Monday 31 October 2016

LETTER OF INVITATION TO STAGE DHARNA / RALLY AT JANTAR MANTAR , DELHI ON 21 st 22 nd NOVEMBER, 2016 BY NIKHIL BHARAT

স্তন ছিড়ে ফেলা হয়েছে, যোনিপথে লোহার রড বা বন্দুকের নল ঢুকিয়ে দেওয়া হয়েছে। . ১৯৭১ সনের ২৯শে মার্চ সকাল থেকে আমরা মিটফোর্ড হাসপাতালের লাশঘর ও প্রবেশপথের দুপার্শ্ব থেকে বিশ্ববিদ্যালয় শিববাড়ী, রমনা কালিবাড়ী, রোকেয়া হল, মুসলিম হল, ঢাকা হল থেকে লাশ উঠিয়েছি। ২৯শে মার্চ আমাদের ট্রাক প্রথম ঢাকা মিটফোর্ড হাসপাতালের প্রবেশ পথে যায়। আমরা উক্ত পাঁচজন ডোম হাসপাতালের প্রবেশপথে নেমে একটি বাঙ্গালী যুবকের পচা, ফুলা, বিকৃত লাশ দেখতে পেলাম। লাশ গলে যাওয়ায় লোহার কাঁটার সাথে গেঁথে লাশ ট্রাকে তুলেছি। আমাদের ইন্সপেক্টর আমাদের সাথে ছিলেন। এরপর আমরা লাশ ঘরে প্রবেশ করে বহু যুবক-যুবতী, বৃদ্ধ- কিশোর ও শিশুর স্তুপীকৃত লাশ দেখলাম। আমি এবং বদলু ডোম লাশ ঘর থেকে লাশের পা ধরে টেনে ট্রাকের সামনে জমা করেছি, আর গণেশ, রঞ্জিত(লাল বাহাদুর) এবং কানাই লোহার কাঁটা দিয়ে বিঁধিয়ে বিঁধিয়ে পচা, গলিত লাশ ট্রাকে তুলেছে। প্রতিটি লাশ গুলিতে ঝাঁঝরা দেখিছি, মেয়েদের লাশের কারো স্তন পাই নাই, যোনীপথ ক্ষতবিক্ষত এবং পিছনের মাংস কাটা দেখিছি। মেয়েদের লাশ দেখে মনে হয়েছে, তাদের হত্যা করার পূর্বে তাদের স্তন জোর করে ছিঁড়ে ফেলা হয়েছে, যোনিপথে লোহার রড কিংবা বন্দুকের নল ঢুকিয়ে দেওয়া হয়েছে। যুবতী মেয়েদের যোনিপথের এবং পিছনের মাংস যেন ধারালো চাকু দিয়ে কেটে এসিড দিয়ে জ্বালিয়ে দেয়া হয়েছে। প্রতিটি যুবতী মেয়ের মাথায় খোঁপা খোঁপা চুল দেখলাম। মিটফোর্ড থেকে আমরা প্রতিবারে একশত লাশ নিয়ে ধলপুর ময়লার ডিপোতে ফেলেছি। . চুন্নু ডোমের সাক্ষাৎকার। বাংলাদেশের স্বাধীনতা যুদ্ধঃ দলিলপত্রের অষ্টম খন্ডের (১২-৬৬) সংকলন।

স্তন ছিড়ে ফেলা হয়েছে, যোনিপথে লোহার রড বা বন্দুকের নল ঢুকিয়ে দেওয়া হয়েছে। . ১৯৭১ সনের ২৯শে মার্চ সকাল থেকে আমরা মিটফোর্ড হাসপাতালের লাশঘর ও প্রবেশপথের দুপার্শ্ব থেকে বিশ্ববিদ্যালয় শিববাড়ী, রমনা কালিবাড়ী, রোকেয়া হল, মুসলিম হল, ঢাকা হল থেকে লাশ উঠিয়েছি। ২৯শে মার্চ আমাদের ট্রাক প্রথম ঢাকা মিটফোর্ড হাসপাতালের প্রবেশ পথে যায়। আমরা উক্ত পাঁচজন ডোম হাসপাতালের প্রবেশপথে নেমে একটি বাঙ্গালী যুবকের পচা, ফুলা, বিকৃত লাশ দেখতে পেলাম। লাশ গলে যাওয়ায় লোহার কাঁটার সাথে গেঁথে লাশ ট্রাকে তুলেছি। আমাদের ইন্সপেক্টর আমাদের সাথে ছিলেন। এরপর আমরা লাশ ঘরে প্রবেশ করে বহু যুবক-যুবতী, বৃদ্ধ- কিশোর ও শিশুর স্তুপীকৃত লাশ দেখলাম। আমি এবং বদলু ডোম লাশ ঘর থেকে লাশের পা ধরে টেনে ট্রাকের সামনে জমা করেছি, আর গণেশ, রঞ্জিত(লাল বাহাদুর) এবং কানাই লোহার কাঁটা দিয়ে বিঁধিয়ে বিঁধিয়ে পচা, গলিত লাশ ট্রাকে তুলেছে। প্রতিটি লাশ গুলিতে ঝাঁঝরা দেখিছি, মেয়েদের লাশের কারো স্তন পাই নাই, যোনীপথ ক্ষতবিক্ষত এবং পিছনের মাংস কাটা দেখিছি। মেয়েদের লাশ দেখে মনে হয়েছে, তাদের হত্যা করার পূর্বে তাদের স্তন জোর করে ছিঁড়ে ফেলা হয়েছে, যোনিপথে লোহার রড কিংবা বন্দুকের নল ঢুকিয়ে দেওয়া হয়েছে। যুবতী মেয়েদের যোনিপথের এবং পিছনের মাংস যেন ধারালো চাকু দিয়ে কেটে এসিড দিয়ে জ্বালিয়ে দেয়া হয়েছে। প্রতিটি যুবতী মেয়ের মাথায় খোঁপা খোঁপা চুল দেখলাম। মিটফোর্ড থেকে আমরা প্রতিবারে একশত লাশ নিয়ে ধলপুর ময়লার ডিপোতে ফেলেছি। . চুন্নু ডোমের সাক্ষাৎকার। বাংলাদেশের স্বাধীনতা যুদ্ধঃ দলিলপত্রের অষ্টম খন্ডের (১২-৬৬) সংকলন।

Thursday 27 October 2016

‎Mrinal Sikder নাগরিকত্ব বিলের বিরোধিতা করল তৃনমুল কংগ্রেস। এর আগে একই রাস্তাতে হেটেছে সিপিএমের সেলিম, কংগ্রেসের তরুন গগৈ। যুক্তি টা কি? এটা সাম্প্রদায়িক বিল। কিন্তু এখন প্রশ্ন হল ভারত ভাগ ভাষা বা ভুগোলের ভিত্তি হয়েছিল কি? না, এটা সম্পুর্ন দ্বিজাতিত্তত্বের ভিত্তিতে হয়েছিল।বাংলাদেশ পাকিস্তানের সংখ্যালঘুরা মুসলিম মৌলবাদের জন্য উদ্বাস্তু হয়েছিল এবং এখনও হচ্ছে। তাই ধর্মীয় নির্যাতনের বলি এই হিন্দু, বৌদ্ধ, খ্রিষ্টান দের নাগরিকত্ব কিভাবে সাম্প্রদায়িক হতে পারে? এখন যেসব মুসলিমরা বাংলাদেশ বা পাকিস্তান থেকে আসছে তারা আসছে ভারত থেকে উপার্জন করে বাংলাদেশে পাঠানোর জন্য নতুবা ভারতের জনবিন্যাসের পরিবর্তনন করে মুসলিম সংখ্যাগরিষ্ঠ পাকিস্তানে পরিনত করতে। বিশ্বের কোন দেশ এইভাবে অবৈধ অনুপ্রবেশকারী দের নাগরিকত্ব দেয় কি? আর মুসলিমদের যদি নাগরিকত্ব দিতে হয় তবে বাংলাদেশ বা পাকস্তানকেও ভারতে সংগে জুড়ে দেওয়া হোক। তাই সকল উদবাস্ত দরদী মানুষের কাছে আবেদন আপনারা ঐক্যবদ্ধ আন্দোলন গড়ে তুলুন, নিজের অধিকারে আদায়ের জন্য সমস্ত ষড়যন্ত্রের বিরুদ্ধে সোচ্চার হন

