Wednesday, 17 August 2016

वीरेनदा,हमारी लड़ाई दरअसल बसंतीपुर के वजूद,उसके हक हकूक की हिफाजत और उसके वास्ते इस कायनात को बचाने के खातिर इंसाानियत के खिलाफ खड़े आदमखोर मुक्त बाजार के खिलाफ इंसानियत को लामबंद करने की लड़ाई है।

वीरेनदा,हमारी लड़ाई दरअसल बसंतीपुर के वजूद,उसके हक हकूक की हिफाजत और उसके वास्ते इस कायनात को बचाने के खातिर इंसाानियत के खिलाफ खड़े आदमखोर मुक्त बाजार के खिलाफ इंसानियत को लामबंद करने की लड़ाई है।

तो समझ लीजिये कि अरबपति करोड़पति कारपोरेट फंडिंग के जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकताएं और सरोकार क्या क्या हैं।
पलाश विश्वास

वीरेनदा,हमारी लड़ाई दरअसल दसों दिशाओंं में उग रहे  सीमेंट के जंगल और नस्ली  पूंजी वर्चस्व के एकाधिकारवादी आक्रमण से अपने खेत, खलिहान,आजीविका, रोजगार और नागरिकता,प्रकृति और पर्यावरण के साथ अपने गांव,अपनी तराई और अपने पहाड़ को बचाने की लड़ाई है।अपने देश दुनिया को बचाने के सरोकार हमारे हैं।

वीरेनदा,हमारी लड़ाई दरअसल बसंतीपुर के वजूद,उसके हकूक की हिफाजत और उसके वास्ते इस कायनात को बचाने के खातिर इंसाानियत के खिलाफ खड़े आदमखोर मुक्त बाजार के खिलाफ इंसानियत को लामबंद करने की लड़ाई है।

वीरेनदा,हम कोई रचनाकर्म नहीं कर रहे हैं।

वीरेनदा, हम कोई राष्ट्रीयनेता भी नहीं हैं और न पेज थ्री आईकन या नोबेलपिपासु समाजकर्मी है,हम तो अपने ही लोगों के रोजमर्रे के जद्दोजहद जिंदगी बदस्तूर कायम रखने के वास्ते जो हर सांस के साथ जारी है,उसीमें लहूलुहान हैं।

वीरेनदा, हमारे दिलोदिमाग से बह निकलने वाली खून की नदियों से बूंद बूंद खून जोड़कर हम तो अपने गांव की हिफाजत के खातिर किलेबंदी कर रहे हैं।

वीरेनदा,हम कोई विदेशी हमलावर नहीं हैं और इस देश की सरजमीं की धूल हैं हम, जो आंधी बनने की कोशिश में है इसलिए क्योंकि दुनियाभर की साम्राज्यवादी फौजें हमारे लोगों के हक हकूक छीनने पर आमादा है।

और हम लिखने के सिवाय कुछ भी नहीं कर सकते,वीरेनदा।

वीरेनदा,कक्षा दो तक पढ़े हमारे पिता और उनके आंदोलन,उनके जीवन संघर्ष के साथियों और पुरखों के हजारों साल की अश्वेत अस्पृश्य विरासत बसंतीपुर से दरअसल हमारा वजूद किसी भी स्तर पर अलग नहीं हैं।

दरअसल हम वीरेनदा,ऊंचाइयों से बेहद डरते हैं कि कहीं कोई ऊंचाई हमें हमारे गांव से,हमारे लोगों से,हमारे स्वजनों से हमें अलहदा नहीं कर दें।

हम इसीलिए वीरेनदा कामयाबी से बेहद डरते हैं और नाकामियों से बेहद प्यार करते हैं ,जो मुझे भूलने नहीं देतीं कि मैं आखिरकार सरस्वतीपुत्र नहीं हूं कोई सारस्वत।हम तो वीरेनदा,अपने खेत खलिहान में मरने खपने के लिए पैदा हुए थे,सिर्फ बसंतीपुर की वजह से जो मैं आज हो गया हूं,वह मैं हूं।

