Monday, 1 August 2016

गाय हमारी मां नहीं है तुम्हारी है लेकिन अपनी मां का अंतकर्म देखने तुम कभी नहीं आए तुमने कभी अपनी मां का नहीं किया अंतिम संस्कार

साथियों, गाय पर एक नयी कविता यहां प्रस्तुत कर रहा हूं. पढ़ें और उचित लगे तो दूसरों से साझा भी करें. धन्यवाद.
गाय-2
गाय 
मां है तुम्हारी
क्योंकि तुम ही सदा से पीते आए हो दूध
घरों में तुम्हारे जलते हैं घी के दीए
माखनचोर के मंदिर के तुम पुजारी हो,
वही तुम्हारा ठाकुर है
दही का पंचामृत केवल तुम्हारे कुल परिवारों के लिए है
तुम बैलगाड़ियों पर बैठकर स्नान को जाते रहे
मेलों में, अस्पताल में,
बारातों, बहू की विदा में
बैलों ने तुम्हारे खेत जोते
तुम्हारे दरवाज़े की शोभा बढ़ाई.
हमारे लिए गाय शोषण का माध्यम रही
चारा काटते, गो चराते हम तुम्हारे गुलाम बने रहे
हमारे हिस्से में आया गोबर
हमने गोबर को सिर पर ढोया, हाथों से थापा
उपलों से तुम्हारे चूल्हे जले
हम भीगे चूल्हों पर पतीली में पानी उबालते रहे
हमारे बच्चों ने जो दूध पिया, वो अपनी मां का
उसके सूखे थनों के अलावा अपनी कोई कामधेनु नहीं थीं
हम सुअरों की घर्राहट और तुम्हारी गालियों के बीच बड़े हो गए
हम बैलगाड़ी पर कभी नहीं बैठे
हमारे पास न बैल थे, न कभी बैलगाड़ी रखने दी गई
खेत तो अपना कभी था ही नहीं
हम लंबे सींगों वाले तुम्हारे बैलों को आता देखकर रास्ता छोड़ते रहे
तुम गालियां बकते हुए आगे जाते रहे
हम लढ़ियों के पीछे सूखी सोहारियों की आस लिए
नंगे भागते रहे
इलाज और प्रसव के लिए
हम चारपाइयों पर अपने लोगों को ढोकर ले जाते रहे
और वैसे ही ढोकर बहू घर आती रहीं
गाय सचमुच हमारी मां नहीं है
हमारे लिए गाय चमड़ा है
तुमने चमड़े का प्रलोभन दे हमसे मरी गाय उठवाईं
हम मरियल काया पर मरी गाय ढोकर ले जाते रहे
चील, कौओं, कुत्तों और गीदड़ों से घिरे
हम गाय छीलते हुए
हमेशा अपने मनुष्य होने पर संदेह करते रहे
गाय हमारी मां नहीं है
तुम्हारी है
लेकिन अपनी मां का अंतकर्म देखने तुम कभी नहीं आए
तुमने कभी अपनी मां का नहीं किया
अंतिम संस्कार
पाणिनि आनंद
1 अगस्त, 2016
नई दिल्ली

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