मां काली को दंगाई बना दिया बंगाल में तो बंट गया भारत!
उसी दंगा फसाद से बनायेंगे हिंदू राष्ट्र?
#Embroidered Quilt#समयांतर का असहिष्णुता पर फोकस #Jasimuddin#Nakshi Kanthar maath#Sojan Badia #Nandikar #Ujantoli#Gautam Haldar
পুরানো সেই দিনের কথা: Memoirs of a Hindu Daughter of a Muslim Family which gave up BEEF!
उनका मिशन: the strategy and strategic marketing of blind nationalism based in religious identity!
उनका मिशन:The institution of the religious partition and the Politics of religion
उनका मिशन: The Economics of Making in!
https://www.youtube.com/watch?v=mgbxKZ9nqVg
Palash Biswas
इतिहास और वर्तमान का संबंध
साक्षात्कार प्रसिद्ध इतिहासकार और चिंतक रोमिला थापर से रणबीर चक्रवर्ती की इतिहास, समाज और संस्कृति पर बातचीत (प्रस्तुत साक्षात्कार, अंग्रेजी पाक्षिक फ्रंटलाइन में प्रकाशित, रोमिला थापर के लंबे साक्षात्कार ‘लिंकिंग द पास्ट एंड द प्रेजेंटÓ का कुछ संपादित रूप है। इसकी अगली किस्त आगामी अंक में प्रकाशित होगी। ) भारत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित इतिहासकारों में [Read the Rest…]
मित्रों को पढ़ायें :
मेरे सामने समयांतर का नवंबर अंक है जो कल ही डाक से मिला है।पच्चीस साल हो गये हैं इस इलाके में।बाजार में हर शख्स मुझे और सविता बाबू को जानता है।फल वाले सब्जी वाले मछली वाले मौका मिलते ही सविता बाबू को कुछ न कुछ थमा देते हैं और मोल भाव भी नहीं करते।और तो और,कोलकाता में मिलन मेले में वे खाली हाथ चली गयीं तो पूरे पांच हजार के कपड़े लत्ते बांध दिये और गट्ठर उटाकर वे घर लौटीं तो मैंने पूछा कि बिन पैसे तुम यह सब क्या उठा लायी हो तो वे बोलीं कि उनने कहा कि हम सभी आपको जानते हैं ,घर पहुंचकर पैसे वसूल लेंगे।
मगर डाकिया नया है और वह हमें नहीं जानता।समयांतर और तीसरी दुनिया के अलावा डाक से कुछ आता भी नहीं है।हमारा कुछ भी निवेश नहीं है,तो वे कागजात भी नहीं आते जो इन दिनों का डाक है।डाकिया को पूछताछ में कई दिन लग गये।उनका धन्यवाद कि अब भी डाक खोज खाजकर पते तक पहुंच जाती है।
वरना कूरियर वाले तो न मालूम हुआ पता तो काहे को झख मारे,सीधे वापस।बैंकवाले खाता खोलने पर चेकबुकवा पते पर भेजते हैं।कूरियर से और अमूमन वह कूरियर पते तक नहीं पहुंचता।
खैर मनाइये कि बाकी तमाम महकमों की तरह निजीकरण मुहिम के बावजूद डाकसेवा फिलहाल जारी है।
समयांतर के ताजा अंक में पंकजदा का लिखा संपादकीय,आनंद तेलतुंबड़े,राम प्रकाश अनंत और महेंद्र मिश्र के लेख हैं।जरुर पढ़ें।
इस अंक में सबसे खास है,इतिहास और वर्तमानका संबंध,सुप्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर से रणवीर चक्रवर्ती की बातचीत।
आज के प्रवचन का मकसद है,अखंड और विभाजित भारत की लोक जमीन पर खड़े होकर देहात भारतकी धड़कनों को सुनना।
बंगाल में एक कवि हुआ करते थे,जसीमुद्दीन।
पल्ली कवि जसीमुद्दीन।
कविता के अलावा लोकसंगीत से भी उनका गहरा ताल्लुकात है,उतना ही जितना अब्बासुद्दीन या सचिन देव बर्मन का।
दंगा फसाद पर उनकी दो बेहद खास कृतियां हैं।
नक्शी कांथार माठ और सोजन बादियार घाट।
ईस्ट इंडिया कंपनी की अवैध संतानों ने कैसे इस भारत तीर्थ को बंटवारे का शिकार बना दिया और कैसे आज भी बंटवारे का सिलसिला जारी है,यह त्रासदी बंगाल के गांवों की समूची खुशबू और तमाम झांकियों के साथ इस देहाती कवि,पल्ली कवि ने अपनी इन कृतियों में अपने कलेजे के खून के साथ पेश की है।
दोनों कृतियां क्लासिक हैं और दुनियाभर में मशहूर हैं और हम फिलहाल नहीं जानते कि क्या जसीमुद्दीन की आत्मा से खंडित भारत की जनता का कोई परिचय है या नहीं।
क्योंकि बंगाल में स्वतंत्रता सेनानियों को जैसे भूल गये लोग,इस मुसलमान कवि को भी लोग भूल जाते अगर नांदीकार जैसे थिएटर ग्रुप और कल्याणी जैसे कस्बों के रंगकर्मी सोजन बादियार घाट और नक्शी कांथार माठ का मंचन नहीं करते।
जोगेंद्र बाबू के गृहक्षेत्र नोहाटा से माकपा के पूर्व विधायक कामरेड रवि सरकार के बेटे,हमारे अफसर मित्र गौतम सरकार जसीमुद्दीन अकादमी चलाते रहे हैं।
जसीमुद्दीन पर अकादमी की पत्रिका उजानतली में विशेष सामग्री है,जिन्हं आज के प्रवचन में संदर्भ पंरसंग के मुताबिक साझा करना है।
इस विशेषांक में हमारे मित्र बंगाल के प्रमुख दलित साहित्यकार कपिल कृष्ण ठाकुर का एक आलेख सोजन बेदियार घाट पर केंद्रित है।तो हिंदू मुसलमान एकता पर जसीमुद्दीन के लिखे दस्तावेज भी हैं।
अखंड बंगाल के सबसे मशहूर लोककवि विजय सरकार और हमारे फुफेर भाई निताई सरकारी की पत्नी सुरमा भाभी की वे दादाजी हैं,जिन्हें जसीमुद्दीन ने कोलकाता में इनट्रोड्युस किया कोलकाता विश्वविद्यालय में विद्वतजनों की एक सभा में।
उन लोककवि विजय सरकार का मशहूर गीत नक्शी कांथार माठ भी इस अंक में हैं।बांग्लादेशी आलोचक हेना का जसीमुद्दीन पर आलेख है बहुआयामी।यह सब शेयर कराना है।
नक्शी कांथार माठ और सोजन बादियार घाट दोनों मूलतः लोक में रची बसी ग्राम बांग्ला की प्रम कथा है लेकिन उसमें समामाजिक यथार्थ का दिल दहलाने वाले सच का तानाबाना बेमिसाल है।
वैसा ही जैसे प्यारे अफजल प्रेम कथा है और सीधे राष्ट्र के चरित्र का पर्दाफाश करती है।इसपर हम बोले हैं।लिखा भी है।
सोजन बादिया का सबसे धांशू सीन वह है जहां मुसलमान सोजन और नमोशूद्र दुली के प्रेम और विवाह के अपराध में जमींदार की कचहरी से नमोशूद्र के लड़ाकों को मां काली की पूजा के फूल बांटकर मुसलमानों के सफाये के लिए ललकारा जाता है।हुक्मउदूली पर बेदखली का फरमान जारी होता है।
हमने बुजुर्गों से जो किस्से पूर्वी बंगाल के दंगोें से सुने हैं,उनमें भी कहा जाता रहा है कि खुद मां काली अपने कड़ग से मुसलामानो का सफाया कर रही थीं।चूंकि पद्मबिल के दंगे से बंगाल में दंगों का सिलसिला तब शुरु हुआ जब जमींदारी के हिदुत्व ने मां काली को ही दंगाई बना दिया और दलितों के दिमाग में मां काली के ऐसी खौफनाक तस्वीरें चस्पां कर दी हैं जो पीढ़ियों के बावजूद नहीं मिटी है।सविता का ननिहाल उसी पद्मबिल में था और वे लोग उस दंगे को चश्मदीद गवाह रहे हैं।वैसे ही हरिचांद गुरुचांद परिवार की पीआर ठाकुर की बहन हमारी नानी,जेठिमां की मां को पद्मबिल का वह वाकया याद रहा है।
हमने मां काली की वे खौफनाक रोंगेटे खड़े करने वाले दंगाई दृश्यबंध बचपन में खूब देखे हैं।हमारे लोग उन तस्वीरों से अभीतक उबरे नहीं हैं और हिंदुत्व की पैदल सेना में तब्दील हैं।
बहरहाल सोजन दुली की दुनिया जैसे उजड़ती है,वैसे ही उजडते है नमोशूद्र और मुसलमान प्रजाजनों के गांव और वहां जमींदारी का हाट बाजार में तब्दील।