बसंतीपुर को घेरे हुई जो दुनिया रोज बदलती है और मुक्त बाजार बनने से साफ इंकार करती है,उसमें बसे लोगों,जिनमें आप भी हैं वीरेनदा,के  बेइंतहा प्यार ही मेरे वजूद की दास्तां हैं।जो तराई है,जो पहाड़ हैं, वहां की हवाओं में धूल में जो बेइंतहा मुहब्बत की खुशबू है,वहीं मेरे वजूद की दास्तां हैं।

इसीलिए वीरेनदा, विधाओं,माध्यमों को जीतकर इतिहास में दर्ज होने के बजाय मेरी लड़ाई जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता प्रकृति और पर्यावरण,नागरिक अधिकार और मानवाधिकार के हक में नस्ली वर्चस्व के खिलाफ लगातार चीखें पैदा करने की और उसकी गूंज अनुगूंज के जरिये जनसंहारी शासकों के खिलाफ,नस्ली शासक वर्ग के खिलाफ,अबाध पूंजी के खिलाफ सुनामी रचने की लड़ाई है।

आज आप जो बोले कि मुझे बसंतीपुर पर और लिखना चाहिए और अपने मनोजगत पर लिखना चाहिए,लेकिन आप ही तो कहते थे कि मैं कविताएं लिख नहीं सकता और मुझे कविताएं लिखने की गरज है भी नहीं है क्योंकि मैं तो कविता में ही हूं और मेरे लिए कविता वही है जिसमें बसंतीपुर की आवाज बाबुलंद दर्ज हो,वीरेनदा।

वीरेनदा,मेरे लिए अभिधान,व्याकरण,सौंदर्यबोध और प्रतिमान गैरप्रासंगिक हैं और हमारे हिसाब से हमारी हर पंक्ति कविता है,जिन्हें बूझना हो वे बूझें,जो बूझे नहीं,उनकी हमें कतई परवाह नहीं है।

वीरेनदा,मैं तो इस देश में,इस पूरे एशिया महाद्वीप में और अश्वेतों के समूचे भूगोल में,अनंत अस्पृश्यता और नस्ली भेदभाव की सभ्यता में अपने गांव बसंतीपुर के सिवाय किसी को नहीं देखता और मेरे लिए स्त्री पुरुष धर्म जाति नस्ल निर्विशेष मेहनतकश इंसानियत का हर चेहरा दरअसल बसंतीपुर है।

वीरेनदा,इसलिए वर्षों बसंतीपुर से बाहर रहने के बावजूद मैं पल दर पल अपनी मां की तरह बसंतीपुर में ही रहता हूं और बाकायदा एक वाचटावर बतौर अपनी आंखें खुली रखता हूं हमलावर फौजो की टोह में और उनकी हर हरकत के खिलाफ अपनी तरफ से मोर्चबंदी करने की जुगत ही मेरा रचना कर्म है,जिसपर किसी नामवर की किसी मुहर की जरुरत है ही नहीं।

वीरेनदा मैं तो परवाह करता हूं आप जैसे चुनिंदा लोगों की जो मेरी समझ से बसंतीपुर के ही वाशिंदे हैं।

आज वीरेनदा से फिर लंबी बातचीत हुई फोन पर।अब मुझे लगा कि मैं गलत था।वीरेनदा को दरअसल कोई कैंसर वंसर नहीं है,जो रोग है,उसके शिकार हम हैं और हमारी मानसिकता है।

आज महसूस हुआ कि अपने वीरेनदा से लगातार संवाद की जरुरत है क्योंकि वे हमारे मोर्चे के बेहतरीन सिपाहसालार हैं और हम उनकी सक्रियता के बिना कोई मोर्चा दरअसल बचा ही नहीं सकते।

