.Bengali Dalit refugees are not represented in Assam or Bengal not to mention the central government.

I have no problem to stand with my people and their organization at all.Because I am not supporting any political party or leader.As Subodh has done an excellent job to organize the refugees,I have to stand with him for refugee cause irrespective of his politics.

Matua leader and the elder son of Congress minister and MP PR Thakur,the grand son of Guruchand Thakur crossed fence and joined TMC to become MP.After his death,his widow Mamata Thakur is the present MP.Meanwhile Manul joined BJP as his son was the BJP candidate in Bangaon Loksabha constituency and Manjul had to resign.Now Matua Home has become a batttlefield and Mamata Banerjee opt for an IAS officer to represent Gaighta where Matua headquarter Thakur Nagar is suituated.CPI filded eminent Dalit writre Kapil Krishna Tahakur for KapilThakur MP`s name sake and he lost.Matua clan has no representation in the state assembly.

On the other hand,DR.Upen Biswas was the minister in the department of scheduled caste welfare affairs.He failed miserably to represent refugees.

Mamata Bannerjee reopened every other case but did not order an investigation in Marichjhanpi genocide case whereas it was Rd Upen Biswas who used to raise Marichjhanpi voice until he became minister.He was a refugee leader and he remained almost underground or absconding during last tenure of Mamta Bannerjee rule.

Thus,Dr.Upen Biswas projected as a national icon to kill Lalu Prasad politically was killed politically in Bengal by the refugees.

After independence,it is perhaps for the first time that the cabinet has no refugee face to represent Dalit refugees.
Dr.subodh Biswas wrote:

মাননীয়া মমতা ব্যানার্জীর মন্ত্রী সভায় উদ্বাস্তুরা উপেক্ষিত,.........
উদ্বাস্তু ভোটবাংক পশ্চিম বাংলার রাজনীতিতে নির্নায়ক ভূমিকা বহনকরে। যারা মূখ্যমন্ত্রী নির্বাচিত করছেন,তারা মন্ত্রীপরিষদের ধারের কাছেও নেই।
মতুয়াদের দিদি মমতা,তাদের ও বৈমূখ করেছেন, বৈমূখ করেছেন নমশূদ্রদের। রাজবংশি ও পন্ড্রদের আশাজনক ভাগীদারি দেন নাই। আদিবাসীদের অবস্থা তথৈবচ। তাহলে মমতা দিদি কাদের নিয়ে মন্ত্রী পরিষদ গঠনকরলেন । পিছিয়ে পড়া মানুষের মন্ত্রীপরিষদে প্রতিনিধিত্ব নাথাকলে,তাদের সমশ্যা কিভাবে সমাধান হবে। যারা ২৪ ঘন্টা এ সির ঠান্ডা হাওয়ায় যারা থাকেন,ধনসম্পদের মাঝে জীবন কাটান,জীবনের অর্থই যাদেরকাছে উপভোগ,(ইনজয়) তারা গরীবমানুষের সমস্যার গভিরতা কিভাবে উপলব্দী করবেন।

সবমিলিয়ে অভিযাত্ব মন্ত্রীপরিষদ। মহত্বা গান্ধি ল্যাংটা সেজে ভারতের দলিতদের ভিক্ষারী করার ব্যাবস্থা করেগেছেন।জ্যোতিবাবু উদ্বাস্তু সেজে উদ্বাস্তুদের , কোমর ভেঙ্গে দিয়েগেছেন। দিদি তাতের শাড়ী আর হাওআই চপ্পল দেখিয়ে পিছিয়ে পড়া মানুষদের ,পিছনে ফেলার চিরস্থায়ী ব্যবস্থাকরে চলছেন।এটাই বাঙালি জাতির দূর্ভাগ্য।