यह कथा आज भी भयानक प्रासंगिक है।यूपी के दंगों में देसी कामधंधों पर दंगों का असली हमला होता रहा है।लोग मारे गये सो को मारे गये लेकिन देसी उत्पादन प्रणाली खत्म। यही किस्सा उनका मिशन भी है।
नक्शी कांथार माठ भी प्रेमकहानी है।रुपाई और साजू की प्रलयंकर प्रेमकथा है।लव एट फर्स्ट साइट।
धान पर दखल की लड़ाई के दंगे में तब्दील हो जाने पर दंगाई बन गया रुपाई गिरफ्तारी और सजा के डर से भाग जाता है। लापता हो जाता है रुपाई।
और उसकी यादें कथरी के नक्शे के ताने बाने में नये सिरे से रचती जीती है साजू।
और उन्हीं यादों में दम तोड़ देती हैं।रुपाई आकेर लौटता है तो उसे साजू की कब्र पर नक्शी कांथा मिलता है,जो दंगों के खून से लहूलुहान है।
हमने मेरठ दंगों पर अपने लघु उपन्यास उनका मिशन का अधूरा पाठ तीन वीडियो में जारी पहले ही किया है।पाठकों की दिलचस्पी नहीं हैं,जानकर आगे पाठ स्थगित है।
यह लघु उपन्यास बांग्ला में लिखकर 2002 -2003 में बांग्ला अकादमी को तब सौंपा जब इसके अध्यक्ष अन्नदाशंकर राय हुआ करते थे।उसका क्या हुआ हमें नहीं मालूम लेकिन हिंदी में भी पुस्तकाकार इसका प्रकाशन हुआ नहीं है।
हमें इसकी परवाह भी नहीं है।
अमेरिका सावधान छपवाने में हमारी गरज नहीं है प्रकाशकों की दिलचस्पी के बावजूद तो बाकी जो रचा लिखा बोला,वे सीधे जनता के हवाले हैं।
फिरभी आखिरी पुस्तक मेले में,शायद 2003 में जब हम कोलकाता पुस्तक मेले गये तो जसीमुद्दीन अकादमी में जसीमुद्दीन के बेटे खुरशीद अनवर से वैसे ही मुलाकात हो गयी जैसे भाटियाली संगीत की किंवदंती अब्बासुद्दीन के बेटे बेटी से हमारी मुलाकात होती रही है।
खुरशीद को टांगकर मैं सीधे वाणी प्रकाशन के स्टाल ले गया और उन्हें खुरशीद के हाथों नक्शी कांथार माठ का अंग्रेजी अनुवाद,वह किताब सौंप दी।हमने आग्रह किया कि जसीमुद्दीन के रचनासग्र से हिंदी जगत को परिचित कराने का काम वे करें।
अब हम कोई महान विभूति बाबा वगैरह न हुए,तो कुछ हुआ कि नहीं ,हमें मालूम नहीं,लेकिन हम इस शर्म में कि हम हिंदी में जसीमुद्दीन का परिचय किसी से नहीं करवा सकें,फिर खुरशीद भाई से दुआ सलाम भी कर नहीं सकें।यह वीडियो प्राश्चित्त भी है।
वैसे अब्बासउद्दीन और जसीमुद्दीन का कृतज्ञ भारतीय सिनेमा और संगीत को भी होना चाहिए।इन दोनों ने मिलकर ही आल इंडिया रेडियो के लिए मैमन सिंह गीतिमाला,वहीं मैमन सिंह,जहां से तसलिमा नसरीन हैं,भाटियाली और ग्राम बांग्ला का संगीत गीत तमामो खोज निकाले।
मेरे पिता पुलिन बाबू महाप्राण जोगेंद्र नाथ मंडल के साथ थे तो महाप्राण के साथी थे बहुत खास ज्ञानेंद्र नाथ मंडल।
महाप्राण के बेटे जगदीश चंद्र मंडल ने उनपर सिलिसिलेवार किताबें लिखी हैं तो ज्ञानेंद्र बाबू का बेटा गौतम हालदार बंगाल में ग्रुप थिएटर का रुद्रप्रसाद सेनगुप्त के बाद सबसे बड़े आइकन हैं।हम तीनों की दोस्ती 2000 के आसपास घनी हो गयी।
रुद्र प्रसाद की पत्नी मशहूर रंगकर्मी,सत्यजीत रे की फिल्म घरे बाइरे की नायिका स्वातिलेखा इलाहाबाद से हैं और वे डा.मानस मुकुल दास की छात्रा हैं,जो हमारे भी गुरु हैं।कमसकम इंगलिश पोयट्री में।
उन्हीं रुद्रप्रसाद औरस्वाति लेखा की बेटी बंगाल की मशहूर अदाकारा सोहिनी का पहला विवाह गौतम हालदार से हुआ तो इस परिवार से हमारी अंतरंगता भी गहराती गयी।उऩका अलगाव हो गया और सोहिनी ने दूसरी शादी कर ली है और दोनों से बरसों से हमारी मुलाकात नहीं है।दोनों बेहतरीन कलाकार हैं।
हमारी शामें बंधुआ हैं लेकिन रुद्रप्रसाद जी का आभार कि वे हमें नांदीकार के हर नाटक के मंचन के मौके पर न्यौता भेजते रहे और हम एकोबार जा नहीं सकें।
हादसा यह हुआ कि सोजन बादियार घाट के रिहर्सल में तो हम हाजिर रहे हैं,नाटक के मंचन पर नहीं।सोजन बादिया के गीत गाकर हजारों लोगों के दिलोदिमाग को मथते हुए गौतम को देखा है,लेकिन नाटक देखना नहीं हुआ।
Meghnad Badh Kabya in HD | Bangla Natok: Natyachitra by ...
https://www.youtube.com/watch?v=docXORfapvk
Mar 7, 2012 - Uploaded by Anandabazar Patrika
Jogoter Anondo Jogge (জগতের আনন্দ যজ্ঞে) - Goutam Halder - Duration: 4:52. ... Gautam Halder- A Casual Love for Theatre Acting to ...
Haoai I Naye Natua I Group Theatre I Rehearsal I Goutam ...
https://www.youtube.com/watch?v=AAj9mfBmcPg
Jan 26, 2015 - Uploaded by Kaahon Wall
Haoai I Naye Natua I Group Theatre I Rehearsal I Goutam Halder... Goutam Halder I Theatre I Dance I Body ...
Poulomi & Goutam Halder Live TUMKO DEKHA &TUM ITNA ...
https://www.youtube.com/watch?v=Qyj7DW-Ywmk
May 24, 2015 - Uploaded by suman ghose dastidar
Live perfornance of Artist Poulomi & Goutam Halder Short Medley of Songs Tumko Dekha To Ye Khayal aaya ...
TARA NEWZ TAROKA SANLAP GOUTAM HALDAR PART 2 ...
https://www.youtube.com/watch?v=2sHAYRhlx_k
Jan 11, 2011 - Uploaded by taratvop
TARA NEWZ TAROKA SANLAP GOUTAM HALDAR PART 2 ....Goutam Halder I Theatre I Dance I ...
Jogoter Anondo Jogge (জগতের আনন্দ যজ্ঞে) - Goutam Halder ...
https://www.youtube.com/watch?v=BoiEnYPoO04
Apr 24, 2014 - Uploaded by musician4theworld
Jogoter Anondo Jogge (জগতের আনন্দ যজ্ঞে) - Goutam Halder ... Can we all create a Gautam Halder fan club and jointly try to ...
Gautam Halder- A Casual Love for Theatre Acting to ...
https://www.youtube.com/watch?v=TWH7hPq-_5Q
Jun 24, 2014 - Uploaded by Kaahon Wall
Goutam halder, one of the most important theatre actors in Bengali Theatre, walks down his memory lane and ...
Goutam Halder I Theatre I Dance I Body Movement I Theatre ...
https://www.youtube.com/watch?v=7SgyF6J3cNQ
Dec 18, 2014 - Uploaded by Kaahon Wall
While on the topic of theatre acting, Goutam Haldar talks about how dance forms can be used to stress upon ...
Haoai I Naye Natua I Group Theatre I Rehearsal I Goutam ...
https://www.youtube.com/watch?v=JX2dWBdXKWo
Jan 26, 2015 - Uploaded by Kaahon Wall
Haoai I Naye Natua I Group Theatre I Rehearsal I Goutam Halder... Goutam Halder I Theatre I Dance I Body ...
Goutam Halder - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=saAT2TFI1Hc
Jan 10, 2014 - Uploaded by Blank Verse
5:08. Goutam Halder I Theatre I Dance I Body Movement I Theatre Acting - Duration: 5:17. by Kaahon Wall 789 ...