पाश जैसा मैं हू नहीं और न मैं मुक्तिबोध हूं,लेकिन हमारा पक्ष साफ है।

हम वीरेनदा, यकीनन आखिरी सांस तक इस फिजां को कयामत बनाने वाले माफिया सत्ता के खिलाफ,उनकी हर साजिस के किलाफ लड़ेंगे और मोर्चा नहीं छोड़ेंगे।

मेरे घर में,मेरे गांव में,मेरे खेतों में ,खलिहानों में जहरील नाग अब भी बहुत हैं पक्के घर बन जाने के बावजूद।हम तो कभी भी सर्पदंश को नियतिबद्ध रहे हैं और दरअसल सर्पदंश के शिकार किसी प्राणहीन देह की तरह मैं इस भारत की सूखती हुई नदियों की गोद में संजीवनी बूटी की तलाश में ही भटक रहा हूं और मैं जानता हूं कि मेरी यात्रा अनंत है और इसका कोई सिरा बसंतीपुर में कभी खत्म होगा कि नहीं,नहीं जानता।

कल रात ही आनंद तेलतुंबड़े से बात हुई जो कह रहे थे कि सत्ता तबका इतना शातिर है कि संविधान का कोमा,फुलस्टाप बदले बिना जनसंहारी संस्कृति में निरंकुश बेलगाम है वह।हम तो अजब गजब के मूरख हैं कि हम अपना घर भी देख नहीं रहे हैं कि कहां कहां सर्पदंश की आशंका है।बंगाल और महाराष्ट्र के लोग तो मेले में बिछुड़े भाई हैं जिनका सारा कारोबार भावनाओं में बह जाना है।यही हाल तमिलनाडु का है।

वीरेनदा,बाकी देश के तमाम भारतीय भी इन्हीं भावनाओं के शिकार हैं और किसी लिए रंगबिरंगे सपनों के सौदागर,नाना किस्म के वंशी वादक.जादूगर,बाजीगर हमारी भावनाओं से खेलते हुए हमारी रोज रोज ऐसी की तैसी करते रहते हैं और हम नशे में मदहोश समझ भी नहीं पाते।

वीरेनदा,यही दरअसल हमारी मुक्तबाजारी धर्मान्ध राष्ट्रीयता है जो रंग बिरंगी अस्मिताओं के खंड खंड द्वीप में हमें कैद किये हुए है और हम एक दूसरे कि खिलाफ लड़ने के सिवाय अपने दुशमनों के खिलाफ किसी मोर्चाबंदी की सोच भी नहीं पाते।

ताजा खबर यह है कि देशभर के बैंक कर्मचारियों ने वेतन वृद्धि की मांग को लेकर 2 दिसंबर से 5 दिसंबर तक क्षेत्रवार हड़ताल पर जाने की घोषणा की है। राष्ट्रीय बैंक कर्मचारी संगठन के उपाध्यक्ष अश्विनी राणा ने कहा कि हम मजबूरी में हड़ताल पर जा रहे हैं हमें वेतन में मात्र 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी की पेशकश की जा रही है जो हमें स्वीकार नहीं है। तय कार्यक्रम के अनुसार मंगलवार 2 दिसंबर से 27 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, 12 निजी बैंक और 6 विदेशी बैंक के क्षेत्रवार करीब 8 लाख कर्मचारी हड़ताल पर रहेंगे।

2 दिसंबर को साउथ जोन जिसमें तमिलनाडू, कर्नाटक, केरल और अन्य राज्यों में 3 दिसंबर को उत्तरी क्षेत्र दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और अन्य राज्य 4 दिसंबर को ईस्ट जोन जिसमें झारखंड, ओड़िशा, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर राज्यों केंद्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार में और 5 दिसंबर को वेस्टर्न जोन गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र में हड़ताल रहेगी। आयुक्त ने आज हड़ताल पर जाने से पूर्व बैंक के कर्मचारी संगठनों को बातचीत के लिए बुलाया है।