Mrinal Sikder

নাগরিকত্ব বিলের বিরোধিতা করল তৃনমুল কংগ্রেস। এর আগে একই রাস্তাতে হেটেছে সিপিএমের সেলিম, কংগ্রেসের তরুন গগৈ। যুক্তি টা কি? এটা সাম্প্রদায়িক বিল। কিন্তু এখন প্রশ্ন হল ভারত ভাগ ভাষা বা ভুগোলের ভিত্তি হয়েছিল কি? না, এটা সম্পুর্ন দ্বিজাতিত্তত্বের ভিত্তিতে হয়েছিল।বাংলাদেশ পাকিস্তানের সংখ্যালঘুরা মুসলিম মৌলবাদের জন্য উদ্বাস্তু হয়েছিল এবং এখনও হচ্ছে। তাই ধর্মীয় নির্যাতনের বলি এই হিন্দু, বৌদ্ধ, খ্রিষ্টান দের নাগরিকত্ব কিভাবে সাম্প্রদায়িক হতে পারে? এখন যেসব মুসলিমরা বাংলাদেশ বা পাকিস্তান থেকে আসছে তারা আসছে ভারত থেকে উপার্জন করে বাংলাদেশে পাঠানোর জন্য নতুবা ভারতের জনবিন্যাসের পরিবর্তনন করে মুসলিম সংখ্যাগরিষ্ঠ পাকিস্তানে পরিনত করতে। বিশ্বের কোন দেশ এইভাবে অবৈধ অনুপ্রবেশকারী দের নাগরিকত্ব দেয় কি? আর মুসলিমদের যদি নাগরিকত্ব দিতে হয় তবে বাংলাদেশ বা পাকস্তানকেও ভারতে সংগে জুড়ে দেওয়া হোক। তাই সকল উদবাস্ত দরদী মানুষের কাছে আবেদন আপনারা ঐক্যবদ্ধ আন্দোলন গড়ে তুলুন, নিজের অধিকারে আদায়ের জন্য সমস্ত ষড়যন্ত্রের বিরুদ্ধে সোচ্চার হন

Subodh Biswas বজ্রাঘাত , এ কি শুনতে পেলাম। বাঙালি জাতির দিদি মাননীয়া মুখ্যমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জী নাগরিকত্ব বিলের বিরোধিতা করবেন। ।যেসব বাঙালি রাজনীতিক দল উদ্বাস্তুদের ভোটে বিজয়ী হন, তারা কেন মুখে গোদরেজের তালা মেরে আছেন। কোথায় গেল মমতা দিদির প্রতিশ্রুতি ? কোথায় গেলো সর্বহারাদের সি পি এম পার্টী ।কংগ্রেস পার্টী ও কী শ্রবন শক্তি হারালো। অবাঙালি সাংসদরা পার্লামেন্টে নাগরিকত্ব বিলের সমর্থন করছেন, অথচ বাঙালি অনেক সংসদরা বিলের বিরোধিতা করবেন। এরা উদ্স্তু বাঙালিদের বনদ্ধু না শত্রু। আমরা কাদের বিজয়ী করেছি। দুখের বিষয় উদ্বাস্তু সংসদরাও বাকশক্তি হারিয়ে ফেলেছেন। এমন কী ঠাকুর নগরের মাননীয়া মমতা বালা ঠাকুরেও কোন প্রতিকৃয়া পাচ্ছিনা। অভিভাবক হীন ছিন্নমূল জনগোষ্ঠীদের আসল বন্ধু কে বুঝেনেবার সময় এসেগেছে।

Subodh Biswas
বজ্রাঘাত , এ কি শুনতে পেলাম। বাঙালি জাতির দিদি মাননীয়া মুখ্যমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জী নাগরিকত্ব বিলের বিরোধিতা করবেন। ।যেসব বাঙালি রাজনীতিক দল উদ্বাস্তুদের ভোটে বিজয়ী হন, তারা কেন মুখে গোদরেজের তালা মেরে আছেন। কোথায় গেল মমতা দিদির প্রতিশ্রুতি ? কোথায় গেলো সর্বহারাদের সি পি এম পার্টী ।কংগ্রেস পার্টী ও কী শ্রবন শক্তি হারালো। অবাঙালি সাংসদরা পার্লামেন্টে নাগরিকত্ব বিলের সমর্থন করছেন, অথচ বাঙালি অনেক সংসদরা বিলের বিরোধিতা করবেন। এরা উদ্স্তু বাঙালিদের বনদ্ধু না শত্রু। আমরা কাদের বিজয়ী করেছি। দুখের বিষয় উদ্বাস্তু সংসদরাও বাকশক্তি হারিয়ে ফেলেছেন। এমন কী ঠাকুর নগরের মাননীয়া মমতা বালা ঠাকুরেও কোন প্রতিকৃয়া পাচ্ছিনা। অভিভাবক হীন ছিন্নমূল জনগোষ্ঠীদের আসল বন্ধু কে বুঝেনেবার সময় এসেগেছে।

शरणार्थियों की नागरिकता के विरोध में ममता बनर्जी और इस विधेयक को लेकर बंगाल और असम में धार्मिक ध्रूवीकरण बेहद तेज शरणार्थियों को नागरिकता का मामला कुछ ऐसा ही बन गया है जैसे महिलाओं को राजनीतिक आरक्षण का मामला है।तकनीकी विरोध के तहत संसद के हर सत्र में महिला सांसदों की एकजुटता के बावजूद उन्हें राजनीतिक आरक्षण सभी दलों की ओर से जैसे रोका जा रहा है,2016 के नागरिकता संशोधन विधेयक के तकनीकी मुद्दों के तहत मुसलमान वोट बैंक को साध लेने की होड़ में विभाजनपीड़ितों की नागरिकता का मामला तो लटक ही गया है और इससे असम और बंगाल में कश्मीर से भी भयंकर हालात पैदा हो रहे हैं।पहले शरणार्थी वामदलों के साथ थे।मरीचझांपी नरसंहार के बाद परिवर्तन काल में शरणार्थी तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में हो गये और शरणार्थियों में देशबर में कहीं भी वामदलों का समर्थन नहीं है।धर्मनिरपेक्ष राजनीति के इस विधेयक के तकनीकी विरोध के साथ शरणार्थी अब पूरे देश में संघ परिवार के खेमे में चले जायेंगे।बंगाल में 2021 में संघ परिवार के राजकाज की तैयारी जोरों पर है। पलाश विश्वास