असहिष्णुता से असहमति,आनंद तेलतुंबड़े का आलेख
छ घटनाएं सारी सीमाओं के बावजूद ऐसी चिंगारी का काम कर डालती हैं जो लपटों में बदल अंतत: सारे संदर्भ को नया ही आयाम दे देती हैं। केंद्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित कन्नड़ लेखक एम.एम. कलबुर्गी की हत्या पर अकादेमी द्वारा चुप्पी लगा देने की प्रतिक्रिया स्वरूप शुरू हुए सामान्य से विरोध ने जिस तरह से साहित्य अकादेमी पुरस्कारों को लौटाने के सिलसिले में बदला, वह सामान्य घटना नहीं है। समयांतर के पिछले अंक में इसकी शुरुआत करने वाले पर गंभीर आशंका जताई गई थी। अपनी जगह वह यथावत है। वैसे उस टिप्पणी (‘सार्वजनिक विरोध का निजी चेहरा’, दिल्ली मेल) में यह भी कहा गया था कि ”हम जिस माहौल में रह रहे हैं वह ऐसे संकट का दौर है जिसका विरोध निश्चित तौर पर और समय रहते किया जाना चाहिए क्योंकि यह हमारे समाज के मूल आधार सहिष्णुता और विविधता को ही खत्म करने पर उतारू नहीं है बल्कि यह हमें हर तरह की तार्किकता और वैज्ञानिक समझ से वंचित कर देने का प्रयास भी है। इसलिए यह चिंता किसी ‘अकेले लेखक’ या कलाकार की न तो हो सकती है और न ही होनी चाहिए। पर यह विरोध समझ-बूझकर किया जाना चाहिए। बेहतर तो यह है कि यह सामूहिक हो क्योंकि आज व्यवस्था जिस तरह की है और वह जिस हद तक असंवेदनशील नजर आ रही है, उसमें इक्की-दुक्की आवाजों की परवाह करने वाला कोई नहीं है।”
प्रसन्नता की बात है कि पुरस्कार लौटाने का यह कदम मात्र किसी एक व्यक्ति, भाषा या क्षेत्र तक सीमित न रह कर राष्ट्रव्यापी रूप ले चुका है। अब तो चित्रकार, फिल्मकार, वैज्ञानिक और इतिहासकार भी इस विरोध का हिस्सा हो चुके हैं। आशा करनी चाहिए, अगर सरकार ने समय रहते उचित कदम नहीं उठाए तो, अन्य बौद्धिक वर्ग भी देश की प्रगति, वैज्ञानिक विकास, तार्किक चिंतन, सांस्कृतिक समरसता, सहिष्णुता और विविधता को बचाने की इस मुहिम में शामिल होने में देर नहीं लगाएंगे।
हर लेखक या उस तरह से कोई भी बुद्धिजीवी अंतत: एक समाज की ही देन होता है। वह उसी के दायरे में विकसित होता है और स्वयं को अभिव्यक्त करता है। दूसरे शब्दों में उसका विकास समाज के विकास से गहरे जुड़ा होता है। ऐसे दौर में जब देश के शासक वर्ग का एक हिस्सा निहित स्वार्थों के लिए आंखमूंद कर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से सांप्रदायिकता को और अतार्किक स्तर पर हमारे विगत को महिमा मंडित करने पर तुला हो, वैज्ञानिकता और वस्तुनिष्ठता की मजाक उड़ाता नजर आ रहा हो, ऐसे में समाज के भविष्य को लेकर देश के रचनाकारों, चिंतकों और बुद्धिजीवी वर्ग में अगर चिंता न हो तो यह जीवंत समाज का लक्षण नहीं माना जा सकता।
प्रतिक्रियावादी विचारों का बढ़ता खतरा
देखा जाए तो ये चिंताएं, जो अंतत: दुनिया को देखने-समझने और उसे बदलने की आधारभूत मानवीय प्रवृत्ति से जुड़ी हैं, किस व्यापक खतरे का सामने कर रही हैं इसका उदाहरण पिछले सिर्फ डेढ़ साल के वक्फे में पनपे प्रतिक्रियावादी विचारों और अभिव्यक्तियों में देखा जा सकता है। आश्चर्य की बात यह है कि यह सब सत्ता के संरक्षण में हो रहा है। देश को दुनिया के सबसे विकासशील देश में बदलने का सपना दिखलाने वाला प्रधानमंत्री एक आधुनिक चिकित्सालय का उद्घाटन करते हुए, यह कहते नहीं झिझकता कि हमारे यहां प्राचीन काल में चिकित्सा का स्तर यह था कि जानवर के सर को आदमी के सर पर ट्रांसप्लांट किया जाता था। बिना सहवास के, जैसा कि कर्ण के संदर्भ में हुआ था, संतान उत्पन्न की जा सकती थी। उनके अनुसार हमारे यहां जेनेटिक साइंस व प्लास्टिक सर्जरी अनादिकाल से विकसित थे। गुजरात में स्कूली पाठ्यक्रमों में एक ऐसे व्यक्ति की किताब को पढ़ाया जा रहा है जो कहता है कि महाभारत काल में आईवीएफ की तकनीक उपलब्ध थी।
एक और महाशय विज्ञान कांग्रेस में देश के चुनींदा वैज्ञानिकों के सामने दावा करने से जरा नहीं झिझकते कि हमारे पुष्पक विमान ग्रहों के बीच उड़ान भरते थे।
ऐसा प्रतीत होने लगा था मानो नया निजाम और उसके समर्थक अब तक के इतिहास और विज्ञान के अध्ययनों और उनकी उपलब्धियों को जड़-मूल से उखाडऩे पर उतारू हैं। बहुमत के नशे में चूर सत्ताधारी दल ने ज्ञान-विज्ञान की विश्वस्तरीय संस्थाओं को तहस-नहस करने का जैसे बीड़ा ही उठा लिया है। इस विवेकहीनता का सबसे बड़ा उदाहरण आईआईटी, दिल्ली जैसी संस्था पर एक स्वामी का थोपा जाना है। शिक्षण और शोध संस्थानों पर जिस तरह से और जिस तरह के अयोग्य और कुंद व्यक्तियों को सरकार लादने पर लगी हुई है वह आतंककारी है। सरकार का अहंकार किस स्तर का है इसका उदाहरण पुणे का फिल्म व टेलीविजन संस्थान है जिस पर एक दोयम दर्जे के अभिनेता को थोप दिया गया है। सरकार ने लगभग पांच महीने चले छात्रों के आंदोलन की अनसुनी करके जिस तरह की निर्ममता का परिचय दिया है वह बतलाता है कि इस सरकार का किसी भी तरह के लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास नहीं है। वह लोकतंत्र का इस्तेमाल कर इस देश को एक बर्बर मध्यकालीन धार्मिक राज्य में को बदल देना चाहती है।
एफटीआईआई का संदेश
पर देखने की बात यह है कि एफटीआईआई के छात्रों को मजबूर करने का जो संदेश देश के बुद्धिजीवियों और विचारवान तबके तक गया है उसने सरकार की अडिय़ल और दमनकारी छवि को मजबूत करने और दूसरी ओर उसका विरोध करने की लहर के जन्म में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिन फिल्मकारों ने अपने राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाने की बात की है उनका तो सीधा संबंध ही एफटीआईआई के घटनाचक्र से है।
इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं रही है कि आज की तारीख तक सात सौ से ज्यादा देश के शीर्ष से लेकर युवातर वैज्ञानिकों ने इस अवैज्ञानिक, अतार्किक और सांप्रदायिक माहौल के विरोध में जारी बयान पर हस्ताक्षर किए हैं। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 87 वर्षीय पीएम भार्गव जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के वैज्ञानिक का तो स्पष्ट ही कहना है कि ”तार्किकता और रेशनलिज्म, जो कि विज्ञान की आधारशिला होते हैं, खतरे में हैं। इस सरकार के मन में विज्ञान के प्रति कोई सम्मान नहीं है।ÓÓ और इसमें दो राय नहीं हो सकती। पर संभवत: इसीलिए आश्चर्य यह है कि ये वैज्ञानिक तब क्यों नहीं बोले जब इस आक्रमण की शुरुआत हो रही थी। विज्ञान कांग्रेस को प्रमादियों द्वारा कब्जा लिए जाने पर भारतीय वैज्ञानिकों की तब की चुप्पी पर दुनिया भर में सवाल उठाए जा रहे थे और उनकी खिल्ली उड़ाई जा रही थी।
यह स्थिति इसलिए आई कि भारत को तीसरी दुनिया में प्रगतिशील, उदार, ज्ञान-विज्ञान के लिए समर्पित और एक महत्त्वपूर्ण लोकतांत्रिक देश के रूप में जाना जाता था। एक ऐसा देश और समाज जहां समानता और सर्वधर्म समभाव का आदर्श प्राप्त करने का प्रयत्न अपनी सारी सीमाओं के बावजूद सतत जारी था। इसमें कई खामियां थीं पर ऐसा कभी नहीं था कि विगत सात दशकों में सत्ता पर आई किसी सरकार ने कट्टरपंथी, सांप्रदायिक और अलोकतांत्रिक तत्वों को इस तरह से खुलेआम बढ़ावा दिया हो। सांप्रदायिकता और हत्याओं के आरोपियों को केंद्र में जगह दी हो।
वैज्ञानिकों की वह प्रारंभिक चुप्पी के दो संभावित कारण समझ में आते हैं। पहला, पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई सरकार और उसके नेतृत्व की दमनकारी छवि का आतंक। और दूसरा, यह कि वैज्ञानिक समुदाय नई सरकार और इसके नेतृत्व को कुछ समय देना चाहता हो।
व्यक्ति नहीं समाज के अस्तित्व का सवाल