ईटी के हवाले से नवभारत टाइम्स मे सुधार संकल्प जो प्रकाशित हुआ,वह इस प्रकार हैः
जिनलोगों को मोदी सरकार से रातोरात भारी परिवर्तन की उम्मीद थी उनको इसके लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। मोदी सरकार एकाएक नहीं बल्कि धीरे-धीरे आर्थिक सुधार को रफ्तार देना चाहती है। शनिवार को ईटी की ओर से आयोजित कॉर्पोरेट एक्सेलेंस अवार्ड समारोह में दिग्गज कॉर्पोरेट हस्तियों को धैर्य रखने के लिए कहा गया।

उनको बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री आर्थिक सुधार धीरे-धीरे आगे बढ़ाएंगे और इसका प्रभाव दीर्घावधि होगा।

समारोह में मौजूद मोदी सरकार के टॉप मिनिस्टरों ने बताया कि यह सरकार छोटे कदम उठाएगी लेकिन अहम कानून बनाएगी और उन रेग्युलेटरी अड़चनों को दूर करेगी जो बिजनस के लिए मुश्किल खड़ी करती हैं। उनका प्रभाव ऐसा होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'मेक इन इंडिया' प्रॉजेक्ट नारा नहीं रहेगा बल्कि हकीकत का रूप ले लेगा।

निवेश नियमों में राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर छूट दिया जाएगा न कि कुछ लोगों को फायदा पहुंचाकर लाखों लोगों को वंचित कर दिया जाएगा जैसा कि अतीत में हो चुका है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया, उद्देश्य क्षमता निर्माण था इसलिए हमने रक्षा क्षेत्र में 49 निवेश का प्रस्ताव रखा।

ऊर्जा एवं कोयला मंत्री पियुष गोयल ने बताया कि जो काम पिछले 40 सालों में नहीं हो सका था उन्होंने 40 दिनों में कर दिखाया। उन्होंने कहा, 'हमने जो कहा उसे करने के लिए तैयार हैं और लोगों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे। फिर इस तरह से अच्छे दिन लाएंगे।'

रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने बताया कि देश की रक्षा पॉलिसी इस तरह की होगी कि रक्षा उपकरणों का दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश अपनी आवश्यकता का सामान अपने घर में ही उत्पादन करने लगेगा, भले ही इस काम को किसी मल्टीनैशनल कंपनी द्वारा अंजाम दिया जाएगा।

जिन कॉर्पोरेट दिग्गजों को यह चिंता सता रही थी कि अब तक कोई भारी सुधार नहीं हुआ है और सरकार हर चीज में राष्ट्रवाद को अधिक जगह दे रही है। उनको आश्वासन दिय गया कि राष्ट्रीय हित आवश्यक रूप से व्यापार और उद्योग विरोधी हो ऐसा नहीं है।

भारतीय एयरटेल के संस्थापक सुनील मित्तल ने कहा, हालांकि वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन की मीटिंग में ट्रेड फैसिलिटेशन अग्रीमेंट को स्थगित होने से काफी चिंता बढ़ी लेकिन सरकार ने इस मामले को जिस तरह से हैंडल किया उससे लोगों का यह विश्वास बढ़ा है कि देश सुरक्षित हाथों में है।

चाहे रक्षा, रिटेल, पावर या कोल क्षेत्र हो पॉलिसी इस तरह की बनाई जाएगी कि किसी एक सिंगल ग्रुप का पक्षपात नहीं किया जाए। सरकार निर्णय लेने में देर लगाएगी लेकिन फूलप्रूफ मैकेनिज्म विकसित करेगी।

जब ई-कॉमर्स पर प्रतिबंध की चर्चा पर सवाल किया गया तो वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, 'यह तकनीक की भूमिका है जिस पर लगाम कसना किसी के लिए भी बहुत ही मुश्किल है।' महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने भी मुंबई को विकास के पथ पर ले जाने का पक्का इरादा जताया।