शरणार्थियों की नागरिकता के विरोध में ममता बनर्जी और इस विधेयक को लेकर बंगाल और असम में धार्मिक ध्रूवीकरण बेहद तेज
शरणार्थियों को नागरिकता का मामला कुछ ऐसा ही बन गया है जैसे महिलाओं को राजनीतिक आरक्षण का मामला है।तकनीकी विरोध के तहत संसद के हर सत्र में महिला सांसदों की एकजुटता के बावजूद उन्हें राजनीतिक आरक्षण सभी दलों की ओर से जैसे रोका जा रहा है,2016 के नागरिकता संशोधन विधेयक के तकनीकी मुद्दों के तहत मुसलमान वोट बैंक को साध लेने की होड़ में विभाजनपीड़ितों की नागरिकता का मामला तो लटक ही गया है और इससे असम और बंगाल में कश्मीर से भी भयंकर हालात पैदा हो रहे हैं।पहले शरणार्थी वामदलों के साथ थे।मरीचझांपी नरसंहार के बाद परिवर्तन काल में शरणार्थी तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में हो गये और शरणार्थियों में देशबर में कहीं भी वामदलों का समर्थन नहीं है।धर्मनिरपेक्ष राजनीति के इस विधेयक के तकनीकी विरोध के साथ शरणार्थी अब पूरे देश में संघ परिवार के खेमे में चले जायेंगे।बंगाल में 2021 में संघ परिवार के राजकाज की तैयारी जोरों पर है।
पलाश विश्वास
Refugees from East Bengal के लिए चित्र परिणाम
सबसे पहले यह साफ साफ कह देना जरुरी है कि हम भारत ही नहीं,दुनियाभर के शरणार्थियों के हकहकू के लिए लामबंद हैं।
सबसे पहले यह साफ साफ कह देना जरुरी है कि हम विभाजनपीड़ित शरणार्थियों की नागरिकता के लिए जारी देशव्यापी आंदोलन के साथ है।
सबसे पहले यह साफ साफ कह देना जरुरी है कि विभाजनपीड़ितों की नागरकता के मसले को लेकर धार्मिक ध्रूवीकरण की दंगाई राजनीति का हम पुरजोर विरोध करते हैं।विभाजनपीड़ितों की पहचान अस्मिताओं या धर्म का मसला नहीं है।यह विशुद्ध तौर पर कानूनी और प्रशासनिक मामला है,जिसे जबर्दस्ती धार्मिक मसला बना दिया गया है और पूरी राजनीति इस धतकरम में शामिल है,जो विभाजनपीड़ितों के खिलाफ है।
कुछ दिनों पहले मैंने लिखा था कि इतने भयंकर हालात हैं कि अमन चैन के लिहाज से उनका खुलासा करना भी संभव नही है।पूरे बंगाल में जिस तरह सांप्रदायिक ध्रूवीकरण होने लगा है,वह गुजरात से कम खतरनाक नहीं है तो असम में भी गैरअसमिया तमाम समुदाओं के लिए जान माल का भारी खतरा पैदा हो गया है। गुजरात अब शांत है।लेकिन बंगाल और असम में भारी उथल पुथल होने लगा है।मैंने लिखा था कि असम और बंगाल में हालात कश्मीर से ज्यादा संगीन है।
पहले मैं इस संवेदनशील मुद्दे पर चुप रहना बेहतर समझ रहा था लेकिन हालात असम में विभाजनपीड़ितों की नागरिकता के खिलाफ अल्फाई आंदोलन  और बंगाल में भी धार्मिक ध्रूवीकरण की वजह से बेहद तेजी से बेलगाम होते जा रहे हैं,इसलिए अंततः इस तरफ आपका ध्यान खींचना अनिवार्य हो गया है।
नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 को लेकर यह ध्रूवीकरण बेहद ते ज हो गया है।हम शुरु से शरणार्थियों के साथ हैं।यह समस्या 2003 के नागरिकता संशोधन विधयक से पैदा हुई है,जो सर्वदलीय सहमति से संसद में पास हुआ।
जन्मजात नागरिकता का प्रावधान खत्म होने से जो पेजदगिया पैंदा हो गयी हैं,उन्हें उस कानून में किसी भी तरह का संशोधन से खत्म करना नामुमकिन है।
1955 के नागरिकता कानून के तहत शरणार्थियों को जो नागरिकता का अधिकार दिया गया था,उसे छीन लेने की वजह से यह समस्या है।
यह कानून भाजपा ने पास कराया था,जिसका समर्थन बाकी दलों ने किया था।बाद में 2005 में डा. मनमोहनसिह की कांग्रेस सरकार ने इस कानून को संसोधित कर लागू कर दिया।गौरतलब है कि मनमोहन सिह और जनरल शंकर राय चौधरी ने ही 2003 के नागरिकता संशोधन विधेयक में शरणार्थियों को नागरिकता का प्रावधान रखने का सुझाव दिया था,लेकिन जब उनकी सरकार ने उस कानून को संशोधित करके लागू किया तो वे शरणार्थियों की नागरिकता का मुद्दा सिरे से भूल गये।
अब वही भाजपा सत्ता में है और वह अपने बनाये उसी कानून में संसोधन करके मुसलमानों को चोड़कर तमाम शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए नागरिकता संशोधन 2016 विधेयक पास कराने की कोशिश में है और उसे शरणार्थी संगठनों का समर्थन हासिल है।लेकिन भाजपा को छोड़कर किोई राजनीतिक दल इस विधेयक के पक्ष में नहीं है।दूसरी ओर,शरणार्थियों की नागरिकता के बजाय संघ परिवार मुसलमानों को नागरिकता के अधिकार से वंचित करने की तैयारी में है।जबकि तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ असम की सरकार के इस विधेयक को समर्थन के बावजूद असम के तमाम राजनीतिक दल और अल्फा,आसु जैसे संगठन इसके प्रबल विरोध में हैं।आसु ने असम में इसके खिलाफ आंदोलन तेज कर दिया है।असम में गैर असमिया समुदायोेें के खिलाफ कभी भी फिर दंगे भड़क सकते हैं।भयंकर दंगे।
राजनीतिक दल इस कानून के तहत मुसलमानों को भी नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं जिसके लिए संघ परिवार या एसम के राजनीतिक दल या संगठन तैयार नहीं हैं।असम में तो किसी भी गैरअसमिया के नागरिक और मानवाधिकार को मानने के लिए अल्फा और आसु तैयार नहीं है,भाजपा की सरकार में राजकाज उन्हीं का है।
वामपंथी दलों के साथ तृणमूल कांग्रेस इस विधेयक का शुरु से विरोध करती रही है।अब बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पश्चिम बंगालसरकार इस विधेयक का आधिकारिक विरोध करते हुए उसे वापस लेने की मांग कर रही है।
शरणार्थियों को नागरिकता का मामला कुछ ऐसा ही बन गया है जैसे महिलाओं को राजनीतिक आरक्षण का मामला है।तकनीकी विरोध के तहत संसद के हर सत्र में महिला सांसदों की एकजुटता के बावजूद उन्हें राजनीतिक आरक्षण सभी दलों की ओर से जैसे रोका जा रहा है,2016 के नागरिकता संशोधन विधेयक के तकनीकी मुद्दों के तहत मुसलमान वोट बैंक को साध लेने की होड़ में विभाजनपीड़ितों की नागरिकता का मामला तो लटक ही गया है और इससे असम और बंगाल में कश्मीर से भी भयंकर हालात पैदा हो रहे हैं।पहले शरणार्थी वामदलों के साथ थे।मरीचझांपी नरसंहार के बाद परिवर्तन काल में शरणार्थी तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में हो गये और शरणार्थियों में देशबर में कहीं भी वामदलों का समर्थन नहीं है।धर्मनिरपेक्ष राजनीति के इस विधेयक के तकनीकी विरोध के साथ शरणार्थी अब पूरे देश में संघ परिवार के खेमे में चले जायेंगे।बंगाल में 2021 में संघ परिवार के राजकाज की तैयारी जोरों पर है।
गौरतलब है कि दंडकारण्य और बाकी भारत से विभाजनपीड़ितों को बंगाल बुलाकर उनके वोटबैंक के सहारे कांग्रेस को बंगाल में सत्ता से बेदखल करने का आंदोलन कामरेड ज्योति बसु और राम चटर्जी के नेतृत्व में वामदलों ने शुरु किया था।मध्यबारत के पांच बड़े शरणार्थी शिविरों को  उन्होंने इस आंदोलन का आधार बनाया था।शरणार्थियों के मामले में बंगल की वामपंथी भूमिका से पहले ही मोहभंग हो जाने की वजह से शरणार्थियों के नेता पुलिनबाबू ने तब इस आंदोलन का पुरजोर विरोध किया था,जिस वजह से वाम असर में सिर्फ दंडकारण्य के शरणार्थी ही वाम आवाहन पर सुंदरवन के मरीचझांपी पहुंचे तब तक कांग्रेस को वोटबैंक तोड़कर मुसलमानों के समर्थन से ज्योति बसु बंगाल के मुख्यमंत्री बन चुके थे और वामदलों के लिए शरणार्थी वोट बैंक की जरुरत खत्म हो चुकी थी।जनवरी 1979 में इसीलिए मरीचझांपी नरसंहार हो गया और बंगाल और बाकी देश में वामपंथियों के खिलाफ हो गये तमाम शरणार्थी।
बहुत संभव है कि लोकसभा में भारी बहुमत और राज्यसभा में जोड़ तोड़ के दम पर संघ परिवार यह कानून पास करा लें लेकिन 1955 के नागरिकता कानून को बहाल किये बिना संशोधनों के साथ 2003 के कानून को लागू करने में कानूनी अड़चनें भी कम नहीं होंगी और इस नये कानून से नागरिकता का मामला सुलझने वाला नहीं है।शरणार्थी समस्या सुलझने के आसार नहीं है लेकिन इस प्रस्तावित नागरिकता संशोधन के विरोध और विभाजनपीड़ितों की नागरिकता के साथ मुसलमान वोट बैंक की राजनीति जुड़ जाने से जो धार्मिक ध्रूवीकरण बेहद तेज हो गया है,उससे बंगाल और असम में पंजाब,गुजरात और कश्मीर से भयानत नतीजे होने का अंदेशा है।
जहां तक हमारा निजी मत है,हम 2003 के नागरिकता संशोदन कानून को सिरे से रद्द करके 1955 के नागरिकता कानून को बहाल करने की मांग करते रहे हैं।1955 के कानून को लेकर कोई विरोध नही रहा है।इसीके मद्देनजर हमने अभी तक इस मुद्दे परकुछ लिखा नहीं है और न ही संसदीय समिति को अपना पक्ष बताया है क्योंकि संसदीय समिति में शामिल सदस्यअपनी अपनी राजनीति कर रहे हैं और सुनवाई सिर्फ इस विधेयक को लेकर राजनीतिक समीकरण साधने का बहाना है।
वे हमारे अपने लोग हैं जिनके लिए मेरे दिवंगत पिता पुलिनबाबू ने तजिंदगी सीमाओं के आर पार सर्वहारा बहुजनों को अंबेडकरी मिशन के तहत एकताबद्ध करने की कोशिश में दौड़ते रहे हैं। जब बंगाल में कम्युनिस्ट नेता बंगाल से बाहर शरणार्थियों के पुनर्वास का पुरजोर विरोध कर रहे थे,तब पुलिनबाबू कम्युनिस्टों के शरणार्थी आंदोलन में बने रहकर शरणार्थियों को बंगाल से बाहर दंडकारण्य या अंडमान में एकसाथ बसाकर उन्हें पूर्वी बंगाल जैसा होमलैंड देने की मांग कर रहे थे।
केवड़ातला महाश्मशान पर इस मांग को लेकर पुलिनबाबू ने आमरण अनशन शुरु किया तो उनका कामरेड ज्योतिबसु समेत तमाम कम्युनिस्ट नेताओं से टकराव हो गया।उन्हें ओड़ीशा उनके साथियों के सात भेज दिया गया लेकिन जब उनका आंदोलन वहां भी जारी रहा तो उन्हें नैनीताल की तराई के जंगल में भेज दिया गया।वहां भी कम्युनिस्ट नेता की हैसियत से उन्होंने ढिमरी ब्लाक किसान आंदोलन का नेतृत्व किया।आंदोलन के सैन्य दमन के बाद तेलंगना के तुरंत बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने उस आंदोलन से नाता तोड़ दिया।फिर उन्होंने कम्युनिस्टों पर कभी भरोसा नहीं किया।
वैचारिक वाद विवाद में बिना उलझे पुलिनबाबू हर हाल में शरणार्थियों की नागरिकता,उनके आरक्षण और उनके मातृभाषी के अधिकार के लिए लड़ते रहे।1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भी वे ढाका में शरणार्थी समस्या के स्थाई हल के लिए पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के एकीकरण की मांग करते हुए जेल गये।
1971 के बाद वीरेंद्र विश्वास ने भी पद्मा नदी के इस पार बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के लिए होम लैंड आंदोलन शुरु किया था।मरीचझापी आंदोलन में भी वे नरसंहार के शिकार शरणार्थियों के साथ खड़े थे।
तबसे आजतक विभाजनपीड़ित बंगाली शरणाऱ्थियों की नागरिकता,आरक्षण और मातृभाषा के अधिकार को लेकर आंदोलन जारी है लेकिन किसी भी स्तर पर इसकी सुनवाई नहीं हो रही है।सीमापार से लगातार जारी शरणार्थी सैलाब की वजह से दिनोंदिन यह समस्या जटिल होती रही है।भारत सरकार ने बांग्लादेश में अल्पसंक्यक उत्पीड़न रोकने के लिए कोई पहल 1947 से अब तक नही की है।2003 के कानून के बाद सन1947 के विभाजन के तुरंत बाद भारत आ चुके विभाजनपीड़ितों की नागरिकता छीन जाने से यह समस्या बेहद जटिल हो गयी है।1971 से हिंदुओं के साथ बड़े पैमाने पर असम,त्रिपुरा,बिहार और बंगाल में जो बांग्लादेशी मुसलमान आ गये,उसके खिलाफ असम औरत्रिपुरा में हुए खून खराबे के बावजूद इस समस्या को सुलझाने के बजाय राजीतिक दल अपना अपना वोटबैंक मजबूत करने के मकसद से राजनीति करते रहे,शरणार्थी समस्या सुलझाने की कोशिश ही नहीं हुई।
1960 के दशक में बंगाली शरणार्थियों के खिलाफ असम में हुए दंगो के बाद से लगातार पुलिन बाबू शरणार्थियों की नागरिकता की मांग करते रहे लेकिन वे शरणार्थियों का कोई राष्ट्रव्यापी संगठन बना नहीं सके।वे 1960 में असम के दंगाग्रस्त इलाकों में शरणार्तियों के साथ थे।अस्सी के दशक में भी बिना बंगाल के समर्थन के विदेशी हटाओ के बहाने असम से गैर असमिया समुदायों को खदेडने के खिलाफ वे शरणार्थियों की नागरिकता के सवाल को मुख्य मुद्दा मानते रहे हैं।
शरणार्थी समस्या सुलझाने के मकसद से अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर वे 1969 में भारतीय जनसंघ में शामिल भी हुए तो सालभर में उन्हें मालूम हो गया कि संघियों की कोई दिलचस्पी शरणार्थियों को नागरिकता देने में नहीं है।
हमें अनुभवों से अच्छीतरह मालूम है कि शरणार्थियों को बलि का बकरा बनाने की राजनीति की क्या दशा और दिशा है।लेकिन राजनीति यही रही तो हम शरणार्थी आंदोलन के केसरियाकरण को रोकने की स्थिति में कतई नही हैं।जो अंततः बंगाल में केसरियाकरण का एजंडा भी कामयाब बना सकता है।वामपंथी इसे रोक नही सकते।
बाकी राजनीतिक दलों के विभाजनपीड़ितों की नागरिकता के किलाफऱ लामबंद हो जाने के बाद असम और बंगाल में ही नहीं बाकी देश में भी इस मुद्दे पर धार्मिक ध्रूवीकरण का सिलसिला तेज होने का अंदेशा है।
कानूनी और तकनीकी मुद्दों को सुलझाकर तुरंत विभाजनपीड़ितों की नागरिकता देने की सर्वदलीय पहल हो तो यह धार्मिक ध्रूवीकरण रोका जा सकता है।