असल में लेखकों के विरोध ने देश के शेष चेतना संपन्न और विवेकवान बौद्धिक तबके को झिंझोड़ कर रख दिया है। समाज का यह प्रभावशाली और चेतना संपन्न वर्ग, जो पिछले डेढ़ वर्ष से लगभग स्तब्ध था, अपनी तंद्रा से जाग गया है। उसे समझते देर नहीं लगी है कि पानी सर से गुजर गया है। यह संकट मात्र उसी के अस्तित्व से नहीं जुड़ा है बल्कि उस समाज के अस्तित्व का सवाल भी इसी में निहित है जिसका वह अविभाज्य अंग है। वह तभी बच सकता है जब यह समाज बचेगा। उसके सामने बहुत दूर के नहीं आसपास के ही उदाहरण हैं कि किस तरह से एक नहीं अनेकों समाज और देश सत्ताधारियों और सत्ताकामियों की महत्त्वाकांक्षाओं और तिकड़मों के चलते तबाही और अराजकता के शिकार हुए हैं। यहां भी जिस तरह से पुराणपंथ को स्थापित किया जा रहा है वह मूलत: एक वर्ग विशेष की सत्ता को स्थायी बनाए रखने से ही जुड़ा है। बहुसंख्यकवाद मूलत: लोकतंत्र के माध्यम से सत्ता पर काबिज होने का सबसे आजमाया हुआ पर विनाशकारी तरीका है। यह तरीका नए समाज के निर्माण के किसी भी स्वप्न से रहित एक परंपरावादी सत्ताधारी वर्ग के हितों का ही पोषण करता है। इसके उदाहरण एशिया और अफ्रीका के कई क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं। प्रश्न है क्या हम भी उन्हीं देशों की तरह धार्मिक और रूढि़वादी होने की राह पर नहीं हैं? अब और तटस्थ रहने का समय नहीं है। यह विरोध सत्ता प्राप्त करने का नहीं है बल्कि ज्ञान को अपनी स्वाभाविक दशा में बढऩे देने का रास्ता सुनिश्चित करने का है। यह विरोध एक लोकतांत्रिक व्यवस्था व धर्मनिरेपक्ष समाज को बचाने का है। क्योंकि इस असहिष्णुता सफल होना भारतीय गणतंत्र की आधारभूत अवधारणा का ही अंत होना नहीं है बल्कि इस पूरे महादेश को असंतोष और अराजकता में धकेल देना है। यह निश्चय है कि देश की जनता इतनी आसानी से यह सब होने नहीं देगी। इससे आगे के पेजों को देखने लिये क्लिक करें NotNul.com
‘जो हमसे असहमत होते हैं, हम उनसे बहस नहीं करते, उन्हें खत्म कर देते हैं।’ बेनितो मुसोलिनी [द लासियो स्पीचेज (1936), अंतोनियो सांती द्वारा द बुक ऑफ इतालियन विज्डम में उद्धृत, सितादेल प्रेस, 2003, पृ.88। ]
देश में एक सचमुच की क्रांति शुरू हुई है। देश को फासीवादी गिरफ्त में जाने के इस पूरे वक्फे में जो बुद्धिजीवी तबका रीढ़विहीन दिखने की हद तक चुप रहता आया है, वह अचानक जाग उठा और उसने साहित्यिक पुरस्कारों को लौटाना शुरू कर दिया। जो बात 4 सितंबर को उदय प्रकाश द्वारा कुछ दिन पहले ही एक दूसरे साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त साथी लेखक एम.एम. कलबुर्गी की हत्या के खिलाफ पुरस्कार लौटाया जाना जमीर की एक हल्की झलक के रूप में दिखी, वह अब एक तूफान बन गई है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बहा ले गई और उन्हें अपने कुशासन के खिलाफ लोगों की गुहार पर अपनी रणनीतिक चुप्पी तोडऩी पड़ी। जब उदय प्रकाश ने अपना पुरस्कार लौटाया, उसके करीब एक महीने बाद दो साहित्यिक दिग्गजों नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी ने अपने पुरस्कार लौटा दिए, जिसने विरोध की बाढ़ को और तेज कर दिया। जब मैं यह लिख रहा हूं, 35 से अधिक उल्लेखनीय लेखक अपने पुरस्कार लौटा चुके हैं और यह गिनती अभी बढ़ती जा रही है। दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा चौतरफा हमलों के माहौल में यह सचमुच उल्लेखनीय है।
मोदी ने अब तक जो कहा है, उससे ऐसा लगता है कि उन्हें यह अंदाजा है कि यह उत्तर प्रदेश में महज इस अफवाह की बिना पर कि उन्होंने गोमांस खाया था और अपने घर में रख रखा था, एक बेकसूर 52 वर्षीय मुसलमान मो. अखलाक की भीड़ द्वारा पीट-पीट कर की गई हत्या और उसके 22 साल के बेटे को गंभीर रूप से जख्मी कर देने पर बुद्धिजीवियों के गुस्से की अभिव्यक्ति भर है। डॉ. दाभोलकर या कॉमरेड पानसरे की तो बात ही रहने दें, मोदी ने कलबुर्गी की हत्या के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा, जिसने बजाहिर तौर पर लेखकों के विरोध को जन्म दिया है। दादरी की हत्या पर बोलते हुए भी, उन्होंने महज इतना कहा कि यह ‘दुखद और दुर्भाग्यपूर्णÓ था और उन्होंने अपनी पार्टी के संगीत सोम—जो इत्तेफाक से गोमांस के निर्यात के धंधे से जुड़े थे—जैसे साथियों और साधु, साध्वियों और अपने परिवार (संघ) के द्वारा हत्या को मुखर रूप से जायज ठहराने पर कुछ भी नहीं कहा। एक तरफ तो उन्होंने बात को यह कह कर घुमाया कि उनकी सरकार का इससे कुछ लेना-देना नहीं है, वे विपक्षियों पर निशाना साधने की अपनी आदत को नहीं भूले और कहा कि वे सांप्रदायिकता फैला रहे हैं। राष्ट्र के जमीर की रहनुमाई करने वाले लेखकों के इस जारी विद्रोह पर मोदी में या सरकार में उनके साथियों में रत्ती भर पछतावा या शर्म का जरा सा भी अहसास नहीं था।
गोमांस पर पाबंदी
गोमांस पर पाबंदी इन सबसे गंदे दिमागों की सीधी सियासत है, क्योंकि यह मुसलमानों को निशाना बनाकर देश में बिखराव लाने के लिए इस्तेमाल की जाती है, मानो बुनियादी तौर पर वे ही गोमांस खाते हैं। जब लालू प्रसाद यादव ने कहा कि हिंदू भी गोमांस खाते हैं, तो यह तथ्य पर आधारित एक बयान था, लेकिन उसे मीडिया के बेवकूफों ने भड़का कर एक बड़ा विवाद बना दिया। अगर कोई नाम ही लेना चाहे तो दलित, आदिवासी, गैर-खेतिहर अन्य पिछड़ी जातियां, मुसलमान, ईसाई और पूरा का पूरा पूर्वोत्तर गोमांस खाता है और अगर इस पूरी आबादी को जोड़ लिया जाए तो यह देश की कुल आबादी के आधे से भी ज्यादा होगा। जिन तबकों के नाम लिए गए हैं, न तो उनमें से आने वाला हरेक इंसान गोमांस खाता है और न ही बाकी के सभी तथाकथित हिंदू गोमांस से परहेज करते हैं। इसलिए गोमांस पर पाबंदी लगाना लोगों की जिंदगी के बुनियादी अधिकार पर हमला है। हिंदुत्व ब्रिगेड संविधान (राज्य के नीति-निर्देशक उसूलों) के तहत अनुच्छेद 48से अपनी बेशर्मी ढंक रही है, जिसमें लिखा है, ”राज्य खेती और पशुपालन को आधुनिकी और वैज्ञानिक पद्धतियों पर संगठित करने की कोशिश करेगा और खासतौर से नस्लों के संरक्षण और बेहतरी के लिए कदम उठाएगा और गायों और दूसरे दुधारू तथा वाहक पशुओं की हत्या पर पाबंदी लगाएगा।ÓÓ यह शासक वर्गों के जनविरोधी चरित्र का एक सबूत है, जिन्होंने व्यवस्थित रूप से सभी नीति-निर्देशक उसूलों की अनदेखी की है, जिसमें से एक 10 साल के भीतर 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त और सार्वभौम शिक्षा देने की बात कही गई है और सिर्फ गाय के मुद्दे पर ही इतनी पाबंदी दिखाता है। गाय, इस मुल्क के भविष्य से ज्यादा अहम हो गई है। असल में, इस अनुच्छेद का मतलब आंख मूंद कर हर तरह की गाय की हत्या पर पाबंदी नहीं है, लेकिन इसको ऐसे तोड़ा-मरोड़ा गया है कि इसका यही मतलब निकले और यहां तक कि अदालतों ने भी बिना कोई सवाल उठाए इसे कबूल कर लिया है। इसके बावजूद, संविधान गाय की हत्या पर पाबंदी की बात करता है, गोमांस खाने पर पाबंदी की नहीं और गैर दुधारू मवेशियों का मांस खाने पर पाबंदी की तो और भी नहीं।