समझ लीजिये कि अरबपति करोड़पति कारपोरेट फंडिंग के जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकताएं और सरोकार क्या क्या है।

गौरतलब है कि जी-20 समूह की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि आर्थिक सुधारों का विरोध होना अपरिहार्य है। ‘मेक इन इंडिया’ तब तक साकार नहीं होगा जब तक इस विरोध पर काबू नहीं पा लिया जाता। प्रधानमंत्री को विदेशों में जो निवेश का आश्वासन मिलता है, वह भारत में व्यवसाय अनुकूल वातावरण बनने पर ही साकार होगा। यदि सरकार स्मार्ट शहरों सहित आधारभूत ढांचे पर अधिक खर्च करना चाहती है, तो अधिक भारतीयों को कर चुकाने के लिए राजी करना होगा। फिलहाल आबादी का सिर्फ 5 फीसदी तबका आयकर चुकाता है।

याद करें संसद सत्र शुरु होने के मौके पर कारपोरेटवकील वित्तमंत्री का वक्तव्यःबीमा विधेयक जैसे आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने वाले कानून पारित कराने में विपक्षी दलों के कड़े रूख से विचलित हुए बिना सरकार ने आज कहा कि वह सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयकों को आगे बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध है। हालांकि, उन्होंने इन सवालों को टाल दिया कि कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों के साथ सहमति नहीं बन पाने की स्थिति में कुछ विधेयकों को पारित कराने के लिए क्या सरकार संसद का संयुक्त सत्र बुलाएगी। वित्त मंत्री अरुण जेतली ने संवाददाताओं के साथ एक विशेष बातचीत में कहा, ''हम आगे बढ़ने को लेकर प्रतिबद्ध हैं।

मसलन शिकायत है कि बुनियादी ढांचा और बैंकिंग उद्योग को विभिन्न स्तरों पर फैसले में देरी के कारण करीब 400 करोड़ रुपये प्रतिदिन का नुकसान हो रहा है।इस सिलसिले में वेश्विक पूंजी के आकाओं को  सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की सफाई है कि जब उन्होंने मई में कार्यभार संभाला था तो उन पर भूमि अधिग्रहण, वन एवं पर्यावरण मंजूरी में देरी के कारण इस क्षेत्र में अटके हुए ।,80,000 करोड़ रुपये के निवेश को लीक पर लाने की कठिन जिम्मेदारी थी। गडकरी ने कहा कि '।,80,000 करोड़ रुपये की परियोजना के अटकने के लिए मुख्य तौर पर पिछली सरकार जिम्मेदार थी। 90 प्रतिशत सरकार जिम्मेदार थी जबकि 10 प्रतिशत गलती डेवलपरों और बैंकों की है।' उन्होंने कहा कि 'फैसला करने में देरी करने के कारण डेवलपरों और बैंकों को रोजाना करीब 400 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।'

उल्लेखनीय है कि ।,80,000 करोड़ रुपये की 189 परियोजनाएं भूमि अधिग्रहण, वन एवं पर्यावरण मंजूरी में देरी, रक्षा भूमि का हस्तांतरण न होने और रेल ओवर-ब्रिज की बाधाओं के कारण अटकी हुई थीं। गडकरी ने कहा कि ज्यादातर परियोजनाओं की समस्याएं दूर की जा चुकी हैं और बाकी काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले काम निपटाने के बाद सड़क मंत्रालय रोजाना 30 किलोमीटर सड़क बनाना चाहता है। सरकार फिलहाल जम्मू-कश्मीर में 21,000 करोड़ रुपये और पूर्वोत्तर क्षेत्र में 15,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं पर काम कर रही है। मंत्री ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) देश के विभिन्न राजमार्गों के कई ऐसे स्थानों में सुधार करने पर काम कर रहा है, जहां दुर्घटनाएं ज्यादा होती हैं।