The Citizenship (Amendment) Bill, 2016

Security / Law / Strategic affairs

The Citizenship (Amendment) Bill, 2016

Highlights of the Bill

  • The Bill amends the Citizenship Act, 1955 to make illegal migrants who are Hindus, Sikhs, Buddhists, Jains, Parsis and Christians from Afghanistan, Bangladesh and Pakistan, eligible for citizenship.
  • Under the Act, one of the requirements for citizenship by naturalisation is that the applicant must have resided in India during the last 12 months, and for 11 of the previous 14 years.  The Bill relaxes this 11 year requirement to six years for persons belonging to the same six religions and three countries.
  • The Bill provides that the registration of Overseas Citizen of India (OCI) cardholders may be cancelled if they violate any law.

Key Issues and Analysis

  • The Bill makes illegal migrants eligible for citizenship on the basis of religion. This may violate Article 14 of the Constitution which guarantees right to equality.
  • The Bill allows cancellation of OCI registration for violation of any law. This is a wide ground that may cover a range of violations, including minor offences (eg. parking in a no parking zone).
http://www.prsindia.org/billtrack/the-citizenship-amendment-bill-2016-4348/



Wednesday 26 October 2016

Ambika Ray There was intense meeting on 25 th October in New Delhi with Dr.Satyapal Singh , Chairman of the Joint Parliamentary Committee on the issue of how to get the Citizenship Bill passed in both the house of the PARLIAMENT. Nikhil Bharat delegates have given all the noting to the Chairman in the long discussion. Again Nikhil Bharat delegates have been called before the Parliamentary Committee to have further discussion on 2 nd Nov.2016.

Ambika Ray
There was intense meeting on 25 th October in New Delhi with Dr.Satyapal Singh , Chairman of the Joint Parliamentary Committee on the issue of how to get the Citizenship Bill passed in both the house of the PARLIAMENT. Nikhil Bharat delegates have given all the noting to the Chairman in the long discussion. Again Nikhil Bharat delegates have been called before the Parliamentary Committee to have further discussion on 2 nd Nov.2016.

Tuesday 25 October 2016

সময় এসেছে। ভিক্ষা বৃত্তি ছাড়ুন। বাংলার নিপিড়িত শোষিত বঞ্চিত বহুজনের স্বার্থে একত্রিত হোন। রাজনৈতিক ক্ষ্মতায়নের মধ্য দিয়েই যোগ্য জবাব দিন এই যুগান্তের ষড়যন্ত্রকারীদের।

মোদিভাইয়ের আনা নাগরিকত্ব সংশোধনী বিল একেবারে বাতিল করার দাবী তুললেন দিদিভাই। দুর্দান্ত সাজানো নাটকের প্লট। শ্যামাপ্রসাদ থেকে শ্যামাঙ্গিনী মমতা নিখুঁত অভিনেতা অভিনেত্রী। দিদিভাই মোদিভাইরা জেনে গেছেন যে তাদের পূর্বপুরুষেরা ভারতকে টুকরো করে বাংলাকে টুকরো করে উদ্বাস্তুদের শিরদাঁড়া ভেঙ্গে দিয়েছেন। এখন তাদের মাথা নিচু করে থাকা ছাড়া উপায় নাই। ২০১৪ সাল পর্যন্ত আগত উদ্বাস্তুদের পক্ষে নাগরিকত্ব বিলকে সংশোধন করে আইনে পরিণত করলে এই ক্লীব শিরদাঁড়ায় আবার হাড় গজাতে শুরু করবে। ঘাড় শক্ত হবে। ঝুঁকে পড়া মাথা খাঁড়া হয়ে দাঁড়াবে। মূলনিবাসীর এই খাঁড়া মাথা ব্রাহ্মন্যবাদীদের কাছে বড় বেমানান। বড় বেশি আতঙ্কের।
বিজেপি যে বিল এনেছেন তাতে অসংখ্য ছিদ্র। এমন একটি ইস্যুতে এত ছিদ্র? খসড়া বিল আনার আগে সর্বদলীয় বৈঠকে এই ছিদ্র এড়ানো যেত। আসলে আন্তরিকতা নয় রাজনৈতিক ফয়দা তোলাই এদের লক্ষ্য। মানুষকে ছিন্নমূল করে রাখতে পারলেই এরা নিশ্চিন্ত থাকতে পারে।
সমাধান একটাই, বহুজনের রাজনৈতিক ক্ষ্মতায়ন। একটি বিদ্যালয়ের জন্য আন্দোলন, বিডিও অফিস ঘেরাও, ডেপুটেশন, একটি পরিষদ ইত্যাদি ইত্যাদি আসলে আবেদন-নিবেদন এবং ভিক্ষা বৃত্তির সামিল। সংখ্যা গরিষ্ঠ কেন এই ভিক্ষা বৃত্তিতে সামিল হবে? কেন তারা রাজনৈতিক ভাবে নিজেদের অধিকার প্রতিষ্ঠিত করবেন না !! আবেদন নিবেদনে ব্যক্তি মানুষের কিছু গতি হলেও সামগ্রিক স্বার্থ রক্ষা হয় না।
সময় এসেছে। ভিক্ষা বৃত্তি ছাড়ুন। বাংলার নিপিড়িত শোষিত বঞ্চিত বহুজনের স্বার্থে একত্রিত হোন। রাজনৈতিক ক্ষ্মতায়নের মধ্য দিয়েই যোগ্য জবাব দিন এই যুগান্তের ষড়যন্ত্রকারীদের।
Saradindu Uddipan and 3 others shared a link.
কংগ্রেস সহ অন্যান্য ধর্মনিরপেক্ষ দলগুলির সঙ্গে সমন্বয় করে তৃণমূল যে এ বার সংসদে মোদী সরকারকে কোণঠাসা করতে চাইছে তার ইঙ্গিত দু’দিন আগেই দিয়েছিলেন তৃণমূল নেত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়।
ANANDABAZAR.COM|BY নিজস্ব সংবাদদাতা