इस अनुच्छेद के जन्म के बारे में, गोमांस पर पाबंदी के पैरवीकारों को यह बात जरूर पता होनी चाहिए कि संविधान सभा के मुसलमान प्रतिनिधियों (संयुक्त प्रांत के एम/एस जेड.ए. लारी और असम के सैयद मुहम्मद सादुल्ला) ने हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करते हुए खुद अपनी मर्जी से इसको मंजूरी दी थी। हालांकि रूढि़वादी हिंदुओं की अतार्किकता इसे बुनियादी अधिकारों का हिस्सा बना देने की हद तक बढ़ गई थी। इसका श्रेय डॉ. आंबेडकर को जाता है कि एक जानवर के अधिकार को बुनियादी अधिकारों में शामिल करने से दुनिया में मुल्क का जो मखौल उड़ता, उससे उन्होंने मुल्क को बचा लिया। उन्होंने इस अनुच्छेद को इस तरह लिखा कि आने वाली पीढिय़ों के लिए इसकी एक वैज्ञानिक समीक्षा की गुंजाइश रहे। रूढि़वादी हिंदू सदस्यों नेअपनी दलीलों को भागवत गीता के आध्यात्मिक अर्थशास्त्र के रंग में रंग कर पेश किया था। वे नहीं जानते थे कि प्राचीन दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में गो हत्या पर पाबंदी का चलन था, जहां खेती में बोझ ढोने वाली ताकत के रूप में बैलों को इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन तकनीक और खानपान के तौर-तरीके में बदलाव के साथ (मांस के थोड़े में ज्यादा पौष्टिक भोजन होने के कारण)गाय की हत्या के असली अर्थशास्त्र ने गाय की रक्षा के ‘आध्यात्मिक’ अर्थशास्त्र की जगह ले ली। जहां तक तथ्यों की बात है, ब्राह्मण पुरोहित सबसे बड़े गो हत्यारे थे, जिसने मवेशियों की रक्षा करने के लिए बुद्ध को विद्रोह करने के लिए उकसाया। हिंदुत्व ताकतों की दलील एक गलत वक्त में दी जा रही, बेईमान और विकास विरोधी दलील है जो मुल्क को गीता के दौर में धकेल रही है।
गाय बनाम इंसान
इसे साफ-साफ कहा जाए कि दक्षिणपंथियों की गाय की सियासत, इंसानों के कत्लेमाम की सियासत है। यह महज झज्झर में पांच दलितों या दादरी में एक मुसलमान या उधमपुर में एक कश्मीरी ट्रक चालक के कत्लेआम की बात नहीं है, बल्कि यह मवेशी पालने वाले उन दसियों लाख किसानों के कत्लेआम की बात है, जो खेती में चल रही पहले से ही नुकसानदेह रुझानों और सामाजिक डार्विनवादी नवउदारवाद की वजह से तंगी में हैं। वे गायों को पालने के नकारात्मक आर्थिक इंतजाम के इस बढ़े हुए बोझ से पूरी तरह दब जाएंगे। मौजूदा माली इंतजाम इस पर निर्भर करता है कि अपनी उत्पादक उम्र पूरी कर लेने के बाद गायों को कत्लखाने को बेच दिया जाता है। आमतौर पर एक गाय को 3-4 बार बच्चे देने के बाद बेच दिया जाता है, क्योंकि इसके बाद उसकी दूध की पैदावार और उसकी गुणवत्ता दोनों में गिरावट आती है। भारत में, इसे 8-10 बार बच्चे देने तक खींचा जा सकता है, जिसके बाद वह कम से कम 3-4 साल जिंदा रहेगी। अगर इसके बाद उसे बेचा नहीं गया, तो पूरा माली इंतजाम उलट-पुलट हो जाएगा। और सिर्फ इतना ही नहीं किसानों के अलावा, ऐसे दसियों लाख लोग और हैं जो गाय के कत्लऔर खाल केकारोबार से अपना गुजर-बसर चलाते हैं, जिनमें सबसे ज्यादा दलित लोग हैं। वे लोग बेरोजगार हो जाएंगे। इसके साथ-साथ यह भी होगा कि दूसरे मांस की कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी उनके भोजन के संकट को बढ़ा देगी। पहले से ही भारतीयों में प्रोटीन की गंभीर कमी पाई जाती है, जो उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को नुकसान पहुंचाती है। इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो (आईएमआरबी) द्वारा किए गए एक उपभोक्ता सर्वेक्षण के मुताबिक 91 फीसदी शाकाहारियों और 85 फीसदी मांसाहारियों में प्रोटीन की कमी थी, जिसको प्रतिदिन शरीर के कुल वजन में, प्रति किलो वजन पर 1 ग्राम से कम प्रोटीन होने के आधार पर मापा जाता है। गरीब लोगों के लिए गोमांस प्रोटीन का एक अहम स्रोत है और इस पर पाबंदी का मतलब उनकी जान ले लेना होगा। इस खतरनाक भूत के बारे में हिंदुत्व की दलील एक जालसाजी है और सिर्फ भावनात्मक उत्पीडऩ ही है जब वे यह पलटकर पूछते हैं कि क्या आपकी मां की बूढ़ी उम्र हो जाने के बाद आप उसे छोड़ देते हैं।
गोरक्षा के आर्थिक पहलू पर पिछले दशक में अकादमिक क्षेत्र में शोध किए गए हैं। सबसे हालिया रिपोर्ट एस्थर गेहर्के और माइकल ग्रिम द्वारा प्रकाशित की गई है, जो हमारे अपने एम.वी. दांडेकर और के.एन. राज की खोजों की तस्दीक करती दिखाई पड़ती है। दांडेकर और राज दोनों ही हिंदू और शायद ब्राह्मण थे और जिन्होंने अपना शोध 1969 में प्रकाशित कराया था। दोनों की यह पक्की राय थी कि गाय की पूजा का चलन असल में भारत के मवेशी संसाधन के अधिक तर्कसंगत उपयोग के आड़े आता है। राज ने यहां तक सुझाव दिया था कि धर्म सिर्फ यही अकेली भूमिका निभाता था कि उसने अवांछित मवेशियों से छुटकारा पाने के तरीके तय किए। उन्होंने राय जाहिर की कि गायों को कत्लखाने भेजने के बजाए उत्तर भारतीय किसान जानबूझ कर भूखा रख कर या उसे खुला छोड़ कर, जिससे वे बांग्लादेश के कत्लखानों में चली जाती थीं, धीरे धीरे मौत देने के तरीके को तरजीह देते थे। जाहिर है कि पवित्र गाय के बारे में हिंदुत्ववादी उन्माद में इन तथ्यों पर कोई गौर नहीं किया गया है।
अबाध अतार्किकता
हिंदुत्व गिरोह की मक्कारी और बेईमानी इसके हजार सिरों में बसती है, जो एक ही साथ अनेक आवाजों में बात करता है। एक तरफ जबकि मोदी-शाह बिहार चुनावों की वजह से दादरी में पीट-पीट कर की गई हत्या पर नापंसदगी के लहजे में बोलने को मजबूर हुए तो दूसरी तरफ हिंदू दक्षिणपंथ की मूर्खता केमहास्रोत आरएसएस ने अपने मुखपत्र पांचजन्य के जरिए इसे जायज ठहराया। आवरण कथा के रूप में छापे गए एक लेख में कहा गया, ‘वेदों ने उस पापी की हत्या का आदेश दिया है, जो गाय की हत्या करता है। दादरी पीडि़त ने शायद अपने पापों के प्रभाव में गाय की हत्या की थी।’ इसमें उन लेखकों को फटकारा गया, जिन्होंने दादरी हत्या पर विरोध जताते हुए साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाए। उन्हें हिंदू भावनाओं के प्रति असंवेदनशील कहा गया। जैसी की आशंका थी, आरएसएस ने इस मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए कह दिया कि यह लेख संपादकीय नहीं था। उसने तो ऐसा कह दिया, लेकिन उसके बंदरों के गिरोह ने उनकी अतार्किकता के साथ असहमति जताने का साहस करने वाले लोगों को धमकाने में अपनी बहादुरी दिखानी जारी रखी।साक्षी महाराज, साध्वी प्राची और दूसरे अनेक लोग जहर फैलाते रहे और घिरने पर भाजपा इसकी रट लगाए रहती कि ‘वे हमारे लोग नहीं हैं।’
भाजपा एक तरकीब यह भी अपनाती है कि कांग्रेस के शासनकाल में हुई ऐसी ही घटनाओं को चुनती है, ऐसा करते हुए वह इस तथ्य को भूल जाती है कि लोगों ने उसे कांग्रेस की गलतियों को दोहराने या उससे भी आगे निकल जाने के लिए वोट नहीं दिया था। जहां तक लेखकों के विरोध का सवाल है, एक ओर यह जरूर दादरी में पीट-पीट कर की गई हत्या से तेज हुआ, लेकिन यह उसी तक सीमित नहीं है। यह संस्थानों को व्यवस्थित रूप से खत्म करने और राजनीति को बेशर्मी से जहरीला बना देने के खिलाफ है, जिस पर वे हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए अमल कर रहे हैं। लेखकों द्वारा उठाया गया यह कदम बेहद अहम है, लेकिन शायद इसे उठाने में बड़ी देर कर दी गई। पूरी दुनिया ने उनके विद्रोह पर गौर किया, लेकिन बेशर्म हिंदुत्व परिवार को रत्तीभर भी शर्म दिलाने में नाकाम रहा। अहम बात यह समझना है कि बुनियादी तौर पर वे ऐसी किसी भी बात की समझदारी से परे हैं। मुसोलिनी की राह पर चलनेवाले सिर्फ असहमत लोगों की हत्या करने की भाषा ही जानते हैं। इसलिए सिर्फ एक ही जवाब है जो इन कायरों के गिरोह को उनकी मांद में धकेल सकता है और वह है अवाम की मजबूत ताकत, उस अवाम की ताकत जो ब्राह्मणवाद की सताई हुई है और जिसमें जटिल अक्लमंदी की कमी है। लेखकों को यह समझना ही होगा कि हिंदू राष्ट्र बुनियादी तौर पर ब्राह्मणों के एक गिरोह की पुनरुत्थानवादी परियोजना है, जो अपनी श्रेष्ठता को स्थापित करने के बेवकूफी भरे सपने देख रहे हैं। इसे बस मिनटों में हराया जा सकता है, अगर इन लेखकों में सिर्फ कुछेक दलीलों की बजाए अपनी मु_ी तान कर खड़े हो जाएं!