दूसरी तरफ वित्त और कंपनी मामलों के मंत्री अरुण जेटली ने देश के अंदर कंपनियों के विलय एवं अधिग्रहण को बढ़ावा देने का आह्वाहन किया ताकि कंपनियां बड़ा आकार हासिल कर सकें। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा कानून लागू करते समय यह समझने की जरूरत है कि ऐसे मामलों में लक्ष्मण रेखा कहा खींचनी है।

उन्होंने प्रतिस्पर्धा कानून के परिणामों पर विचार करते समय 'समानुपातिकता का सिद्धांत' लागू करने की जरूरत पर भी बल दिया। जेटली ने कहा कि 'लोग वैश्विक अनुभव से सीखते हैं। हमारी कंपनियों का आकार औसत स्तर का है। ऐसे में विलय, अधिग्रहण और पुनर्गठन को प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि वे बड़ा आकार हासिल कर सकें।

इसी संदर्भ में जेटली ने प्रतिस्पर्धा कानून लागू करते समय 'लक्षमण रेखा तय होनी चाहिए' की बात पर भी जोर दिया। उनके मुताबिक भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (प्रतिस्पर्धा कानून) बहुत ही परिपक्वता के साथ काम कर रहा है। प्रतिस्पर्धा कानून के तहत एक निश्चित आकार या उससे बड़ी कंपनियों के विलय एवं अधिग्रहण के लिए प्रतिस्पर्धा आयोग की अनुमति लेनी जरूरी होती है और इस मंजूरी के लिए कुछ मानक तैयार किए गए हैं। उन्होंने कहा कि 'यदि दूरसंचार क्षेत्र की दो प्रमुख कंपनियों का विलय होता है तो क्या दूरसंचार नियामक और बाजार नियामक सीसीआई के बीच समान अधिकार क्षेत्र होगा। इसलिए दो नियामकों का दायरा आप कैसे बनाएंगे। स्पष्ट है कि यह क्षेत्र उभर रहा है।'

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को उम्मीद जताई कि बहु-प्रतीक्षित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक जिसके जरिए एक समान अप्रत्यक्ष कर ढांचे की व्यवस्था की जानी है, को संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि 'हम इस सत्र में जीएसटी पेश करने कोशिश करेंगे, राज्य के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की 12 दिसंबर को होने वाली बैठक के बाद मंत्रिमंडल जीएसटी विधेयक पर विचार करेगा।' सरकार ने 1 अप्रैल 2016 से जीएसटी लागू करने का प्रस्ताव किया है और नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से जुड़े मामलों पर विचार करने के लिए नए वित्त आयोग का गठन समय से पहले किया जाएगा। जीएसटी में केंद्रीय स्तर पर वसूले जाने वाले उत्पाद शुल्क और सेवा शुल्क और राज्य के मूल्यवद्र्धित कर और कुछ स्थानीय कर समाहित होंगे।

जीएसटी लागू करने के संबंध में केंद्र और राज्यों के बीच कुछ मतभेद हैं जिनमें राजस्व निरपेक्ष दर और पेट्रोलियम व शराब को इसके दायरे से बाहर रखने से जुड़े मुद्दे शामिल हैं। जीएसटी की उप-समिति ने सुझाव दिया है कि जीएसटी की राजस्व निरपेक्ष दर करीब 27 प्रतिशत तय की गई है लेकिन इस पर अभी राज्यों को फैसला करना है। इसने राज्यों को सुझाव दिया है कि राज्य जीएसटी 13.91 प्रतिशत और केंद्रीय जीएसटी 12.77 प्रतिशत हो। इसके अलावा राज्यों की मांग है कि पेट्रोलियम, शराब और तंबाकू को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाए।

जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक को 2011 में लोकसभा में पेश किया गया था जिसकी समयसीमा खत्म हो गई इसलिए राजग सरकार को इस विधेयक को नए सिरे से पेश करना होगा। जीएसटी से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर राज्यों के बीच सहमति नहीं बन जाने के कारण इस नई कर प्रणाली को पेश किए जाने की कई समयसीमा पार हो चुकी है।

गौरतलब है कि सरकार ने देश में कारोबार आसान बनाने के लिए प्लान तैयार किया है। मेक इन इंडिया अभियान के तहत कैबिनेट सचिव के अधिकारियों और कारोबारियों के साथ हुई बैठक में तमाम रेगुलेटरी और बिजनेस अप्रूवल्स ऑनलाइन करने की योजना की जानकारी दी गई। जिसके लिए 70 से 80 सेक्रेटरी लेवल के अधिकारियों को मसूरी के आईएएस ट्रेनिंग सेंटर में ऑनलाइन मॉडल पर काम करने की ट्रेनिंग दी गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 6 महीने में सभी अप्रूवल ऑनलाइन कर दिए जाएंगे जिसके लिए डीआईपीपी ने 45 दिन का एजेंडा तैयार कर लिया है। तमाम अप्रूवलों को ऑनलाइन किए जाने से देश में कारोबार करना आसान हो जाएगा।

इस बैठक में एक्सपोर्ट से जुड़े फिक्की, सीआईआई जैसे अहम संगठनों ने हिस्सा लिया। इस बैठक में कारोबार को आसान बनाने और राज्यों के साथ बेहतर तालमेल बनाने पर चर्चा हुई।

फिक्की के चेयरमैन सिद्धार्थ बिड़ला ने कहा कि इस बैठक में मैन्युफैक्चरिंग पर जोर देने पर फोकस हुआ और कॉरपोरेट्स ने बढ़-चढ़ कर अपने सुझाव भी दिए।
वहीं मारुति के चेयरमैन आर सी भार्गव ने कहा कि इस बैठक में सरकार ने इंडस्ट्री की परेशानी सुलझाने का आश्वासन दिया। इस बैठक में हर सेक्टर पर चर्चा की गई। इसके अलावा स्किल डेवलपमेंट, टैक्स, एमएसएमई जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की गई।

आज के इकानामिक टाइम्स और टाइम्स आफ इंडिया को जरा गौर से पढ़ लीजिये।

चूंकि अंग्रेजी सत्तावर्ग की भाषा है ,उस भाषा से हमारी मेहनतकश आबादी का कोई वास्ता है नहीं।वहां जो सूचनाएं होती हैं,भारतीयभाषाओं में वे सूचनाें होती नहीं है।अब समझता हूं कि हमारे गुरुजी ने क्यों कहा था कि हिंदी तो घर पर बैठे पढ़ लिख लोगे,लेकिन बसंतीपुर के हक हूक की लड़ाई लड़नी है तो अंग्रेजी जरुर सीखना है।

वीरेन दा,मेरे गुरुजी ने ही मुझे बसंतीपुर के लिए लड़ते रहने का गुरु मंत्र दिया हुआ है और वह आज भी मेरी आस्था का बीजमंत्र है।

टाइम्ससमूह के दोनों अंग्रेजी अखबारों में वित्तमंत्री अरुण जेटली समेत संघ परिवार के तमाम मंत्रियों और सिपाहसालारों के हवाले से अच्छे दिन की घोषणाएं जनसंहारी  सुधारों को लागू करने के संकल्प के साथ कर दी गयी है और कारपोरेट जगत से लेकर वैश्विक पूंजी को इशारा कर दिया गया है कि भारत की बिजनेस प्रेडली सरकार कैसा बिजनेस करना चाहती है और इसके लिए वह किस हद तक जा सकती है।
इकोनामिक टाइम्स की यह रपट पढ़ेंः