এই ছিলকী তোমার মনে। কোথায় গেল উদ্বাস্তু দরদ

EI Samay Edit against Citizenship Amendment Bill Published on 19 Oct 2016


EI Samay Edit  against Citizenship Amendment Bill Published on 19 Oct 2016

The Citizenship (Amendment) Bill, 2016

Security / Law / Strategic affairs

The Citizenship (Amendment) Bill, 2016

Highlights of the Bill

  • The Bill amends the Citizenship Act, 1955 to make illegal migrants who are Hindus, Sikhs, Buddhists, Jains, Parsis and Christians from Afghanistan, Bangladesh and Pakistan, eligible for citizenship.
    • Under the Act, one of the requirements for citizenship by naturalisation is that the applicant must have resided in India during the last 12 months, and for 11 of the previous 14 years.  The Bill relaxes this 11 year requirement to six years for persons belonging to the same six religions and three countries.
    •  The Bill provides that the registration of Overseas Citizen of India (OCI) cardholders may be cancelled if they violate any law.

    Key Issues and Analysis

    • The Bill makes illegal migrants eligible for citizenship on the basis of religion. This may violate Article 14 of the Constitution which guarantees right to equality.
      • The Bill allows cancellation of OCI registration for violation of any law. This is a wide ground that may cover a range of violations, including minor offences (eg. parking in a no parking zone).
      Read the complete analysis here
      http://www.prsindia.org/billtrack/the-citizenship-amendment-bill-2016-4348/

      Friday 21 October 2016

      Ambika Ray In this juncture the only way to force them to get pass the Bill in the Parliament by way of showing huge number of people on the road to show the protest and demand. Political class only understand the language of United huge gathering nothing else. Which exactly the Nikhil Bharat is doing

         
      Ambika Ray

      In this juncture the only way to force them to get pass the Bill in the Parliament by way of showing huge number of people on the road to show the protest and demand. Political class only understand the language of United huge gathering nothing else. Which exactly the Nikhil Bharat is doing

      হীৰেন গোঁহাই এবং অনেকে 'খিলঞ্জিয়া'র স্বার্থ বিরোধী হিন্দু বাঙালিদের সাবধান হবার পরামর্শ দিয়েছেন। বেশ, সংখ্যালঘু বাঙালি সহজেই সাবধান হয়ে যাবেন। কিন্তু তিনি কি যারা বাঙালি বিদ্বেষ ছড়াচ্ছেন তাদের বিরুদ্ধেও এমন সাবধান বাণী শোনাচ্ছেন?

      Sushanta Kar
      হীৰেন গোঁহাই এবং অনেকে 'খিলঞ্জিয়া'র স্বার্থ বিরোধী হিন্দু বাঙালিদের সাবধান হবার পরামর্শ দিয়েছেন। বেশ, সংখ্যালঘু বাঙালি সহজেই সাবধান হয়ে যাবেন। কিন্তু তিনি কি যারা বাঙালি বিদ্বেষ ছড়াচ্ছেন তাদের বিরুদ্ধেও এমন সাবধান বাণী শোনাচ্ছেন? হ্যা, নম্র হয়ে বলেছেন বটে, ৭১এর আগে আসা বাঙালিদের উপরে আক্রমণ হলে পাশে দাঁড়াবেন। কিন্তু সেতো মুখের কথা স্যর। এই বাঙালির ভাষা সংস্কৃতির উপরে আক্রমণ হচ্ছে কিনা সেসব প্রশ্ন ছেড়ে দিলেও রোজ যে কত শত মানুষ ডি-ভোটার হন, ডিটেনশন কেম্পে কয়েদীর জীবন যাপন করেন--কই , আপনি আর আপনার অনুরাগীরা সেসব নিয়ে বাঙালির পাশে আজ অব্দি দাঁড়ালেন না তো। এক মার্ক্সবাদী তাত্ত্বিক বলে আপনাদের প্রতি আমাদের অগাধ আস্থা, অটুট শ্রদ্ধা। কিন্তু সেই শ্রদ্ধা অন্ধতো হতে পারে না স্যর। আপনি কি কেবল অসমিয়ারই মার্ক্সবাদী তাত্ত্বিক? বাঙালির নন? বাকি ভারতের নন? সবার জন্যে মার্ক্সবাদী তাত্ত্বিক হবার জায়গাটি কি স্যর আপনি সেই সব পশ্চিমবঙ্গীয় বাঙালির জন্যেই রেখে দিলেন, যাদের লেখালেখি আপনি নিত্য নতুন পদাতিকে অনুবাদ করে প্রকাশ করে থাকেন? এইটুকুনই আপনার বাঙালি অনুরাগ? বাঙালি শ্রমিকের কী হবে স্যর, বাঙালি দলিতের কী হবে স্যর? তারা যে নিত্য ডি-ভোটার হবার ভয়ে মরে, কবে জেলে যায় সেই ভয়ে মরে। আর এন আর সি না হওয়া অব্দি ৭১এর আগে এসেও না বাংলাদেশী হয়ে যায় সপরিবারে সেই নিয়ে দিন গুনছেন। আপনি মহৎ , মুসলমানের বেদনা বুঝেছেন। অসমিয়ারও বেদনা বোঝেন। কিন্তু দ্বিতীয় বৃহৎ জনগোষ্ঠী বাঙালি হিন্দুর বেদনা বুঝবার দায়িত্ব কি তবে হিন্দুত্ববাদীদের আপনি এবং আপনারাও দিয়ে রাখলেন? এই করেই হিন্দুত্ববাদ মোকাবেলা করবেন? জাতীয়তাবাদতো পারল না, এবারে কি বামেরা হাত পাকিয়ে দেখবেন? খানিক ভাবুন স্যর, বাঙালিকে বাঙালি থাকতে দিন, না হলে তারা হিন্দু কিংবা মুসলমান হয়ে আছে। আর চিরদিন তাই থেকে যাবে। ভাষাটা মার খাচ্ছে, খাবে। সুতরাং মার খাবে বিদ্যা বুদ্ধি শিক্ষা সংস্কৃতি। ভাবুন, ১৯৭১এর আগে আসা এক বিশাল বিদ্যা বুদ্ধি সংস্কৃতি বিহীন জনসংখ্যাকে নিয়ে কি সত্যি পারবেন, এক 'বিপ্লবী' 'সোনার আসাম' গড়ে তুলতে?

      Thursday 20 October 2016

      Rafeef Ziadah - Shades of Anger (English subtitled)

      Rafeef Ziadah - 'We teach life, sir', London, 12.11.11

      सत्ता समीकरण साधने के लिए कश्मीर में बाहरी हस्तक्षेप की जमीन बना दी! बंगाल और असम में कश्मीर से भी खतरनाक हालात! कारपोरेट विश्वव्यवस्था के शिकंजे में हैं हमारी राजनीति और राजनय और नागरिकों का सीधे तौर पर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण हो चुका है। फिजां कयामत है और पानियों में आग दहकने लगी है।हवाओं में विष के दंश हैं।पांव तले जमीन खिसकने लगी है।हिमालय के उत्तुंग शिखरों में ज्वालामुखियों के मुहाने खुलने लगे हैं।खानाबदोश मनुष्यता की स्मृतियों में जो जलप्रलय की निरंतरता है,उसमें अब रेगिस्तान की तेज आंधी है। पलाश विश्वास

      सत्ता समीकरण साधने के लिए कश्मीर में बाहरी हस्तक्षेप की जमीन बना दी!
      बंगाल और असम में कश्मीर से भी खतरनाक हालात!
      कारपोरेट विश्वव्यवस्था के शिकंजे में हैं हमारी राजनीति और राजनय और नागरिकों का सीधे तौर पर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण हो चुका है।
      फिजां कयामत है और पानियों में आग दहकने लगी है।हवाओं में विष के दंश हैं।पांव तले जमीन खिसकने लगी है।हिमालय के उत्तुंग शिखरों में ज्वालामुखियों के मुहाने खुलने लगे हैं।खानाबदोश मनुष्यता की स्मृतियों में जो जलप्रलय की निरंतरता है,उसमें अब रेगिस्तान की तेज आंधी है।
      पलाश विश्वास

