Saturday, 17 September 2016

बिजनौर में 'खूनी खंजर' फिर निकल गया।

बीचबचाव के बावजूद 'सैफई-घराने' में अंदरूनी जंग अभी जारी ही थी कि बिजनौर में 'खूनी खंजर' फिर निकल गया। यह खंजर चुनावों से पहले अक्सर निकलता है। कोई भी सरकार जब अपने वजूद, अपने एजेंडे, अपनी कार्यप्रणाली के लिये सिर्फ एक परिवार पर निर्भर हो जाय तो वह लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता और जन-जवाबदेही के साथ बेहतर कामकाजी-प्रदर्शन कैसे कर सकती है? लोकतंत्र में वंशवाद एक तरह का 'ब्राह्मणवाद' ही तो है, जिसमें श्रेष्ठता सिर्फ एक कुनबे, एक छोटे समूह तक सीमित मान ली जाती है। बहरहाल, अब फौरी जरूरत है-घराना-संघर्ष की 'अमर-कथा' में विराम लगाकर युवा मुख्यमंत्री बिजनौर के घटनाक्रम पर ध्यान दें। अक्सर, चुनावों से पहले निकलने वाले 'खूनी खंजर' को आगे नहीं बढ़ने दें।

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