गलतबयानी का नमूना
साहित्य अकादेमी साहित्य अकादेमी के कार्यकारी मंडल ने लेखकों-कलाकारों के जबरदस्त विरोध के दवाब में 23 अक्टूबर को जो प्रस्ताव पारित किया है, वह न सिर्फ चिंताजनक रूप से अपर्याप्त, बल्कि गलतबयानी का एक निर्लज्ज नमूना भी है। पांच लेखक संगठनों—जलेस, जसम, प्रलेस, दलेस और साहित्य-संवाद—के आह्वान पर लेखकों, पाठकों और संस्कृतिकर्मियों का जो बड़ा [Read the Rest…]
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बस्तर में वकीलों, पत्रकारों पर हमले
बस्तर बार एसोसिएशन द्वारा पुलिस के साथ सांठगांठ से जिस तरीके से जगदलपुर लीगल ऐड ग्रुप (जगलग) को स्थानीय आदिवासियों की कानूनी मदद करने से रोका जा रहा है, उस पर पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स गहरी चिंता व्यक्त करता है। तकनीकी अड़चन को आधार बनाकर 3 अक्टूबर को बार एसोसिएशन ने जगलग के खिलाफ [Read the Rest…]
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हत्या की पैरोकारी का चातुर्य
यदि किसी को इस बात का सबूत खोजना हो कि हमारे देश के कई सांसद कैसे किसी हत्या को जायज ठहराते हैं तो उन्हें 2 अक्टूबर, 2015 के इंडियन एक्सप्रेस में तरुण विजय के लेख को पढऩा चाहिए। हालांकि उनके लेख को पढ़कर तो नहीं लगता कि वह सम्मान के योग्य हैं, लेकिन क्योंकि वह [Read the Rest…]
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लोकतंत्र का गुजरात मॉडल समरथ को नहीं दोस गुसांई!
लेखकः सागर रबारी गुजरात राज्य के अधिकांश भाग में किसी-न-किसी बहाने लगातार दफा 144 लागू रहती है। पिछले 15 सालों से सामाजिक कार्यकर्ता के लिए सार्वजनिक सभाएं करना, रैली निकालना, प्रदर्शन करना यहां तक कि अधिकारियों को सामान्य ज्ञापन देने के लिए इक_ा होना तक कठिन से कठिनतर होता जा रहा है। इस लेख के [Read the Rest…]
बर्बरता की राह
विरोध के स्वर
लोक सभा चुनाव की शुरुआत मुजफ्फरनगर दंगों से हुई। अगस्त- सितंबर 2013 में हुए इन दंगों में 62 लोग मारे गए, 93 घायल हुए और हजारों लोग प्रभावित हुए। उसके बाद चुनाव हुए। मई 2014 में सांप्रदायिक पार्टी भाजपा अपने मनुवादी संगठन आरएसएस के माध्यम से सत्ता में आ गई। भाजपा के सत्ता में आने के बाद धार्मिक असहिष्णुता काफी बढ़ गई है। आम आदमी महंगाई से बुरी तरह त्रस्त है। किसान आत्महत्या कर रहे है। ऐसे समय में भाजपा सरकार बनने के बाद से ही लव जेहाद, घर वापसी, बीफ जैसे मुद्दे देश में छाए हुए हैं।
नरेंद्र दाभोलकर जो अंधविश्वास के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे थे और हिंदूवादी संगठन उनसे बहुत नाराज थे, उनकी हत्या हुई। फरवरी 2015 में लेखक गोविंद पानसरे की हत्या हुई। अगस्त 2015 में साहित्य अकादेमी से सम्मानित लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या हुई। सितंबर में दादरी के एक गांव में लाउड स्पीकर के जरिए यह अफवाह उड़ाई गई कि एक मुस्लिम के घर में गाय का मांस है। एक मंदिर पर भीड़ इक_ी हुई जिसने उस व्यक्ति के घर में घुस कर उसकी निर्ममता से हत्या कर दी। उसके बेटे को गंभीर रूप से घायल कर दिया। आठ अक्टूबर को मैनपुरी के करहल कस्बे में एक मरी हुई गाय की खाल उतारते हुए लोगों पर भीड़ ने धावा बोल कर दो लोगों को बुरी तरह घायल कर दिया। कई पुलिस वाले जख्मी हो गए। कई दुकानों में आग लगा दी। महाराष्ट्र में शिवसेना ने पहले पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली का कार्यक्रम रद्द करा दिया, फिर पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री कसूरी की पुस्तक पर कार्यक्रम कराने वाले भाजपा नेता सुधींद्र कुलकर्णी का मुंह काला कर दिया। 16 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के शिमला में गाय व बैल ले जाते ट्रक ड्राइवर को पीट- पीट कर मार डाला। पुलिस ने बजरंग दल पर संदेह व्यक्त किया है। ऐसी घटनाएं आए दिन घट रही हैं।
आजादी से पहले से आरएसएस देश का सांप्रदायीकरण करने में लगा है। फिर भी लंबे समय तक उसे सफलता नहीं मिली। नवासी के चुनाव के बाद राजनीति में सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हुई हैं। आज भाजपा पूर्ण बहुमत में है। उसके सांप्रदायिक संगठन आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। वे कहीं भी दो सौ चार सौ लोगों को इक_ा कर किसी की भी हत्या करने में सफल हो पा रहे हैं। आज के हालात देख कर तो लगता है वे कुछ साल और सत्ता में रहे और समाज के अंदर से प्रतिरोधक क्षमता नहीं उभरी तो वे समाज का सांप्रदायीकरण करने में सफल हो जाएंगे। यह इसलिए भी चिंताजनक है कि दुनिया के तमाम देशों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है और ऐसे में इसकी संभावना और बढ़ जाती है। इससे आगे के पेजों को देखने लिये क्लिक करें NotNul.com
वैज्ञानिक भार्गव और संघी तर्क
वैज्ञानिक पुष्पमित्र भार्गव ने पदम भूषण सम्मान वापस किया तो बीजेपी ने वक्तव्य दिया वे हेट मोदी ब्रिगेड के सदस्य हैं। सोनिया गांधी के चाटुकार हैं। उन्हें कांग्रेस ने सम्मानित किया था। फासीवाद, संघ और बीजेपी की विचारधारा का आधार है। आज वेंकटरमण जिंदा होते और वे फासीवाद के विरद्ध बोलते तो बीजेपी की भाषा[Read the Rest…]
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‘हम चंद्रमा-मंगल की सीमाओं पर थपकी दे रहे हैं लेकिन उतने ही अंधविश्वासी भी होते जा रहे हैं’
विश्व विख्यात वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर से रामशरण जोशी की विशेष बातचीत भारत के विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रो. जयंत विष्णु नार्लीकर का स्पष्ट मत है कि देश के वर्तमान वातावरण में वैज्ञानिकों और साहित्यकारों को हस्तक्षेप करते हुए फासीवादी-नाजीवादी शक्तियों का प्रतिरोध करना चाहिए और उन्हें देश की बहुलतावादी, उदारवादी और सहिष्णुतावादी परंपराओं की रक्षा करनी [Read the Rest…]
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लेखकों के विरोध को कलाकारों का समर्थन
देश में खतरनाक तरीके से बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में अपने पुरस्कार और पद लौटाने और अपनी आवाज बुलंद करने वाले लेखकों के साथ भारत का कलाकार समुदाय एकजुटता के साथ खड़ा है। हम एम.एम. कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे जैसे तर्कवादी और स्वतंत्र चिंतकों की हत्या की निंदा करते हैं और अपना शोक [Read the Rest…]
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तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
लेखकः फहमीदा रियाज तुम बिल्कुल हम जैसे निकले अब तक कहां छुपे थे भाई? वह मूरखता, वह घामड़पन जिसमें हमने सदी गंवाई आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे अरे बधाई, बहुत बधाई भूत धरम का नाच रहा है कायम हिंदू राज करोगे? सारे उल्टे काज करोगे? अपना चमन नाराज करोगे? तुम भी बैठे करोगे सोचा, पूरी है [Read the Rest…]
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Poem REcited by POET JASIM UDDIN: Krisanir Kutir ...