      फिजां कयामत है और पानियों में आग दहकने लगी है।हवाओं में विष के दंश हैं।पांव तले जमीन खिसकने लगी है।हिमालय के उत्तुंग शिखरों में ज्वालामुखियों के मुहाने खुलने लगे हैं।खानाबदोश मनुष्यता की स्मृतियों में जो जलप्रलय की निरंतरता है,उसमें अब रेगिस्तान की तेज आंधी है।
      अपनी मुट्ठी में कैद दुनिया के साथ जो खतरनाक खेल हमने शुरु किया है,वह अंजाम के बेहद नजदीक है।हम परमाणु विध्वंस के मुखातिब हो रहे हैं।
      असंगठित राष्ट्र,असंगठित समाज और खंडित परिवार में कबंधों के कार्निवाल में अराजक आदिम असभ्य बर्बर दुस्समय के शिकंजे में हम अनंत चक्रव्यूह के अनंत महाभारत में हैं।
      1973 से,तैतालीस साल से मैं लिख रहा हूं।पेशेवर पत्रकारिता में भारत के सबसे बड़े मीडिया समूहों में छत्तीस साल खपाने के बावजूद कोई मंच ऐसा नहीं है ,जहां चीखकर हम अपना दिलोदिमाग खोलकर आपके समाने रख दें या हमारे लिए इतनी सी जगह भी कहीं नहीं है कि हम आपको हाथ पकड़कर कहीं और किसी दरख्त के साये में ले जाकर कहें वह सबकुछ जो महाभारत के समय अपनी दिव्यदृष्टि से अंध धृतराष्ट्र को सुना रहा था।
      धृतराष्ट्र सुन तो रहे थे आंखों देखा हाल ,लेकिन वे यकीनन कुछ भी नहीं देख रहे थे।संजोग से वह दिव्यदृष्टि हमें भी कुछ हद तक मिली हुई है और हमारी दसों दिशाओं में असंख्य अंध धृतराष्ट्र अपने कानों के अनंत ब्लैक होल के सारे दरवाजे खोलकर युद्धोन्माद के शित्कार से अपने इंद्रियों को तृप्त करने में लगे हैं।जो दृश्य हमारी आंखों में घनघटा हैं,उन्हें हम साझा नहीं कर सकते।
      हालात बेहद संगीन है।मैं कहीं चुनाव में आपसे अपने समर्थन में वोट नहीं मांग रहा हूं।मुझे देश में या किसी सूबे में राजनीतिक समीकरण साधकर सत्ता हासिल भी नहीं करना है।हम मामूली दिहाड़ी मजदूर हैं और किसी पुरस्कार या सम्मान के लिए मैंने कभी कुछ लिखा नहीं है।डिग्री या शोध के लिए भी नहीं लिखा है।जब तक आजीविका बतौर नौकरी थी, पैसे के लिए भी नहीं लिखा है।आज भी पैसे के लिए लिखता नहीं हूं।आजीविका बतौर अनुवाद की मजदूरी करता हूं जो अभी छह महीने में शुरु भी नहीं हुई है।
      मुझे आपकी आस्था अनास्था से कुछ लेना देना नहीं है और न आपके धर्म कर्म के बारे में कुछ कहना है।पार्टीबद्ध भी नहीं हूं मैं।अकारण सिर्फ शौकिया लेखन बतौर आजतक मैंने एक शब्द भी नहीं लिखा है।समकालीन यथार्थ को यथावत संबोधित करने का हमेशा हमारा वस्तुनिष्ठ प्रयास रहा है।यही हमारा मिशन है।
      मुझे सत्ता वर्चस्व का कोई डर नहीं है।मुझे असहिष्णुता का भी डर नहीं है।मेरे पास रहने को घर भी नहीं है तो कुछ खोने का डर भी नहीं है। मेरी हैसियत सतह के नीचे दबी मनुष्यता से बेहतर किसी मायने में नहीं है तो उस हैसियत को खोने के डर से मौकापरस्त बने जाने की भी जरुरत मुझे नहीं है।
      हमने सत्तर के दशक के बाद अस्सी के दशक का खून खराबा खूब देखा है और तब हम दंगों में जल रहे उत्तर प्रदेश के मेरठ और बरेली शहर के बड़े अखबारों में काम कर रहा था।हवाओं में बारुदी गंध सूंघने की आदत हमारी पेशावर दक्षता रही है और जलते हुए आसमान और जमीन पर जलजला के मुखातिब मैं होता रहा हूं और जन्मजात हिमालयी होने के कारण प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के बारे में हमारी भी अभिज्ञता है हम यह कहने को मजबूर हैं कि हालात बेहद संगीन हैं।हमारा अपराध इतना सा है कि हम आपको आगाह करने का दुस्साहस कर रहे हैं।
      बांग्लादेश युद्ध जीतने के बाद किसी को यह आशंका नहीं थी कि त्रिपुरा,असम और पंजाब से देश भर में खून की नदियां बह निकलेंगी।1965 की लड़ाई के बाद 1971 के युद्ध में कश्मीर में आम तौर पर अमन चैन का माहौल रहा तो समूचे अस्सी के दशक में बाकी देश में खून खराबा का माहौल रहा,वह सिलसिला अब भी खत्म हुआ नहीं है।
      इतनी लंबी भूमिका की जरुरत इसलिए है कि हालात इतने संगीन हैं कि इस वक्त खुलासा करना संभव नहीं है।सिर्फ इतना समझ लें कि कश्मीर से ज्यादा भयंकर हालात इस वक्त बंगाल और असम में बन गये हैं।
      इतने भयंकर हालात हैं कि अमन चैन के लिहाज से उनका खुलासा करना भी संभव नही है।पूरे बंगाल में जिस तरह सांप्रदायिक ध्रूवीकरण होने लगा है,वह गुजरात से कम खतरनाक नहीं है तो असम में भी गैरअसमिया तमाम समुदाओं के लिए जान माल का भारी खतरा पैदा हो गया है।गुजरात अब शांत है।लेकिन बंगाल और असम में भारी उथल पुथल होने लगा है।
      इस बीच कुछ खबरें भी प्रकाशित और प्रसारित हुई हैं।राममंदिर आंदोलन के वक्त उत्तर भारत में जिस तरह छोटी सी छोटी घटनाएं बैनर बन रही थी,गनीमत है कि बंगाल में वैसा कुछ नहीं हो रहा है और हालात नियंत्रण में हैं।चूंकि इस पर सार्वजनिक चर्चा हुई नहीं है तो हम भी तमाम ब्योरे फिलहाल साझा नहीं कर रहे हैं और ऐसा हम अमन चैन का माहौल फिर न बिगड़े,इसलिए कर रहे हैं।
      बांग्लादेश में हाल की वारदातों के लिए तमाम तैयारियां बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में होती रही है,इसका खुलासा हो चुका है।
      अब आम जनता के सिरे से सांप्रदायिक ध्रूवीकरण में बंट जाने के बाद दशकों से राजनीतिक संरक्षण में पल रहे वे तत्व क्या गुल खिला सकते हैं,असम और बंगाल में आगे होने वाली घटनाएं इसका खुलासा कर देंगी।
      वोटबैंक की राजनीति के तहत पूरे देश में अस्मिता राजनीति कमोबेश फासिज्म के राजकाज को ही मजबूत कर रही है,फिर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इस राजनीति का समर्थन कितना आत्मघाती होने जा रहा है,यह हम सत्तर,अस्सी और नब्वे के दशकों में बार बार देख चुके हैं और तब सत्ता का रंग केसरिया भी नहीं था।
      परमाणु विध्वंस के लिए वोटबैंक दखल के राजनीतिक समीकरण साधने की राजनीति और राजकाज से यह सांप्रदायिक ध्रूवीकरण बेहद तेज होने लगा है और विडंबना यह है कि असंगठित राष्ट्र,असंगठित समाज और खंडित परिवार के हम कबंध नागरिक इस खंडित अंध अस्मिता राष्ट्रवाद के कार्निवाल में तमाम खबरों से बेखबर किसी न किसी के साथ पार्टीबद्ध होकर नाचते हुए तमाम तरह के मजे ले रहे हैं और मुक्त बाजार में अबाद पूंजी प्रवाह की निरंकुश क्रयशक्ति की वजह से हमारा विवेक,सही गलत समझने की क्षमता सिरे से गायब है।
      हम बार बार आगाह कर रहे हैं कि ये युद्ध परिस्थितियां कोई भारत पाक या कश्मीर विवाद नहीं है।बल्कि कारपोरेट विश्वव्यवस्था के तहत सुनियोजित संकट का सृजन है।जैसे पाकिस्तान की फौजी हुकूमत ने पूर्वी पाकिस्तान की आम जनता का दमन का रास्ता अख्तियार करके बांग्लादेश में भारतीय सैन्य हस्तक्षेप की परिस्थितियां बना दी थी,हम उस इतिहास से कोई सबक सीखे बिना कश्मीर की समस्या सुलझाने के बजाये उसे सैन्य दमन के रास्ते उलझाते हुए अपनी आत्मघाती राजनीति और राजनय से कश्मीर में बाहरी हस्तक्षेप की जमीन मजबूत करने लगे हैं।
      पाकिस्तान की फौजी ताकत और हथियारों की होड़ में उसकी मौजूदा हैसियत चाहे कुछ भी हो ,भारत का उससे कोई मुकाबला नहीं है क्योंकि सन 1962,सन 1965 और सन 1971 की लड़ाइयों और अंधाधुंध रक्षा व्यय के बावजूद भारत में लोकतंत्र पर सैन्यतंत्र का वर्चस्व कभी बना नहीं है।
      भारत में युद्धकाल से निकलकर विकास की गतिविधियां जारी रही हैं और हर मायने में भारतीय अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर रही है तो सत्ता परिवर्तन के बावजूद राजनीतिक अस्थिरता सत्तर के दशक के आपातकाल के बावजूद कमोबेश भारत राष्ट्र के लोकतांत्रिक ढांचे को तोड़ नहीं सका है।
      जबकि पाकिस्तान में लोकतंत्र उस तरह बहाल हुआ ही नहीं है।लोकतांत्रिक सरकार पर फौज हावी होने से पाकिस्तान में युद्ध परिस्थितियां उसके अंध राष्ट्रवाद के लिए अनिवार्य है और भारत विरोध के बिना उसका कोई वजूद है ही नहीं।
      इसी वजह से पाकिस्तान लगातार अपनी राष्ट्रीय आय और अर्थव्यवस्था को अनंत युद्ध तैयारियों में पौज के हवाले करने को मजबूर है और इसीलिए उसकी संप्रभुता अमेरिका ,चीन और रूस जैसे ताकतवर देशों के हवाले हैं।यह भारत की मजबूरी नही है।
      हमारी राजनीति चाहे कुछ रही हो,अबाध पूंजी निवेश और मुक्त बाजार के बावजूद राष्ट्रनिर्माताओं की दूर दृष्टि की वजह से हमारा बुनियादी ढांचा निरंतर मजबूत होता रहा है।विकास के तौर तरीके चाहे विवादास्पद हों,लेकिन विकास थमा नहीं है।अनाज की पैदावार में हम आत्मनिर्भर हैं हालाकि अनाज हर भूखे तक पहुंचाने का लोकतंत्र अभी बना नहीं है। हमें पाकिस्तान की तरह बुनियादी जरुरतों और बुनियादी सेवाओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहने की जरुरत नहीं है।
      अस्सी के दशक के खून खराबा और नब्वे के दशक में हुए परिवर्तन के मध्य पाकिस्तान से भारत का कबी किसी भी स्तर पर कोई मुकाबला नहीं रहा है।कश्मीर मामले को भी वह अंतरराष्ट्रीिय मंचों पर उठाने में नाकाम रहा है।
      पाकिस्तानी फौजी हुकूमत की गड़बड़ी फैलाने की तमाम कोशिशों के बावजूद कश्मीर विवाद अंतर राष्ट्रीय विवाद 1971 से लेकर अबतक नहीं बना था और न तमाम देशों,अमेरिका,रूस या चीन समेत की विदेश नीति में भारत और पाकिस्तन को एक साथ देखने की पंरपरा रही है।
      पाकिस्तान राजनयिक तौर पर अमेरिका और चीन का पिछलग्गू रहा है और बाकी दुनिया से अलग रहा है।इस्लमी राष्ट्र होने के बावजूद उसे भारत के खिलाफ इस्लामी देशों से कभी कोई मदद मिली नहीं है और भारतीय विदेश नीति का करिश्मा यह रहा है कि उसे लगातार अरब दुनिया और इस्लामी दुनिया का समर्थन मिलता रहा है।पाकिस्तान हर हाल में अलग थलग रहा है।
      ब्रिक्स के गठन के बाद तो चीन ऱूस ब्राजील के साथ भारत एक आर्थिक ताकत के रुप में उभरा है और भारत जहां है,उस हैसियत को हासिल पाकिस्तान ख्वाबों में भी नहीं कर सकता क्योंकि फौजी हुकूमत के शिकंजे से निकले बिना ऐसा असंभव है।
      हमारे अंध राष्ट्रवाद ने कश्मीर समस्या को भारत पाक विवाद बना दिया है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने की अंध राजनय ने हाल में गोवा में हुए ब्रिक शिखर वार्ता के विशुध आर्थिक मंच पर भी बेमतलब कश्मीिर को मुद्दा बना दिया है,जिसकी गूंज अमेरिकी,चीनी,रूसी कूटनीतिक बयानों में सुनायी पड़ रही है।
      यह राजनयिक आत्मघात है ,भले ही इस कवायद से किसी राजनीतिक पार्टी को यूपी और पंजाब में सत्ता दखल करने में भारी मदद मिलेगी,लेकिन इस ऐतिहासिक भूल की भारी कीमत हमें आगे अदा करनी होगी।
      नागरिकों का विवेक जब पार्टीबद्ध हो जाये तब राष्ट्र और राष्ट्रवाद की चर्चा बेमानी है।
      यह बेहद खतरनाक इसलिए है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में चाहे मैडम हिलेरी जीते या फिर डोनाल्ड ट्रंप,जिन्हें ग्लोबल हिंदुत्व के अलावा पोप का समर्थन भी मिला हुआ है,अमेरिका की तैयारी परमाणु युद्ध की है और आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका के युद्द में पार्टनर होने से तेल कुओं की आग से भारत को बचाना उतना आसान भी नहीं होगा।
      कारपोरेट विश्वव्यवस्था के शिकंजे में है हमारी राजनीति और राजनय और नागरिकों का सीधे तौर पर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण हो चुका है।