ACHHE DIN: ARE WE ON TRACK FOR 8% GROWTH? Modi Sarkar's top team promises clarity on regulations, including land law and allocation of non-coal minerals
Impatient industry leaders who streamed in large numbers into the ET Awards for Corporate Excellence on Saturday looking for announcements on big-bang reforms from the top ministers in the Narendra Modi government were instead told that they could expect a series of measures that will leave a lasting impression.
This government will take what may look like small steps, but will push through important legislation and clear regulatory cobwebs which are crippling businesses, and their impact will be such that the `Make in India' project of PM Modi will become a reality rather than remain a slogan.
Liberalisation of investment regulations will be dictated by national interest instead of aiming to just enrich a few, and leave out millions as in the past when employment generation lagged economic growth.
"The objective was capacitybuilding, so at 49% (in defence) we have had a reasonable good initial period," said Finance Minister Arun Jaitley . "I do not think there are too many amongst the captains of the industry here who are going to invest 49% in defence only to become minority shareholders. People are approaching Indian corpo rates for joint ventures."
The proof of the pudding is in the eating, Power & Coal Minister Piy ush Goyal told the galaxy of CEOs and en during a panel trepreneurs during a panel discussion, which included Bharti Airtel's Sunil Mittal, ITC's YC Deveshwar and Diageo Plc's Ivan Menezes.
"We sorted out a 40-year story in less than 40 days," said minister Piyush Goyal. "I have yet to read one editorial which has been able to find flaw in that ordinance," said Power & Coal Minister Piyush Goyal."We stand for whatever we say and we will take every step required to meet the expectations of the people and get the achhe din."
Defence Minister Manohar Parrikar said the country's defence policy will be tailored in such a way that the world's biggest importer of defence equipment will produce more of its needs at home, even if it is done by a multinational company.
"We are working on policies where Make in India becomes reality in this sector," said Parrikar."If we are the biggest customer, why cannot I get things done in my country , at least initially even if it is by global (companies)."
Industry captains who were worried that `big-bang' reforms are absent and that the government was sounding nationalistic in a throwback to the days of socialism were assured that national interest need not necessarily be anti-business and trade.
Although the postponement of the Trade Facilitation Agreement under the World Trade Organization caused a lot of anxiety, the way the government handled the issue leads one to believe that the nation is in safe hands, said Sunil Mittal, founder of Bharti Airtel.
"At one point in time (I felt) that either the WTO will collapse or we will be isolated in the whole process and that other countries will move forward," said Mittal."This government showed nerves of steel. When the whole world, and this time mind you most of the emerging countries were also not behind us, then to stand alone and say we want to protect our agriculture, we want to protect our procurement... I think you have done a fantastic job. I personally feel we are blessed to have a government like this."
Be it defence, retail, power or coal, the common thread of policymaking will be that there is a level-playing field and there is no favouritism towards any single group, or an individual. The government will take time to decide, but it will come up with a foolproof mechanism.
"It is the role of technology which is very difficult for anyone to put a brake on," Commerce Minister Nirmala Sitharam said, when questioned on talk of restrictions on ecommerce. "But at the same time, I would not want to rush in to say either way because our position, on say multi-brand retail, is very clear. But nothing more at this stage."
Indeed, as the debate pro gressed, it became evident that chief executives are worried more about the nitty-gritty of doing business which the Modi government is focusing on rather than limits on foreign ownership, and the dominance of inefficient state-run enterprises in many fields. "We need 250,000 approvals in one year... licences and approvals in one year," said Menezes of Diageo, which bought United Spirits in a $3-billion transaction. "I would hope with the direction we are taking, that number comes down drastically. I mean that will unleash the economic activity, growth that will cause us to invest. It will raise more employment."
Part of the industry's worries were addressed right on the spot. Maharashtra Chief Minister Devendra Fadnavis is determined to make Mumbai a better place to live in, and the state -which has been slipping of late -the preferred place to do business. "I have decided and have worked out, and I will be bringing those permissions down to 25 from 76 and it will take just onethree months to get all these permissions," said Fadnavis.

No comments:

Post a Comment