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Oct 18, 2009 - Uploaded by basuuddin
KRISANIR KUTIR: House of the Farmer From Sujon Badiar Ghat Jasim Uddin is proud of belonging to the folk ...
Beder Bahar - Gypsy Fleet Poem Recited by Jasim Uddin ...
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https://www.youtube.com/watch?v=9lMeI_05RDY
Dec 10, 2009 - Uploaded by basuuddin
Beder Bahar Gipsy Fleet- From Sujon Badiar Ghat Jasim UddinDown Madumati river floats the gipsy fleet, All ...
DHROOPAD: jari gaan--a scene from Shojon Badiar Ghat ...
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https://www.youtube.com/watch?v=TVvptvtFsuc
Apr 7, 2010 - Uploaded by Shawkat Khan
DHROOPAD Presentation: glimpse from Shojon Badiar Ghat. Based on Jasim Uddin's Poetic Novel Shojon ...
DHROOPAD: happy_couple: a scene from Shojon Badiar ...
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Apr 9, 2010 - Uploaded by Shawkat Khan
DHROOPAD Presentation: glimpse from Shojon Badiar Ghat. Based on Jasim Uddin's Poetic Novel Shojon ...
Shojon Badiar Ghat - Chashir Prem - YouTube
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Shojon Badiar Ghat - Chashir Prem ... MUSIC & LYRIC JASIM UDDIN, SINGER: NEENA HAMID - Duration: 3:50. by basuuddin 235,464 views ... Sob Sokhire Par Korite - সব সখীরে পাড় করিতে - film: Sujan Sokhi - Duration: 4:21.
Shujon Badiar Ghat - Chashir Prem 1 - YouTube
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May 29, 2011 - Uploaded by moshahaque
Shujon Badiar Ghat - Chashir Prem 1 ... Kobi Jasim Uddin, Bangla Film Song হীরামতি, Bangladesh যোগী ভিক্ষা লয় না - Duration: 3:25. by ...
DHROOPAD-Sojon Badiar Ghat.MPG - YouTube
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May 31, 2010 - Uploaded by amirul208
... Fleet Poem Recited by Jasim Uddin from Sujon Badir Ghat - Duration: 3:15. by basuuddin 597 views. 3:15. DHROOPAD-SojonBadiar Ghat1 ...
DHROOPAD: duli and friend- a scene from Shojon Badiar ...
▶ 1:34
https://www.youtube.com/watch?v=Puy59IeVkbM
Apr 7, 2010 - Uploaded by Shawkat Khan
DHROOPAD Presentation: glimpse from Shojon Badiar Ghat. Based on Jasim Uddin's Poetic Novel Shojon ...
Ad Run for Channel I Sojon Badiar Ghat - YouTube
▶ 0:30
https://www.youtube.com/watch?v=E8NW8iuTUdc
Nov 3, 2007 - Uploaded by santu65
Ad Run for Channel I Sojon Badiar Ghat. ... Jasim UddinFaridpur Region Bangla Folk Song Bangladesh আমার এ ঘর ভাঙ্গিয়াছে যেবা - Duration: ...
Ad Run 2 Sojon Badiyar Ghat - YouTube
▶ 0:30
https://www.youtube.com/watch?v=lZlM2VGP5x8
Nov 1, 2007 - Uploaded by santu65
Advertisement clip 2 Sojon Badiar Ghat. ... Ad Run 2 Sojon Badiyar Ghat .... Gypsy Fleet Poem Recited by Jasim Uddinfrom Sujon Badir Ghat ...
Jasimuddin - Wikipedia, the free encyclopedia
https://en.wikipedia.org/wiki/Jasimuddin
Jump to Poetry - Poetry[edit]. Jasimuddin started writing poems at an early age. As a college student, he wrote the celebrated poem Kabar (The Grave), ...
Jasimuddin Poems - Poems of Jasimuddin - Poem Hunter
www.poemhunter.com › Jasimuddin
Poem Hunter all poems of by Jasimuddin poems. 109 poems of Jasimuddin. Phenomenal Woman, Still I Rise, The Road Not Taken, If You Forget Me, Dreams.
Jasimuddin - Jasimuddin Poems - Poem Hunter
www.poemhunter.com › Poets
Jasimuddin (Bengali: জসীমউদ্দীন; full name Jasimuddin Mollah) was a Bengali poet, songwriter, prose writer, folklore collector and radio personality.
Jasimuddin - Jasimuddin Biography - Poem Hunter
www.poemhunter.com › Jasimuddin
Jasimuddin's biography and life story.Jasimuddin (Bengali: জসীমউদ্দীন; full nameJasimuddin Mollah) was a Bengali poet, songwriter, prose writer, folklore ...
KABOR BY JASIM UDDIN POET OF BENGAL ... - YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=iykmi7EmBzE
Nov 8, 2009 - Uploaded by basuuddin
RECITED BY JASIM UDDIN 'Kabar', first published in 1929 in Rakhali (Pastoral Poems),was as a ...
A Tribute to Poet Jasimuddin Bangla Song - YouTube
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Jun 19, 2010 - Uploaded by 80chunnu
A Tribute to Poet Jasimuddin Bangla Song ... Kobi Jasim Uddin, Bangla Film Song হীরামতি, Bangladesh যোগী ভিক্ষা লয় না ...
Jasim Uddin (Author of বাঙ্গালীর হাসির গল্প) - Goodreads
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Nokshi Kathar Math_Full - YouTube
- https://www.youtube.com/watch?v=3ywFJSz3Viw
- Oct 22, 2013 - Uploaded by RAZIB HASAN
- Kobi Joshim Uddin Ar Nokshi Kathar Math Directed By Razib Hasan Writer- Farhad Limon.
Nakshi kantha with super.flv - YouTube
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- Artist : Ratna Basu Song : Nakshi Kanthar Math Album : Saradin Audio : Cozmik Harmony Video ...
Nokshe Kathar Math In London - YouTube
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- Nokshe Kathar Math In London. ... Nakshi Kanthar Math ( The Field of Embroidered Quilt)- Dance Drama ...
Nakshi Kathar Math (Dance Drama) - YouTube
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- May 23, 2008 - Uploaded by rajib815
- The spectacular dance drama written by famous rural poet Jashim Uddin. The dance drama is coreographed by ...
Bangla TV - STOCKHOLM -Nakshi Kathar Math - Shibli ...
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- Oct 13, 2008 - Uploaded by Mainul Islam Nasim
- Bangladesh people living in Stockholm enjoyed "Nakshi Kathar Math",the spectacular dance drama written ...
Bijoy Sarkar (kabiyal) in his own voice - Nakshi kathar math ...
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- Sep 9, 2014 - Uploaded by Somtirtha Nandi
- Bijoy Sarkar (kabiyal) in his own voice - Nakshi kathar math. Somtirtha .... Nakshi Kanthar Math ( The Field ...
Nokshi Kanthar Math Part 1 - YouTube
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- Sep 10, 2011 - Uploaded by towhidbafa
- Nokshi Kanthar Math Part 1. ... Nakshi Kanthar Math ( The Field of Embroidered Quilt)- Dance Drama ...
Nakshi Kathar Mathere | Bangla Devotional Song - YouTube
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- Oct 10, 2014 - Uploaded by Banglar Geeti
- ... Album Name : Kishore Bandhu Song Name : Nakshi Kathar Mathere Label ... Bijoy Sarkar (kabiyal) in his own ...
Nakshi Kanthar Math ( The Field of Embroidered Quilt ...
- https://www.youtube.com/watch?v=w6FJ9nNTMpI
- Jun 5, 2015 - Uploaded by Piyali Biswas
- Nakshi Kanthar Math or "The field of the Embroidered Quilt" written by Bangladeshi poet Jasimuddin, is a ...
Poem REcited by POET JASIM UDDIN: Krisanir Kutir ...
- https://www.youtube.com/watch?v=-E99XHasVbk
- Oct 18, 2009 - Uploaded by basuuddin
- In a foreword to the translation of Nakshi Kathar Math, Mr Verrier Elwin writes, 'I do not know whether The ...
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About Jasim Uddin: Jasimuddin (Bangla: জসীমউদ্দীন; full name: Jasimuddin Mollah) was a Bengali poet, songwriter, prose writer, folklore collector and rad...
Jasimuddin.org - Arsenic Poisoning in Bangladesh/India
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Jasim Uddin (1904-1976) Poet and Litterateur; Poems of Jasim Uddin; Jasim Uddin's Birth Day; Poems of Independence; Visit Jasim Uddin House, Ambikapur, ...