      आप चाहे तो हमें जी भरकर गरियायें।सोशल मीडिया पर भी आप हमें आप जो चाहे लिख सकते हैं।हम जैसे कम हैसियत के नामानुष को इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है,लेकिन जिन खतरों की तरफ हम आपका ध्यान आकर्षित करना चाह रहे हैं,अपनी अस्मिता और अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता से ऊपर उठकर एक मनुष्य और एक भारतीय नागरिक बतौर उन पर तनिक गौर करें तो हम आपके आभारी जरुर होगें।

      Wednesday 19 October 2016

      আসামবাসী বাঙালিসমাজ অন্য জনগোষ্ঠীর দ্বারা আক্রান্ত হলে,নিরাপত্তার অলীক আশ্বাসে তারা বাধ্য হয়ে ধৰ্মীয় সাম্প্রদায়িক অপশক্তির পাশে চলে যাবেন,এধরণের কূটকৌশল সমগ্র আসামবাসী অনুধাবন করা খুবই প্রয়োজনীয়।.

      বলা বাহুল্য,আসামবাসী এক্ষেত্রে উৎফুল্লিত হয়ে উঠা কিন্তু মোটেও যুক্তিসঙ্গত কথা হবে না,তার সম্ভাবনাও হয়তো নেই বলব। কিন্তু বিক্ষুব্ধ হয়ে উঠলে,সেই ক্ষোভ সঠিক দিকে পরিচালিত নাহলে আসামের মাটি আরও একবার রক্তাক্ত হয়ে উঠবে,সেটা নিশ্চিত বলা যায়।কথাটি কোনো রাখ‌ঢাক না রেখে এভাবেও বলা যায়,যে বিপুল সংখ্যক বাঙালি হিন্দু বাংলাদেশীকে নাগরিকত্ব প্রদান করার প্রস্তুতিতে অন্য ভাষিক জনগোষ্ঠীর মনে বহুমাত্রিক (যেমন সংখ্যালঘু হয়ে পড়ার ভয়, সাংস্কৃতিক আধিপত্যের সংকোচন ইত্যাদি) আশংকার জন্ম দেবে।এই আশংকাজনিত ক্ষোভ সমগ্র বাঙালি সমাজের দিকে ধাবিত হওয়ার সম্ভাবনাই অত্যন্ত প্রবল।তেমন সম্ভাবনার সতর্কবাণী ইতিমধ্যেই কোনো কোনো মানুষের মত-মন্তব্যে প্রতিফলিত হয়েছে,কথাটা খুবই উদ্বেগের কথা কিন্তু। সবাই মনে রাখা ভাল যে সমগ্র বাঙালি সমাজটিই এক্ষেত্রে কোনোভাবেই দায়ী নয়। তাদের বলির পাঠা বানানো এসমস্ত ঘটনাবলীর আড়ালের অপশক্তি কারা,সে বিষয়টি পরিষ্কার হওয়া অত্যন্ত জরুরী কিন্তু। নাহলে যতই তীব্র হোক তাদের সকল বিক্ষোভ-প্রতিবাদ,সবই পথভ্রষ্ট পণ্ডশ্রম হয়ে পড়বে।কথাটা এখানেই শেষ নয়, আসামবাসী বাঙালিসমাজ অন্য জনগোষ্ঠীর দ্বারা আক্রান্ত হলে,নিরাপত্তার অলীক আশ্বাসে তারা বাধ্য হয়ে ধৰ্মীয় সাম্প্রদায়িক অপশক্তির পাশে চলে যাবেন,এধরণের কূটকৌশল সমগ্র আসামবাসী অনুধাবন করা খুবই প্রয়োজনীয়।...আলি ইব্রাহিমের (Ali Ibrahim )অনুবাদে কৌশিক দাসের (Kaushik Das)অসমিয়া নিবন্ধ পড়ুন...
      মূল অসমিয়া : কৌশিক দাস বাংলা অনুবাদ : আলি ইব্রাহিম            সং বাদ শিরোনামে এখন নাগরিকত্ব সংশোধনী বিধেয়কের কথাই দখল করে আ...
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      Tuesday 18 October 2016

      প্রতিটি বাড়িতেই এই gassir পিঠে তৈরি হতো .বিশেষ করে vijene পিঠের কথা ভুলতে পারিনা .