Jasimuddin - Banglapedia
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Dec 4, 2014 - Jasimuddin (1903-1976) poet and litterateur, was born on 1 January 1903 in his maternal uncle's home at Tambulkhana in Faridpur. His father ...
জসীমউদ্দীন-এর কবিতা 'কবর' - Bangla Kobita - বাংলা কবিতা
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One of best poem of Jasim Uddin. উত্তর দিন. tasnim ayesha .... this is the poem that touches my heart from the very first line n makes me cry. উত্তর দিন. remo ২৭/০৭/ ...
Jasimuddin
From Wikipedia, the free encyclopedia
Jasim Uddin | |
Native name | জসীমউদ্দীন |
Born | 30 October 1903Tambulkhana, Faridpur,Bengal, British India (now inBangladesh) |
Died | 14 March 1976 (aged 72)Dhaka, Bangladesh |
Occupation | Poet, songwriter, writer, radio personality, teacher |
Nationality | Bangladeshi |
Education | BA and MA (Bengali) |
Alma mater | University of Calcutta |
Notable awards |
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Jasimuddin (30 October 1903 – 14 March 1976; born Jasim Uddin)[1] was aBengali poet, songwriter, prose writer, folklore collector and radio personality. He is commonly known in Bangladesh as Polli Kobi (The Rural Poet), for his faithful rendition of Bengali folklore in his works.
Contents
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1Early life and career
2Poetry
3Music
4Major honors and awards
5Death and legacy
6Major works
7Gallery
8See also
9References
10External links
Early life and career[edit]
Jasim Uddin (certificate in hand) at the reception by Rajenra College, Faridpur after the selection of "Kabar" poem by the University of Calcutta in 1928.
Jasimuddin in London, England (1951)
Jasimuddin was born in the village of Tambulkhana in Faridpur District on 30 October 1903 in the house of his maternal uncle. His father, Ansaruddin Mollah, was a school-teacher.[2] Mother Amina Khatun (Rangachhut) received early education at Faridpur Welfare School. He matriculated from Faridpur Zilla School in 1921. Jasimuddin completed IA from Rajendra College in 1924.He obtained his BA degree in Bengali from the University of Calcuttain 1929 and his MA in 1931.[2] From 1931 to 1937, Jasimuddin worked withDinesh Chandra Sen as a collector of folk literature. Jasimuddin is one of the compilers of Purbo-Bongo Gitika(Ballads of East Bengal). He collected more than 10,000 folk songs, some of which has been included in his song compilations Jari Gaan and Murshida Gaan. He also wrote voluminously on the interpretation and philosophy of Bengali folklore.[3]
Jasimuddin joined the University of Dhaka in 1938 as a Lecturer. He left the university in 1944 and joined the Department of Information and Broadcasting. He worked there until his retirement in 1962 as Deputy Director. He was an admirer of Guru Mrityun Jay Sil[2]
Tomb of Jasimuddin
Poetry[edit]
Jasimuddin started writing poems at an early age. As a college student, he wrote the celebrated poem Kabar (The Grave), a very simple tone to obtain family-religion and tragedy. The poem was placed in the entrance Bengali textbook while he was still a student of Calcutta University.
Jasimuddin is noted for his depiction of rural life and nature from the viewpoint of rural people. This had earned him fame as Polli Kobi (the rural poet). The structure and content of his poetry bears a strong flavor of Bengal folklore. His Nokshi Kanthar Maath (Field of the Embroidered Quilt) is considered a masterpiece and has been translated into many different languages.
Jasimuddin also composed numerous songs in the tradition of rural Bengal. His collaboration[4] with Abbas Uddin, the most popular folk singer of Bengal, produced some of the gems of Bengali folk music, especially of Bhatiali genre. Jasimuddin also wrote some modern songs for the radio. He was influenced by his neighbor, poet Golam Mostofa, to write Islamic songs too. Later, during the Liberation War of Bangladesh, he wrote some patriotic songs.
This section requires expansion.(January 2007) |
Pratidan
build a home for she
Who has broken mine.
I cry to make my own, she who forsaken me.
She has made me stranger.
While I wander the world over for her,
Endless night has stolen my sleep.
She has broken my home, I build hers.
She has broken my shore, I build hers.
She left my heart broken yet I cry for her
She struck me with poisoned arrow,
Yet my breast is full of song.
A flower in return thron.
I cry all around to make her my own.
She has carved a grave in my heart,
I fill her heart with flowers of love.
The face that speaks harsh language,
I hold that face, and adore it.
I cry to make her my own.
নিমন্ত্রণ
– জসীমউদ্দীন
তুমি যাবে ভাই – যাবে মোর সাথে, আমাদের ছোট গাঁয়,
গাছের ছায়ায় লতায় পাতায় উদাসী বনের বায়;
মায়া মমতায় জড়াজড়ি করি
মোর গেহখানি রহিয়াছে ভরি,
মায়ের বুকেতে, বোনের আদরে, ভাইয়ের স্নেহের ছায়,
তুমি যাবে ভাই – যাবে মোর সাথে, আমাদের ছোট গাঁয়,
Music[edit]
One of the most famous lyric and Music by Jasim Uddin:
Snake Charmer / Babu Selam
O babu, many salams to you
my name is Goya the Snakecharmer, My home is the Padma river.
We catch birds
we live on birds
There is no end to our happiness,
For we trade,
With the jewel on the Cobra's head.
"We cook on one bank,
We eat at another
We have no homes,
The whole world is our home,
All men are our brothers
We look for them
In every door….." (Jasim Uddin)
Major honors and awards[edit]
President's Award for Pride of Performance, Pakistan (1958)
DLitt. by Rabindra Bharati University, India (1969)
Ekushey Padak, Bangladesh (1976)
Independence Day Award (1978)
Death and legacy[edit]
Jasimuddin died on 13 March 1976 and was buried near his ancestral home at Gobindapur, Faridpur. A fortnightly festival known as Jasim Mela is observed at Gobindapur each year in January commemorating the birthday of Jasimuddin.[5] A residential hall of the University of Dhaka bears his name.
Major works[edit]
Poetry[edit]
Rakhali (1927)Gobinda Das
Nakshi Kanthar Maath(1928)
Baluchor (1930)
Dhankhet(1933)
Sojan Badiyar Ghat(1934)
Rangila Nayer Majhi(1935)
Hashu (1938)
Rupobati (1946)
Matir Kanna (1951)
Sakina (1959)
Suchayani (1961)
Bhayabaha Sei Dingulite(1972)
Ma je Jononi Kande(1963)
Holud Boroni (1966)
Jole Lekhon (1969)
Padma Nadir Deshe(1969)
Beder Meye (1951)
Kafoner Michil (1978)
Maharom"
Dumokho Chand Pahari(1987)
Drama[edit]
Padmapar (1950)
Beder Meye (1951)
Modhubala (1951)
Pallibodhu (1956)
Gramer Maya (1959)
Ogo Pushpodhonu(1968)
Asman Shingho (1968)
Novel[edit]
Boba Kahini (1964)
Memoirs[edit]
Jader Dekhachi (1951)
Thakur Barir Anginay(1961)
Jibonkotha (1964)
Smritipot (1964)
Smaraner Sarani Bahi(1978)
Travelogues[edit]
Chole Musafir (1952)
Holde Porir Deshe (1967)
Je Deshe Manush Boro(1968)
Germanir Shahare Bandare (1975)
Music books[edit]
Rangila Nayer Majhi
Padmapar (1950)
Gangerpar
Jari Gan
Murshida Gan
Rakhali Gan
Baul
Others[edit]
Dalim Kumar (1986)
Bangalir Hasir Galpa(Part 1 and 2)
Song titles[edit]
Amar sonar moyna pakhi
Amar golar har khule ne
Amar har kala korlam re
Amay bhashaili re
Amay eto raate
Kemon tomar mata pita
Nishithe jaio fulobone
Nodir kul nai kinar nai
O bondhu rongila
Prano shokhire
Rangila nayer majhi
Gallery[edit]
House of Poet Jasimuddin
Kumar nod (cannel) in front of the poet's house
Wide open field where poet spent most of his childhood
Shojon Badiyar ghat
See also[edit]
References[edit]
Jump up^ Ābula Phajala Śāmasujjāmāna (1992). Who's who in Bangladesh art, culture, literature, 1901–1991. Tribhuj Prakashani. p. 115. Retrieved 3 August 2012.
^ Jump up to:a b c Guha, Bimal (2012). "Jasimuddin". In Islam, Sirajul; Jamal, Ahmed A. Banglapedia: National Encyclopedia of Bangladesh(Second ed.). Asiatic Society of Bangladesh.
Jump up^ Jasimuddin.org
Jump up^ Article by Nashid Kamal Waiz, granddaughter of Abbas Uddin
Jump up^ Jasim Mela begins-The New Nation
External links[edit]
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Categories:
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Bengali writers
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Recipients of the Ekushey Padak
Recipients of the Independence Day Award
1903 births
1976 deaths
University of Calcutta alumni
University of Dhaka faculty
Recipients of the Pride of Performance
20th-century Indian poets
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