      লেখক : ড .বিরাট বৈরাগ্য
      আশ্বিন মাসের শেষ রাতকে gassi রাত বলে এই রাতের শেষে এখনও আমাদের গ্রামে হাতে গড়া মাটির প্রদীপ মহিলারা জ্বালান .আগের দিন এঁটেল মাটি দিয়ে মেয়েরা কাঁচা মাটির প্রদীপ তৈরী করে রাখত .প্রতি বাড়িতে মাটির পিদ্দূম বানানোর উত্সাহ দেখার মতো .রাত্রে পিঠে banato নানা রকমের .তবে দুধ রসে ভেজানো ভেজানো পিঠে আমার ভাল. লাগত .রাতে আমরা ছাত্ররা ঘুমাতাম না .আমাদের বলা হতো এই রাতে সব বই পড়তে হয় তাহলে সব পড়া মনে থাকবে .
      ভোর বেলায় বা শেষ রাত্রে গোয়ালের গরু বাছুর নদীতে বা বিলে নিয়ে স্নান করিয়ে এনে এদের শিং এ তেল সিঁদুর দেয়া হতো কৃষি ভিত্তিক বাংলায় কৃষি কাজে গরুর ভূমিকা গুরুত্বপূর্ণ সেজন্য ওই দিনটি গরুকে বিশেষ ভাবে যত্ন করা হতো .উঠান ঘর বাড়ি লেপে সাফ সুরত করে রাখা হতো উঠোনের মাঝখানে আলপনা দেয়া হতো ,গরু গুলকে স্নান করানোর পরে উঠোনের মাঝখানে এনে তেল সিঁদুর দিয়ে সারা শরীরে চালের গুঁড়ির ছাপ দেয়া হতো .kartick মাসে চাষের সময় গরুর জ্বর হতো বা অসুখ হতো যাতে গরুর জ্বর না হয় সে জন্য গরুকে একধরনের ভেষজ khaoyano হতো জঙ্গল থেকে আনা হতো গুল্ম জতীয় গাছ .এই গুল্ম এর নাম "আমগুরুজ".এই আম gurujer সঙ্গে এক টুকরো চাল কুমড়ো ,একটি পুঁটি মাছ ,চালের গুঁড়ো দিয়ে তৈরী বিশেষ পিঠে এই বিশেষ পিঠে শুধুমাত্র গরুর জন্য্ তৈরি হত .এগুলো একসঙ্গে করে গরুর মুখের মধ্যে জোর করে ঢুকিয়ে দেয়া হতো .
      এই gassir রাত জেগে সকলে সকালে নিম পাতা ও হলুদ বাটা গায়ে মেখে স্নান করে আসত .স্নানের পর সকলে বিশেষ পদ্ধতিতে তৈরি কাজল পরে .এরপর রাতের তৈরি পিঠে সকলে আনন্দের সঙ্গে খায় .প্রতিটি বাড়িতেই এই gassir পিঠে তৈরি হতো .বিশেষ করে vijene পিঠের কথা ভুলতে পারিনা .
      Matuara সারা রাত ভর নাম গান করার পর ভোরে সমগ্র গ্রাম পরিক্রমা করে matua কীর্তনের মাধ্যমে .
      Gassir ভোর রাতে বালক বালিকারা বাড়ির কুলো নিয়ে দলবদ্ধ হয়ে পেটাতে পেটাতে যায় আমি ছোট বেলায় এই দিনটার জন্য্ অপেক্ষা করতাম .রাত জেগে থাকতামকখন কুলো পেটানোর সময় হবে .এই kulo কেন পেটানো হয় .আমাদের জনগোষ্ঠীর বিশ্বাস kulo পিটিয়ে মশা মাছি র প্রাদুর্ভাব কমান যাবে .প্রতিটি ব্রত ই মানুষের মঙ্গলের জন্য্ করা হয় .কৃষিভিত্তিকনমঃ শূদ্র সম্প্রদায়ের মধ্যে এই gassi ব্রতের প্রভাব অপরিসীম .আমার বাড়ি নদীয়া জেলার কৃষ্ণ গঞ্জ থানার অধীন majhdia স্টেশন এর সন্নিকটে নমঃ শূদ্র অধ্যুষিত অঞ্চলে গ্রাম ধরমপুর .এই gassiতে kulo পেটানোর বালক বালিকারা পেটানোর তালে তালে গানের সুরে বলত purota লিখতে parbo না এখনকার দৃষ্টিতে অশ্লীল বলে .কিন্তু গ্রামে আমরা দেখতাম গ্রামের কেউ অশ্লীল বলছে না .গানটি
      নিম্নরূপ "মশা মশা কান খলসা কানে বাঁধা দড়ি ,সকল মশা খেদায় দেব অমুকের মার বাড়ি অমুকের মার .......খান খুঁচে খুঁচে খা "
      লোক সংস্কৃতিতে দেখা যায় এই শব্দ গুলি লোক মানুষ সমাজের মঙ্গলার্থে ব্যবহার করেছে .

      ছত্রিশগড়ে নিখিল ভারত সমিতির ব্যানার তলে অমরন অনসন আন্দোলনের পরে , প্রশাসন বাংলা ভাষায় শিক্ষা,OBC উদ্বাস্তু বাঙালিদের OBC সুযোগ প্রদানের জন্য বিশেষ আদেশ জারি করেন।এবং জমির পাট্টা ও ( জমি কেনা বেঁচার ) আদেশ জারি করেন।বাঙালি উদ্বাস্তু SC দাবী বাস্তবায়নের জন্য বিশেষ সার্ভে কমিটি গঠন করেছে। যে আঠ রাজ্যে SC সুযোগ পাচ্ছেন,তিন মাসের মধ্যে কমিটি সার্ভ রিপোর্ট ছত্রিশগড সরকারকে জমাদেবেন। এবং ছত্রিশগড সরকার সেমতবাকী পদক্ষেপ নেবেন। সরকারী আদেশপত্র নিচে সংযোজন করাবেন। জয় নিখিল ভারত*********

      ছত্রিশগড়ে নিখিল ভারত সমিতির ব্যানার তলে অমরন অনসন আন্দোলনের পরে , প্রশাসন বাংলা ভাষায় শিক্ষা,OBC উদ্বাস্তু বাঙালিদের OBC সুযোগ প্রদানের জন্য বিশেষ আদেশ জারি করেন।এবং জমির পাট্টা ও ( জমি কেনা বেঁচার ) আদেশ জারি করেন।বাঙালি উদ্বাস্তু SC দাবী বাস্তবায়নের জন্য বিশেষ সার্ভে কমিটি গঠন করেছে। যে আঠ রাজ্যে SC সুযোগ পাচ্ছেন,তিন মাসের মধ্যে কমিটি সার্ভ রিপোর্ট ছত্রিশগড সরকারকে জমাদেবেন। এবং ছত্রিশগড সরকার সেমতবাকী পদক্ষেপ নেবেন। সরকারী আদেশপত্র নিচে সংযোজন করাবেন। জয় নিখিল ভারত*********

      Monday 17 October 2016

      আশ্বিনের শেষ, কার্তিকের শুরু। আজ রাতেই গাস্যি পরব!

      Kapil Krishna Thakur
      আশ্বিনের শেষ, কার্তিকের শুরু। আজ রাতেই গাস্যি পরব! ভাবলে মনটা কেমন উদাস হয়ে যায়।শৈশবের সেই ফেলে আসা নিকানো উঠোনে কি আজও ভোররাতে কেউ দেবে চালের গুঁড়োর শুভ্র আলপনা? কাকভোরে স্নানের জন্য বেটে রাখা হবে কাঁচা হলুদ, নিমপাতা; হিম জলে স্নান সেরে ঠোঁটে মাখা হবে কাঁচা তেঁতুল পোড়ানো ক্রীম, আর চোখে কলার ডগা থেকে তৈরী কাজল? প্রকৃতির সন্তানদের জন্য কী অসামান্য আয়োজন। হায় শৈশব!
      নস্টালজিক হতেই ‘উজানতলীর’ পাতা খুলে বসলাম।–“একটু পরেই বেড়ায়-বাতায় সপাসপ শব্দ। এ ঘর থেকে সে ঘর, সে ঘর থেকে সে বাড়ি, বাড়ি থেকে পাড়া, পাড়া ছাড়িয়ে গ্রাম, শেষে সারা মহল্লাই। আর মুখে মুখে সমবেত ছড়ার চিৎকার—এই দ্যাশের ইন্দুর-বান্দর ভাটির দ্যাশে যায়,/ ভাটির দ্যাশের লক্ষ্মীঠারন এই দ্যাশে আয়। …দেখতে দেখতে হাতে হাতে জ্বলে উঠেছে মশাল। সেই মশাল ভোর রাতের আবছা অন্ধকারকে মহিমান্বিত করে আলোকমালার মতো ঘুরছে বৃত্তাকারে”। সেই স্বদেশ আর কৃষি-সংস্কৃতি থেকে অনেক দূরে আমরা, দূরে তাই সেই সব পরব থেকেও।